दिव्य लीलामृत
1. आचार्य कुल के मुकुटमणि

2. अपने गुरुदेव के महिमा वर्णन में उनकी तीव्र आसक्ति

3. जीवों के प्रति उनकी विशुद्ध एवं अहैतुकी कृपा

4. एक निपुण चिकित्सक

5. भक्तों की भावना ही उनके लिए सर्वोपरि है

6. एक उत्तम प्रशासक

7. सेवा कार्यों में उनकी तत्परता

8. अपरिमेय कृतज्ञता भाव

9. सेवकों के साथ कुछ सौहार्दपूर्ण क्षण

10. तथाकथित छोटे-छोटे क्षणों में कई उत्कृष्ट शिक्षाएँ

11. वास्तविक गुरु-पूजा

12. श्रीव्रजधाम में कार्तिक व्रत

13. आचरण के द्वारा प्रचार

14. भक्ति का प्रसार भक्ति से ही होता है

15. वे घनीभूत वात्सल्य प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं

16. उत्तम शब्दों द्वारा वैष्णवों का महिमा कीर्तन

17. दूसरों की निंदा के विरुद्ध में उनकी कड़ी चेतावनी

18. भक्तों के साथ उनके कुछ अंतिम विशेष आदान-प्रदान

19. अप्राकृत भाव-सिंधु के कुछ बिंदु

20. एकांत में उनका आनंद आस्वादन

21. श्रीचैतन्य लीला में उनकी पूर्ण तन्मयता

22. सर्वत्र कृष्ण दर्शन

23. एकांत में उनके गुरुदेव के साथ उनका मिलन

24. उनकी अचिंत्य गतिविधियां

25. मेरा साथ मेरा अंतिम घनिष्ठ वार्तालाप

26. परमानन्द की लहरों में गोते लगाते हुए

27. वहां जाने से कुछ खाने की आवश्यकता नहीं होगी

28. वहाँ श्रीराधाकृष्ण हैं

29. अंतिम चरण का प्रारंभ

30. नित्य लीला में प्रवेश

31. अस्पताल बन गया एक तीर्थ स्थान

32. उनके दर्शन मात्र से ही जीव पवित्र हो जाते हैं

33. उनके द्वारा चैत्यगुरु रूप में हमारा मार्गदर्शन

34. वैष्णव अस्वस्थ क्यों होते हैं

35. श्रीकृष्ण संकीर्तन में उनकी तन्मयता

36. कोलकाता में कुछ और दिन

37. उनकी लीलाओं का आंतरिक अभिप्राय

38. उनके तिरोधान का संकेत

39. कोलकाता मठ में श्रीवास-आंगन का अवतरण

40. एक उज्ज्वल तारे का अन्तर्धान

41. श्रीधाम मायापुर में उनका अपूर्व स्वागत

42. समाधि एवं विरह उत्सव

43. श्रील गुरुदेव – एक महान् वैष्णव आचार्य

44. श्रील गुरुदेव की अंतिम वाणी
