श्री श्री गुरु – गौरांगौ जयतः

श्री चैतन्य गौड़ीय मठ, 35 सतीश मुखर्जी रोड़, कलकत्ता ।
12-5-1968

स्नेह भजनेषु,

हैदराबाद में तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा नहीं हो रहा है, यह समाचार सुनकर दुःख हुआ । हमारा शरीर कभी अच्छा – कभी खराब, इसी प्रकार चलेगा । सुचतुर व बुद्धिमान व्यक्ति इसी प्रकार अच्छे-बुरे के बीच अपने नित्य – आराध्य व प्रियतम – प्रभु की सेवा के लिए प्रयत्न करते हैं । हमें अपने कर्मफल के अनुसार ही सुख – दुःख व संग इत्यादि लाभ होता है। साधक को हमेशा विशेष सतर्कता के साथ जीवन-यापन करना होगा । सतीर्थगणों (गुरु – भाईयों) में किसी की कोई दुर्बलता दीखने पर; वह जैसे उक्त दुर्बलता से छुटकारा पा सके, उसके अनुकूल ही प्रीतिभाव के साथ व्यवहार करना उचित है । साधु संग में “बोधयन्तः परस्परम्” इत्यादि का सौभाग्य होने से ही साधक साधु – संग में रहकर साधन- भजन करते हैं। दूसरों की दुर्बलता देखकर स्वयं को अधिक सतर्क होना होगा जिससे अपना आदर्श – जीवन दूसरों के लिए शिक्षणीय व हितकर हो ।

नित्य शुभाकाँक्षी
भक्तिदयित माधव