धन-सम्पत्ति का उद्देश्य माधव की सेवा

(परम) गुर महाराज के आश्रित पंजाब निवासी श्रीइन्द्र कुमार कनाडा में औषधि की दुकान खोलकर वहीं पर वास करते थे। एक बार जब वह भारत आए तो अपने साथ कनाडा से एक सोने की जेब में रखने वाली घड़ी (पॉकेट-वॉच) गुरु महाराज के लिए लेकर आए। जब उन्होंने गुरु महाराज को उपहार बॉक्स के भीतर बन्द घड़ी दी, तब तो उन्होंने उस उपहार बॉक्स को बिना खोले अपने पास रख लिया किन्तु बाद में जब उसे खोल कर देखने पर सोने से निर्मित घड़ी मिली तब गुरु महाराज ने मुझे बुलाया तथा घड़ी दिखलाई एवं श्रीइन्द्र कुमार को बुलाकर लाने के लिए कहा। मैं जब श्रीइन्द्र कुमार को बुलाकर ले आया तब गुरु महाराज ने उनसे कहा, “मैं आपके द्वारा प्रदत्त इस घड़ी को किसी भी अवस्था में उपयोग में नहीं ले सकता। साथ ही इसे अन्य किसी मठवासी को भी उपयोग करने हेतु नहीं दे सकता। कारण, कलि के स्थान स्वर्ण आदि से निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने से विषयों में आवेश होगा, इससे हरिभजन से छुटकारा हो सकता है। श्रील प्रभुपाद ने भी स्वरचित कीर्त्तन में हमें निर्देश दिया है- तोमार कनक, भोगेर जनक। कनकेर द्वारे सेवह माधव ॥ वैष्णव के [तुम्हारे पास जिस किसी उपाय से आने वाली धन-सम्पत्ति को अपनी मानने पर वह तुम्हारे भोग की जनक अर्थात् भोग-प्रवृत्ति को जागृत करने वाली बनेगी। अतएव यदि तुम्हें धन-सम्पत्ति की प्राप्ति हो तो उसे माधव अर्थात् लक्ष्मीपति की सेवा में ही लगाना।] “अतएव आप इस घड़ी को ले जाइए और इच्छा रहने पर आप इसे बेचकर ठाकुरजी के लिए कुछ बनाकर ले आ सकते हैं। इसके द्वारा आपकी ठाकुर सेवा हो जाएगी तथा हमें भी किसी प्रकार की दुविधा अथवा असमञ्जस में नहीं पड़ना पड़ेगा।”

श्रीमद भक्ति विज्ञान भारती गोस्वामी महाराज जी द्वारा शिक्षा प्रकाशित।

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