श्रीश्रीगुरु – गौरांगौ जयतः
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ,
ग्वालपाड़ा, आसाम,
30 जनवरी, 1972
स्नेह के पात्र,
तुम्हारा दिनांक 23/1/72 का लिखा पत्र एक दिन पूर्व मुझे प्राप्त हुआ। मुझे तुम्हारा नवीन पता ज्ञात नहीं है, अतः तुम्हारे बोलपुर के पते पर ही पत्र भेज रहा हूँ ।
हम सर्वदा ही अपनी योग्यताओं को श्रीहरि – गुरु- वैष्णवों की सेवा में नियुक्त करेंगे तथा इस प्रकार अपने जीवन को सार्थक करने के लिये प्रयत्नशील रहेंगे। हमारी सेवा को ग्रहण करना अथवा नहीं करना, यह सेव्य की कृपामयी इच्छा के ऊपर निर्भर करता है। हम सेवक हैं, अतः सेवा ही हमारा धर्म और स्वार्थ अथवा परमार्थ [ परम प्रयोजन ] है।
ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारा बोलपुर क्षेत्र में उत्तम परिमाण में सेवानुकूल्य संग्रह हुआ है। दूसरों से भिक्षा प्राप्ति की अधिक आशा करने पर, जब आशा के अनुरूप प्राप्ति नहीं होती, तो उनके प्रति तुम्हारे हृदय में क्रोध का उदय हो सकता है। उस क्रोध पर नियन्त्रण रखने के लिये तुम इस उपदेश को स्मरण रख सकते हो जो एकदिन श्रील प्रभुपाद ने मुझे प्रदान किया था – ” एतो चाओ केनो, आर कष्ट पाओ केनो – इतना चाहते क्यों हो, इतना दुःख क्यों भोगते हो” ? “ यदृच्छालाभे सन्तुष्ट – जो स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो, उसमें ही सन्तुष्ट रहो ।” ऐसा करना ही बुद्धिमत्ता है तथा यही धीर चित्त व्यक्ति का लक्षण है। तुम मेरा स्नेह – आशीर्वाद ग्रहण करना ।
इति नित्यशुभाकांक्षी त्रिदण्डिभिक्षु
श्रीभक्तिदयित माधव
1 पूर्ण वृत्तान्त इस प्रकार है- श्रील प्रभूपाद ने श्रील भक्तिदयित माधव गोस्वामी महाराज (श्रीहयग्रीव ब्रह्मचारी) से कहा, “एतो चाओ केनो, एतो दुःख पाओ केनो ? अर्थात् इतना चाहते क्यों हो, इतना दुःख क्यों भोगते हो? तुम निमानन्द प्रभु अथवा अन्य किसी से इतनी आशा क्यों करते हो, तथा उसी आशा के पूर्ण नहीं होने पर वृथा दुःख भोग क्यों करते हो? च व तु अर्थात A to Z गुरु सेवा तुम्हारी है। उसमें यदि कोई तुम्हारी सहायता करेगा तो तुम्हें उसके लिये उसका कृतज्ञ होना चाहिये, किन्तु यदि सहायता नहीं करने वाले के प्रति तुम क्षुब्ध होओगे तो वह तुम्हारी ही भूल होगी। श्रीमती राधारानी कृष्ण की Major Domo है, वे श्री कृष्ण की समस्त सेवाओं को अपने ही दायित्व के रूप में मनन करती हैं। यदि कोई सखी उस सेवा में उनकी कोई सामान्य सी भी सहायता करती हैं, अर्थात जल लाकर दे देती हैं अथवा मसाला इत्यादि पीस देती हैं तो वे उनकी कृतज्ञ हो जाती हैं, किन्तु किसी ने भी यह सेवाएँ नहीं की, उसके लिये वे मन में भी किसी के प्रति कोई अभियोग (शिकायत ) इत्यादि नहीं करती।”
उपरोक्त वृत्तान्त श्रीश्रीमद्भक्तिविज्ञान भारती गोस्वामी महाराज द्वारा रचित ” ज्वालामुखीय ऊर्जा सम्पन्न सर्वोत्तम सेवक श्रीश्रीमद्भक्तिदयित माधव गोस्वामी महाराज का शिक्षा समन्वित जीवन चरित्र” नामक पुस्तक से उद्धृत किया गया है।
नित्यशुभाकांक्षी
श्रीभक्तिदयित माधव