श्रीश्रीगुरु – गौरांगौ जयतः
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ,
35, सतीश मुखर्जी रोड़, कोलकाता- 26
20 सितम्बर, 1976
स्नेह के पात्र,
तुम्हारा दिनांक 26/8/76 का लिखा पत्र मुझे प्राप्त हुआ। श्रीपाद भक्तिविलास तीर्थ महाराज कोलकाता में दिनांक 10/9/76 को दोपहर 3:20 पर अप्रकट हुए।
श्रीपाद कीर्त्तनानन्द ब्रह्मचारी प्रभु ने भी परसों रात्रि 3 बजे बड़िशा में अपनी एक शिष्या के आश्रम में देहत्याग कर दिया एवं एक दिन पूर्व केवड़ातला में उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
अब हमारा अन्तिम समय समीप आ रहा है। किसी का भी शरीर चिरकाल तक नहीं रहता और न ही रहेगा। इसीलिये प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति ही अपने जीवन के प्रत्येक मुहूर्त्त का व्यवहार अपनी पारमार्थिक उन्नति की चेष्टाओं में किया करते हैं।
तुम्हारे स्वास्थ्य के लिये मैं चिन्तित रहता हूँ। [ मुझे ज्ञात हुआ कि ] तुम्हारे पेट में पाचन सम्बन्धी असुविधाएँ हैं और तुम दुर्बल भी हो; सबकुछ पचा नहीं पाते हो। अपने देह के प्रति भी तुम कुछ ध्यान देना, किन्तु इसे ही अपनी एकमात्र चिन्ता का विषय नहीं बना लेना । इन्द्रियाँ जब तक समर्थ रहती हैं तब तक उन्हें श्रीभक्त और श्रीभगवद् सेवा में नियोजित कर पाने में ही उन इन्द्रियों की सार्थकता है। धैर्य धारण करते हुए तुम आयुर्वेदिक औषधि का सेवन करके भी देख सकते हो कि उससे स्वास्थ्य में सुधार होता है या नहीं।
यदि तुम विशेष अस्वस्थ नहीं हो, तो अच्छा होगा कि तुम नियमित रूप से अर्चनादि की सेवा करो । ननीगोपाल को सम्पूर्ण समय सेवानुकूल्य ( भिक्षा) संग्रह करने के लिये देना ही अच्छा होगा । भिक्षा संग्रह करने के अतिरिक्त मठ की आय का अन्य कोई साधन नहीं है तथा मठ हेतु बहुत प्रकार का खर्चा भी होता है। तुम सभी मेरा स्नेह – आशीर्वाद ग्रहण करना।
इति नित्यशुभाकांक्षी
श्रीभक्तिदयित माधव