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  • सर्वमहागुणगण वैष्णव शरीरे। कृष्ण भक्ते कृष्णर गुण सकल संचारे। सेई सब गुण हय वैष्णव-लक्षण। सब कहा न याय करि दिग्दर्शन।। कृपालु, अकृत-द्रोह, सत्य-सार, सम। निर्दोष, वदान्य, मृदु, शुचि, अकिंचन।। सर्वोपकारक शांत, कृष्णैकशरण। अकाम, निरीह, स्थिर, विजित-षड्गुण। मित्भुक, अप्रमत, मानद, अमानी। गम्भीर, करुण, मैत्र, कवि, दक्ष, मौनी। कृष्ण भक्त के ये तमाम गुण हमें श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी के शुद्धभक्तिमय जीवन में परिपूर्ण रूप से प्रस्फुटित देखने को मिलते हैं। कृपालु, दयानिधि गौरहरि जी ने बद्ध जीवों पर जैसे नौ प्रकार से कृपा वर्षण की हैं, उनके निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाशय को भी वैसी ही दया को वितरण करते देखा जाता है।
  • क्या वैष्णव अकिन्चन होते हैं?

    अवश्य ही। वैष्णव कृष्णके आश्रित हैं—कृष्ण के सेवक हैं। उनके  ह्रदय में भगवान् के सेवक अभिमान के अतिरिक्त अन्य कोई अभिमान नहीं होता। वे अकिन्चन होते हैं, इस जगत की कोई भी वस्तु नहीं चाहते। इस जगत की कोई भी वस्तु उन्हें लुब्ध नहीं कर सकती। इस जगत या परजगत में ऐसी कोई भी वस्तु … Continue reading क्या वैष्णव अकिन्चन होते हैं?


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    सत्य की खोज

    कलयुग में अधम प्राणियों की दुखद दुर्दशा को देखकर स्वयं श्रीकृष्ण अहैतुकि कृपा प्रकाशित करते हुए श्रीमती राधारानी का भाव और अंग-कांति को स्वीकार करके पतित जीवों के उद्धार के लिए श्रीमायापुर धाम (नदिया, पश्चिम बंगाल) में श्रीचैतन्य महाप्रभु के रूप में आविर्भूत हुए। जब भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु 1486 ईसवी में अवतरित हुए, उस समय … Continue reading सत्य की खोज


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    मन रे, तुमि बड़ संदिग्ध-अन्तर।

    मन रे, तुमि बड़ संदिग्ध-अन्तर। असियाछ ए संसारे, बद्ध हये जड़ाधारे, जड़ासक्त ह’ले निरन्तर॥1॥ मेरे प्रिय मन, तुम अत्यन्त सन्दिग्ध हो। इस भौतिक जगत् में आकर विषय-वस्तुओं के द्वारा बद्ध हो गए हो। इस प्रकार से तुम निरंतर आसक्त रहते हो। भूलिया स्वकीय धाम, सेवि’ जड़-गत काम, जड़ बिना ना देख अपर। तोमार तुमित्व जिनि, … Continue reading मन रे, तुमि बड़ संदिग्ध-अन्तर।


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    साधुसंग में हिंसक प्राणी भी अहिंसक हो जाते हैं

    सुन्दरवन में बाघ सुअर सर्प आदि हिंसक और दुष्ट प्राणियों का वास है। वहाँ अधिक दिन रहने पर उसी प्रकार की हिंसा-मत्सरता के वशीभूत होना बहुत स्वाभाविक है।


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    -भगवान् के आविर्भाव का मुख्य कारण

    भगवान् के आविर्भाव का मुख्य कारण तो भक्त हैं। जैसे पति के विरह से कातर सद्पत्नी का दुःख, पति के अतिरिक्त अन्य किसी प्रतिनिधि के द्वारा, किसी द्रव्य या किसी भी उपाय से दूर नहीं हो सकता, उसी प्रकार भगवान् के अवतीर्ण न होने तक भक्त का विरह – दु:ख दूर नहीं होता। इसलिये साधुओं … Continue reading -भगवान् के आविर्भाव का मुख्य कारण


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    श्रील रघुनन्दन ठाकुर

    श्रील रघुनन्दन ठाकुर व्यूहस्तृतीय: प्रद्युम्न: प्रियनर्म सखो¿भवत् । चक्रे लीला सहायं यो राधा माधवयोर्व्रजे । श्रीचैतन्याद्वैत तनु: स एव रघुनन्दन: । (गौर. ग. 70) प्रद्युम जी तृतीय व्यूह के हैं। इन्होंने कृष्ण के प्रियनर्म सखा होकर व्रज में श्रीराधामाधव जी की लीला में सहायता की थी। वे प्रद्युम जी ही इस समय श्रीचैतन्य के अभिन्न … Continue reading श्रील रघुनन्दन ठाकुर


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    दुखों के मूल कारण के विषय पर

    दुखों के मूल कारण के विषय पर श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के वर्तमान आचार्य श्री श्रीमद भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी !   हम बंधन में हैं और हमें तीन प्रकार के ताप सता रहे हैं; इस बात से सिद्ध होता हैं कि हम भगवान श्रीकृष्ण से विमुख हो गए है | हमारे दुखों … Continue reading दुखों के मूल कारण के विषय पर


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    श्रेष्ठतम साधन

    श्रेष्ठतम साधन मनुष्य जीवन ही एक ऐसा अनमोल जीवन है जिसमें भगवद् भक्ति करने का सर्वोत्तम सुयोग हैI मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसे सद्-असद् का बोध है व जो सद् वस्तु भगवान की आराधना करके सब कुछ, यहाँ तक कि पूर्णतम्-वस्तु श्रीकृष्ण को भी प्राप्त कर सकता हैI श्रीमद् भागवत् में चित्त को … Continue reading श्रेष्ठतम साधन


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