वैष्णव-सेवा करने की प्राणपर चेष्टा करना
“वैष्णव-सेवा के बिना भगवान् की सेवा करने की प्रवृत्ति जागृत नहीं होगी, अतएव सदैव वैष्णव-सेवा करने की प्राणपर चेष्टा करना।” “त्यागी लोगों को सदैव कनक, कामिनी और प्रतिष्ठा की कामना से बचकर रहना चाहिए। कोई भी भगवद्-भजन करने के लिए आए, उसकी सहायता करनी चाहिए। माया से छुटकारा पाने के लिए इच्छुक व्यक्ति की सहायता करना भक्ति का अङ्ग है। यदि कोई मठवासी किसी कारणवश क्षुब्ध होकर अपने घर चला जाए, तो उसे उसके घर से पुनः आश्रम में लेकर आने का सत्-प्रयास करना चाहिए। वैष्णव को सेव्य ज्ञान करने से ही हम माया के चङ्गुल से बच सकते हैं, अन्य किसी उपाय से नहीं। “वैष्णव-सेवा के बिना भगवान् की सेवा करने की प्रवृत्ति जागृत नहीं होगी, अतएव सदैव वैष्णव-सेवा करने की प्राणपर चेष्टा करना। मठों में आयोजित किए जाने वाले उत्सवों, श्रीव्रजमण्डल परिक्रमा, श्रीनवद्वीप धाम परिक्रमा अथवा दक्षिण-भारत, उत्तर-भारत आदि परिक्रमाओं का एक मुख्य उद्देश्य वैष्णव-सङ्ग, वैष्णव-सेवा का सुयोग प्राप्त करना है। वैष्णवों की सेवा करना सर्वोत्तम साधन है।”
श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी
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The association of bona fide sādhus is essential for neophytes for their devotional and spiritual progress. In the case of want of bona fide devotees, they should take the help of the powerful spiritual sayings of saints by going through the devotional scriptures. One should also worship Tulsi with great devotion and pray for Her grace.
Srila Bhakti Ballabh Tirtha Goswami Maharaj
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