Srila Gurudeva
Srila Bhakti Dayita Madhav Goswami Maharaj Letters
1. “तत्कृपावलोकन”
2. सुनकर दुःख हुआ
3. दुर्लभ मनुष्य – जन्म व्यर्थ हो जाएगा
4. Material body is perishable
5. वास्तविक अनुशीलन
6. माया के समस्त अनुचरगण
7. यह शुद्ध भक्ति है या नहीं
8. स्वेच्छाचारिता किसी के लिये भी उचित नहीं है
9. यह तीन साधकों के परम शत्रु हैं
10. जब मन कुछ खराब होगा
11. साधन के मार्ग पर बाधाएँ
12. यह सर्वदा स्मरण रखना
13. सभी का स्वभाव और योग्यता
14. मठ में वास करने की इच्छा
15. श्रील प्रभुपाद की प्राचीन भजनस्थली
16. कपटता रहित शरणागत व्यक्ति
17. दैन्य सहित मठ में वास
18. असंयमित इन्द्रियों वाले व्यक्ति
19. तब मैं अवश्य ही प्रसन्न होऊँगा
20. जीव के पूर्व कर्मों से
21. अपनी योग्यता के अनुसार अपने आराध्यदेव की सेवा
22. परिवर्तनशील अवस्थाओं में भी
23. भगवान् किसी के भी शत्रु नहीं हैं
24. अन्याभिलाषाओं से रहित भक्ति
25. अत्यन्त कृपामय होने के कारण श्रील प्रभुपाद
26. करुणामय श्रीगौरहरि तुम्हारे प्रति कृपा करें
27. तुम्हारे प्रारब्ध कर्मों को नष्ट नहीं कर सकता
28. हमारे दुःख कष्टों के लिये हमारे पूर्वकर्म
29. काय-मन-वचन को हरिसेवा में नियोजित
30. पूर्वकृत कर्मों के फल
31. शास्त्र – निर्देशानुसार प्रयत्न करना
32. साधु एवं शास्त्रों के निर्देशानुसा
33. वास्तविक साधुसंग
34. निष्कपट सेवावृत्ति
35. अश्रद्धा उत्पन्न करने की चेष्टा
36. मेरा स्नेह – आशीर्वाद
37. श्रीकृष्ण के नाम एवं रूप का कीर्त्तन
38. कनक, कामिनी तथा प्रतिष्ठा
39. भक्त और वैष्णव समाज
40. भक्ति का छल करना कदापि मंगलदायक नहीं होता
41. समस्त प्रतिकूलताएँ
42. निरन्तर सेवा करते रहने से ही
43. हिंसापरायण व्यक्तियों के संग से दूर रहना
44. भक्ति के अनुकूल भावों को ग्रहण
45. दायित्वशील सेवकों का कर्त्तव्य
46. सहनशीलता और धैर्य
47. एतो चाओ केनो
48. पतन की ओर ही अग्रसर होना
49. पारमार्थिक उन्नति की चेष्टाओं
50. प्रेममयी सेवा
51. आत्मा अविनाशी है
52. वैष्णवों का स्वभाव
53. अपना अथवा दूसरों का उपकार करना
54. देह ही यदि अपना स्वरूप (आत्मा) न हो
55. कनक- कामिनी – प्रतिष्ठा प्राप्ति की चेष्टा
56. सेवकों को उत्साहित रखने की चेष्टा
57. शारीरिक सुख-सुविधाओं की व्यवस्था
58. तुम्हारा व्यवहार लोगों को तीखा लगता है
59. स्वेच्छाचारिता आदि दोष
60. कर्मों के आधार पर
61. भगवद्-धाम आदि दर्शन
62. पूर्वकृत दुष्कृतियों के फल