वैष्णव-सेवा के सुयोग को कभी नहीं छोड़ना
श्रीलगुरु महाराज जी ने वृन्दावनस्थ श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ में विग्रह प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में तीन दिन के उत्सव का आयोजन किया। उत्सव में तीन दिन पर्यन्त उत्तम प्रसाद की व्यवस्था की गई, प्रथम दिवस आमन्त्रित समस्त वैष्णवों के लिए, द्वितीय दिवस वैष्णवों के साथ व्रज के समस्त पण्डागण एवं उनके परिजनों के लिए तथा तृतीय दिवस युगल रूप से समस्त वैष्णवों, पण्डागण एवं साधारण समस्त लोगों के लिए। गुरु महाराज ने इस उत्सव पर लगभग बीस हजार रुपये से भी अधिक व्यय किया। उन दिनों एक रुपये में ढाई किलो आटा मिलता था। उस समय, हमारे मठ में रसोईघर तक भी नहीं बना था। टीन की छत वाले एक अस्थाई कक्ष में रसोई बनती थी। मठ की इस अवस्था को लक्ष्य कर किसी ने गुरु महाराज से कहा, “आपने जितना पैसा इस उत्सव में व्यय किया है, उसमें तो हमारे आठ कमरे बन जाते।” गुरु महाराज ने उत्तर दिया, “कमरे बनाने के लिए योगदान देने वाले बाद में इतने लोग मिल जाएँगे कि आपके पास स्थान का अभाव पड़ जाएगा। किन्तु आज जिन श्रेष्ठ वैष्णवों की एक साथ एक ही स्थान पर सेवा का सुयोग प्राप्त हुआ है, बाद में वैसा सुयोग पुनः नहीं मिलेगा
श्रील भक्ति विज्ञान भारती गोस्वामी महाराज जी द्वारा सञ्चित
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शास्त्र-वाणी व एक महाभागवत साधु की शिक्षाओं का वास्तविक अर्थ एक पूर्ण शरणागत भक्त के हृदय में प्रकाशित होता है।
श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज
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