श्रीश्रीगुरु – गौराङ्गौ जयतः
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ,
35, सतीश मुखर्जी रोड़, कोलकाता- 26
19 सितम्बर, 1976
श्रील प्रभुपाद की प्राचीन भजनस्थली (कटहल वृक्ष के निकट वाले द्वार से लगे हुए कक्ष) के मध्य में श्रीचैतन्य मठ के भक्तों ने भूमि खनन करके मेरे द्वारा आपत्ति व्यक्त करने पर भी, श्रीपाद भक्तिविलास तीर्थ महाराज को समाधि प्रदान की है
[ समाधि स्थली के खनन के समय ही अर्थात् श्रीपाद भक्तिविलास तीर्थ महाराज के कलेवर के मायापुर में आने से पूर्व ही मैंने अपनी आपत्ति तो जताई किन्तु जब देखा कि वे लोग किसी की भी बात को सुनना ही नहीं चाहते तो ] मैंने उनसे कोई झगड़ा नहीं किया, अपितु ( 11 सितम्बर) रात्रि 10:30 बजे अपने मठ में लौट आया। उसके एक दिन पहले, कृष्णनगर स्थित मठ में रात्रि के समय पाठ करते हुए उनके देहत्याग का सम्वाद प्राप्त हुआ था। तुरन्त श्रीमायापुर श्रीचैतन्य मठ में टेलीफोन करने पर ज्ञात हुआ कि वे उसी दिन अर्थात् दिनांक 10 सितम्बर, 1976 को सन्ध्या के समय कोलकाता में अप्रकट हुए। 11 सितम्बर मध्य रात्रि में 12 बजे ही उनकी देह को लेकर श्रीमायापुर पहुँचना निश्चित किया गया था। किन्तु विभिन्न सूत्रों से ज्ञात हुआ कि सूर्योदय से पूर्व उनका श्रीमायापुर पहुँचना सम्भव नहीं हो पायेगा । तब मैंने 11 सितम्बर रात्रि 11:30 बजे ईशोद्यान पहुँचकर कुछ विश्राम किया। फिर 12 सितम्बर प्रातःकाल 4:45 पर साईकिल के द्वारा एक ब्रह्मचारी को भेजा एवं उसके माध्यम से ज्ञात हुआ कि उसी समय लॉरी योगपीठ पहुँची है। सम्वाद प्राप्त होते ही, आश्रम महाराज, दामोदर महाराज, मैं और मठ के कुछ अन्य लोग श्रीचैतन्य मठ गये। वहाँ पहुँचकर ज्ञात हुआ कि तीर्थ महाराज मायापुर में अपने अन्तिम अवस्थान के समय यह लिखकर गये थे कि श्रील प्रभुपाद की समाधि की पूर्वदिशा में, पुष्पबागान के बीच उन्हें समाधि दी जाये। किन्तु कोलकाता के अमुक व्यक्ति की विशेष इच्छा अनुसार श्रील प्रभुपाद की भजनस्थली में ही समाधि प्रदान की जायेगी ।
सभी के यह कहने पर कि ऐसा कार्य महाजन सम्मत नहीं है एवं श्रील प्रभुपाद के शिष्यवर्ग के लिये वेदनादायक है, अमुक ने उन सबसे कहा – “मुझे ऐसी बातें बोलकर दुःखी नहीं करना”। शान्ति भंग हो जाने के भय से मैं अपने लोगों को लेकर वहाँ से चला आया। बाद में मैंने सुना कि दोपहर 2 बजे समाधि की प्रक्रिया सम्पन्न हुई । श्रीपाद भक्ति विलास तीर्थ महाराज को श्रील प्रभुपाद की भजन – कुटीर में समाधि देने की बात को सुनकर तुम्हारे हृदय में आघात लगा है, यह जानकर मैं सुखी हुआ। तीर्थ महाराज के शिष्यों में भी बहुत लोग दुःखी और उद्विग्न हुये हैं। मैं नहीं जानता कि इसमें घोर विषयी व्यक्तियों की बुद्धि से उत्पन्न क्या स्वार्थ निहित है? यह भविष्यत् काल में प्रकाशित होगा ।
नित्यशुभाकांक्षी
श्रीभक्तिदयित माधव