नमः ॐ विष्णुपादाय श्रीगौर प्रियमूर्तये।
श्रीमते भक्तिवल्लभ-तीर्थ गोस्वामिनामिने॥ 1 ॥
मायावाद विखण्डनं गुरोर्वाण्यनुकीर्तनम्।
पाश्चाद्देशोपदेशकं प्रसन्नवदनं सदा॥ 2 ॥
शुद्धा-भक्ति प्रवाहकं शुद्धा-भक्ति-भगीरथम्।
भक्तिदयित माधवाभिन्न तनुं नमाम्यहम्॥ 3 ॥
नामसंकीर्तनामृत रसास्वादविधायकम्।
कृष्णाम्नायकृपामूर्तिं आचार्यं तं नमाम्यहम्॥ 4 ॥
गौर-नाम प्रचारार्द्रं भक्तसेवानुकांक्षिणम्।
सतीर्थ प्रीति सद्भावं नौमि तीर्थ महाशयम्॥ 5 ॥
1) कलियुग पावनावतारी भगवान् श्रीगौरसुन्दर के अत्यन्त प्रिय पार्षद श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज को मैं सादर नमस्कार करता हूँ।
2) मायावाद रूपी असत् शास्त्रों को भक्ति के विशुद्ध सिद्धान्तो द्वारा खण्डन करने वाले, सदैव अपने गुरुदेव की दिव्य वाणी के अनुकीर्तन में रत रहने वाले, पाश्चात्य देशों में भी भगवद्-भक्ति का उपदेश देने वाले, सदैव प्रसन्न वदन आपको मैं सादर नमस्कार करता हूँ।
3) आपने शुद्ध-भक्ति की गंगा प्रवाहित की है। शुद्ध-भक्ति के भगीरथ स्वरूप आप श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज से अभिन्न हैं। आपको मैं सादर नमस्कार करता हूँ।
4) आप श्रीनामसंकीर्तन रूपी अमृत का आस्वादन करने एवं करवाने वाले हैं, भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा के मूर्तिमान् स्वरूप व उनकी दिव्य-ज्ञान-परम्परा में आविर्भूत होकर, स्वयं आचरण करके शिक्षा देने वाले, हे आचार्यवर! आपको मैं सादर नमस्कार करता हूँ।
5) भगवान् श्रीगौरहरि के मधुर रसमय नाम के प्रचार में निरन्तर रत, सदैव भगवद्-भक्तों की सेवा करने की आकांक्षा रखने वाले, सतिर्थगण के प्रति अत्याधिक प्रीति व सद्भावयुक्त, हे परमाराध्य गुरुपादपद्म! आपको मैं सादर नमस्कार करता हूँ।