यदि हम सर्वदा अपने शारीरिक सुखों के लिए ही चेष्टा करते रहेंगे तो अवश्य ही गृहव्रती हो जाएँगे सदा सर्वदा केवल श्रीकृष्णकी सेवा के लिए ही चेष्टा करने से हमारा कल्याण हो सकता है। जो स्त्री, पुत्र, घर, परिवार एवं बन्धु-बान्धवोंको छोड़कर सम्पूर्ण रूप से निरन्तर कृष्ण भजन करते हैं, गृहस्थभक्तों को सदा सर्वदा सब प्रकारसे उनकी सहायता तथा सेवा में लगे रहना चाहिए।

तभी गृहस्थोंका कल्याण हो सकता है तथा संसार के प्रति उनकी आसक्ति कुछ कम हो सकती है। जो पारमार्थिक गृहस्थ अर्थात् गृहस्थ वैष्णव हैं, वे जिस प्रकार अपने स्त्री-पुत्र, कन्या आदि के लिए अथाह परिश्रम करते हैं, उसी प्रकार उन्हें भगवानकी सेवाके लिए भी करना चाहिए। यदि स्त्री-पुत्र तथा परिवारके अन्य सदस्य भजन करते हैं, तो उनका अच्छी प्रकार से पालन-पोषण करना चाहिए, नहीं तो दूध पिलाकर साँप को पालना उचित नहीं है। उनका संग भजनके प्रतिकूल तथा बाधक जानकर उनसे अलग हो जाना चाहिए।

हमलोग जैसे ही प्रभु (भोक्ता) सजना चाहते हैं तथा दूसरोंपर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते हैं, वैसे ही हम माया या प्रकृति के वशीभूत हो जाते हैं। वर्तमान समय में दुःख ग्रस्त हम लोगोंका एकमात्र कल्याणप्रद कर्तव्य है कि हम संसार के प्रति आसक्ति त्यागकर कृष्णके संसारमें प्रवेश करें। निष्कपट रूपसे श्रीगुरुदेवके श्रीचरणोंका आश्रय लेनेपर ही हमारा संसारसे उद्धार हो सकता है, इस के अतिरिक्त दूसरा उपाय नहीं है। जिस गुरुकी कृपासे संसारसे किसीका उद्धार हो सकता है, क्या वे गुरु अभक्त, अन्याभिलाशी, कर्मी, कपटी, नास्तिक मायावादी या योगी हो सकते हैं? यदि परम पुरुष भगवानमें किसीकी दृढ़भक्ति न हो तो क्या वह सद्‌गुरु हो सकता है?

यह बात नहीं है कि केवल त्यागियोंको को ही गुरुसेवा करनी चाहिए, बल्कि गृहस्थ एवं त्यागी दोनोंको ही गुरुसेवा करनी चाहिए। श्रीगुरुदेवके श्रीमुख से निकलनेवाली हरिकथा सेवोन्मुख कर्णोंमें पहुँचकर अज्ञानरूप अन्धकारको दूर करती है। तब हमारे नेत्र निर्मल हो सकते हैं, जिनके द्वारा सहजरूपसे ही कृष्णका दर्शन हो सकता है ।

हमारे सर्वनाशका एकमात्र कारण है, हमारी प्रभु (भोक्ता) होनेकी इच्छा । यदि हम अपनी इच्छासे प्रेयपथ (जागतिक कामना) के मार्गपर चलकर संसार करनेके लिए दौड़ें तथा संसारमें व्यस्त रहें, तो त्रिताप ज्वाला (आधि दैविक, आधिभौतिक, आध्यात्मिक) में हमें निश्चितरूपसे जलना ही पड़ेगा। अतः जो लोग मनकी बात तथा मनोधर्मी लोगोंकी बात सुनकर सदा-सर्वदा भगवान की सेवा में लगे रहते हैं, उनके ही उपदेशोंको सम्पूर्णरूपसे निःसंकोच रूप से ग्रहण करना चाहिए।