बिना विलम्ब किए वैष्णवों की सेवा में नियुक्त होना
एक बार जब गुरु महाराज ( श्रीलपरमगुरुदेव – श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी) कोलकाता से वृन्दावन जाने के लिए लगभग प्रस्तुत थे तथा प्रसाद ग्रहण कर रहे थे, उसी समय मैं उन्हें श्रील भक्तिदेशिक आचार्य गोस्वामी महाराज द्वारा प्रेषित पत्र पढ़कर सुना रहा था। उस पत्र में लिखा था, “मुझे अपनी आँखों के लिए ढाका फार्मेसी से है, वह औषधि व्रज में कहीं पर भी उपलब्ध नहीं हो रही, यदि सम्भवपर हो, आप अपने साथ ले आइएगा।” गुरु महाराज ने मुझे तुरन्त कहा, “पैसे ले लो, औषधि लेकर सीधे हावड़ा स्टेशन पर पहुँच जाना। मेरा कोच नम्बर अमुक है। मैं यदि औषधि के लिए मठ में तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा तो गाड़ी छूट सकती है। इसलिए मैं तुम्हें स्टेशन पर अपने कोच में मिलूँगा।” मैं जब ढाका फार्मेसी पर पहुँचा तो दुकानदार झाडू लगा रहा था, मेरी बात सुनकर उसने शीघ्र झाड़ लगाई, किन्तु कहा कि धूप अगरबत्ती करने के बाद ही औषधि देगा। उसकी ऐसी बात सुन कर मेरे हृदय की कैसी अवस्था हुई, मैं ही जानता हूँ। मैं मात्र उसके प्रातः कालीन धार्मिक कृत्य के समाप्त होने की प्रतीक्षा ही कर सकता था। जो हो, मैं जब औषधि लेकर हावड़ा स्टेशन के भीतर गया, मैंने देखा गाड़ी प्लेटफार्म से जाने की लिए प्रस्तुत है, हरी झण्डी भी हो चुकी है। मैं जहाँ था मैंने अपनी लकड़ी की खड़ाऊँ को वहीं पर छोड़कर गुरु महाराज के कोच की ओर ऐसी दौड़ लगाई, मानो मुझे कोई बहुत बड़ा स्वर्ण पदक मिलेगा। मैंने देखा कि गुरु महाराज स्वयं कोच के द्वार पर खड़े होकर अपने गुरुभ्राता की औषधि की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैंने बिना किसी वार्तालाप के जैसे ही औषधि गुरु महाराज के हाथ में पकड़ाई वैसे ही गाड़ी चल पड़ी। चलते-चलते गुरु महाराज ने केवल यही कहा, “हम धन्य हैं कि वैष्णव-सेवा के सुयोग का लाभ उठा पाए।”
श्रील भक्ति विज्ञान भारती गोस्वामी महाराज जी
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It is stated in the scriptures ‘putrārthe kriyate bhāryyā’ i.e. one should marry for begetting children by observing all the regulations enjoined in the Vedas. This is also a religious life. One should not marry for sense- gratification only.
Srila Bhakti Ballabh Tirtha Goswami Maharaj