शुकदेव गोस्वामी जी ने दुर्वासा के दृष्टान्त के द्वारा हमें भक्तों के चरण में अपराध करने के विषय में विशेषरूप से सावधान किया है। दुर्वासा जैसे महातपस्वी ने जब तक महाराज अम्बरीष की निष्कपट भाव से स्तव-स्तुति नहीं की, तब तक सुदर्शन प्रसन्न नहीं हुए। परन्तु महाराज अम्बरीष की स्तुति सुनकर भक्त वस्तल भगवान् के सेवक सुदर्शन शान्त हो गये और उन्होंने दुर्वासा जी के कुदर्शन को दूर कर दिया। जब तक सुदर्शन की प्रसन्नता नहीं होती है, तब तक कुदर्शन नहीं हटता है अर्थात् जब तक भक्त की कृपा प्राप्त नहीं होती, तब तक विष्णु और वैष्णवतत्व के दर्शन की योग्यता प्राप्त नहीं होती।
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