अपने गुरुभ्राताओं के विश्वास के सुपात्र
परमगुरु महाराज के अप्रकट होने के पश्चात् श्रील प्रभुपाद के एक आश्रित जन, श्रीगिरिन्द्र गोवर्धन प्रभु ने, किसी निजी सेवक के अभाव में, अपने किसी शिष्य के घर पर जाकर आश्रय ग्रहण किया। श्रीगिरिन्द्र गोवर्धन प्रभु की बात स्मरण करते-करते श्रील प्रभुपाद के एक अन्य आश्रित शिष्य, श्रील भक्तिसुहृत परमार्थी गोस्वामी महाराज ने क्रन्दन करते हुए कहा था, “यदि आज श्रीमाधव महाराज इस जगत् में होते तो कदापि श्रीगिरिन्द्र गोवर्धन प्रभु को अपने शिष्य के घर में आश्रय लेने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता। श्रीमाधव महाराज निश्चित रूप से उनकी अपने शिष्यों की देखरेख में अपने ही किसी मठ में रहने की सुव्यवस्था कर देते।” यह वृत्तान्त इस तथ्य का स्पष्ट परिचायक है कि उनके गुरुभ्राताओं को उनके अप्रकट होने पर कितना अधिक दुःख एवं विरह का अनुभव हुआ था तथा उनका गुरु महाराज के प्रति कैसा अटूट विश्वास था कि आवश्यकता होने पर वे अपने गुरुभ्राताओं की अवश्य देखभाल करेंगे।
श्रीमद भक्ति विज्ञान भारती गोस्वामी महाराज जी द्वारा शिक्षा प्रकाशित।
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