उचित वस्तु का उचित समय पर आदर करना “
दो वस्तुओं के परस्पर तुलनात्मक गुरुत्व को समझकर यदि हम उचित वस्तु का उचित समय पर आदर नहीं करते तो इससे स्वयं की ही वञ्चना होगी।” एक समय श्रील गिरि गोस्वामी महाराज जब बर्मा में प्रचार-सेवा कार्य के उद्देश्य से गये, तब वहाँ पर किसी बङ्गाली समिति के प्रधान ने उनसे कहा, “महाराज, आप दुर्गा-पूजा के समय पर यहाँ आए हैं, इन दिनों सभी दुर्गा-पूजा करने में व्यस्त रहेंगे, उसी में आविष्ट रहेंगे। ऐसे में आपके मुख से श्रीचैतन्य महाप्रभु अथवा श्रीकृष्ण की कथाओं को कौन श्रवण करेगा?” श्रील गिरि गोस्वामी महाराज ने कहा, “देखो, एक होता है टेलीग्राफ, दूसरा होता है एक्सप्रेस टेलीग्राफ तथा तीसरा होता है स्टेट टेलीग्राफ। जब किसी कार्यालय में स्टेट टेलीग्राफ आता है, तब उन्हें साधारण टेलीग्राफ अथवा एक्सप्रेस टेलीग्राफ में कही गयी बात को पूर्णतया नगण्य समझकर सम्पूर्ण रूप से स्टेट टेलीग्राफ में कही गयी बात को ही गुरुत्व देकर उसके पालन में ही अपनी समस्त ऊर्जा को नियुक्त करना होता है। “ठीक उसी प्रकार जब परम ईश्वर स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण तथा उनसे अभिन्न कलियुग पावनावतारी श्रीचैतन्य महाप्रभु की कथा, उनकी शिक्षा, उनके आदर्श को श्रवण करने का सुवर्ण सुयोग उपस्थित हुआ है, तब उनकी बहिरङ्गा शक्ति दुर्गा देवी की पूजा आदि को छोड़कर उनकी कथा में आविष्ट होने पर ही अधिक लाभहोगा अन्यथा बड़े लाभ से वञ्चित तथा उचित वस्तु का उचित समय पर आदर नहीं करने से स्वयं ही वञ्चित होना पड़ेगा, किसी अन्य की इसमें क्या हानि होगी?”
श्रीमद्भक्तिसर्वस्व गिरि गोस्वामी महाराज
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