दान देने से कोई हानि नहीं होती

व्रजमण्डल परिक्रमा के समय जिस-जिस स्थान पर कैम्प लगता था, गुरु महाराज वहाँ-वहाँ पर वास करने वाले पण्डों के घर पर जितने सदस्य हैं, उसके अनुसार उनके घर पर सीदा (कच्चे चावल, दाल, आटा, सब्जी, चीनी इत्यादि) भेजते थे। बहुत बार ऐसा होता था कि मेरे गुरुभ्राता श्रीभक्तिप्रसाद पुरी महाराज पण्डे लोगों को सीदा देने में आना-कानी करते थे, किन्तु गुरु महाराज सीदा भेजे बिना किसी प्रकार से मानेंगे नहीं। गुरु महाराज श्रीपुरी महाराज को कहते थे, “बीज जितना अच्छा बोओगे, फसल उतनी अच्छी उगेगी। इसलिए अच्छा किसान अच्छे बीज को उचित समय पर बोता है। बीज को भूमि में बोने से कभी कोई हानि नहीं होती, बल्कि वह एक बीज अन्य अनेक बीजों को स्वयं से उत्पन्न करके बीज बोने वाले को उपहार स्वरूप प्रदान करता है। इसलिए किसी को कुछ देने से कभी कमी नहीं पड़ती। जो हमारे लिए होगा, वह सदैव हमारे पास रहेगा। “मैंने अपनी बाल्यावस्था में एक कहानी सुनी थी, उसे थोड़ा ध्यान से सुनो। एक बार एक ज्योतिषी ने एक व्यक्ति से कहा ‘तुम्हारे भाग्य में सदैव सवा रुपया है, न तो तुम्हारे पास कभी उससे कम होगा और न ही उससे अधिक।’ जिस व्यक्ति को ज्योतिषी ने यह बात कही, उसका स्वभाव सदैव दान करने का था। उसके पास जो कोई भी आता, वह उसे दान देता ही रहता। किन्तु तब भी उसके पास सवा रुपया बचा ही रहता। एक दिन जब उसकी ज्योतिषी से भेंट हुई, तब उसने ज्योतिषी से कहा, ‘आपने तो कहा था कि मेरे भाग्य में केवल सवा रुपया है। किन्तु मैं देख रहा हूँ कि मैंने सैंकड़ों रुपये अन्य लोगों में बाँट दिए।’ “उसकी बात सुनकर ज्योतिषी ने उसे कहा, ‘भाई, तुमने जो अन्य लोगों को दिया है वह अपने भाग्य का नहीं बल्कि उन्हीं के भाग्य का उनको दिया है। तुम इच्छा करने पर भी अपने भाग्य का अन्य किसी को नहीं दे पाओगे। इसलिए जिसे जो देना सम्भवपर हो, उसे देते हुए चले जाना। तुम्हारे भाग्य में उसके कारण कुछ भी कम नहीं पड़ेगा। वह केवल तुम्हारे माध्यम से अपने भाग्य में लिखी वस्तु को ही लेगा।” गुरु महाराज की इस बात का श्रीभक्तिप्रसाद पुरी महाराज पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे भी सम्पूर्ण जीवन पण्डे आदि सभी की यथासम्भव सेवा करते रहे।

श्रीमद भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी द्वारा एक शिक्षा
श्रील भक्ति विज्ञान भारती गोस्वामी महाराज जी द्वारा
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हमारे परम आराध्यतम श्रील गुरुदेव ने अपनी अप्रकट लीला से पूर्व निज आश्रित शिष्यों को अपनी अन्तिम उपदेश वाणी में कहा था कि कनक(धन), कामिनी(स्त्री-संग) व प्रतिष्ठा की आकांक्षा हरि-भजन में सबसे बड़ी बाधा है। साधक के लिए भक्ति के प्रतिकूल सभी कामनाओं का परित्याग करना आवश्यक है।

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज
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