हमारा प्रधान कर्तव्य

हम प्रत्येक जन्म में ही विषयों को प्राप्त करेंगे, भोक्ता होकर कर्मफल का भोग भी भोगेंगे । उन समस्त भोगों को भोगने के लिए तो बहुत से जन्म हैं, परन्तु जो काम सबसे बड़ा है- भगवान की सेवा, जो मनुष्य जन्म के अतिरिक्त किसी भी जन्म में सम्भव नहीं है, हमें उठकर तत्परता से उसमें लग जाना चाहिए । यदि हम देवता होते, तो हमें हरिकथा सुनने का अवसर या समय प्राप्त नहीं हो पाता । अतः जीवन रहते-रहते ही जिससे हमें भगवान की प्राप्ति हो जाय, इसके लिए हमें जी-जान से चेष्टा करनी चाहिए । क्योंकि भगवान की सेवा के अतिरिक्त जीव के लिए बड़ा कर्तव्य और कोई नहीं है।

श्रीलप्रभुपाद
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“हमें आगे-पीछे की सब चिन्ता कर अत्यन्त सावधानीपूर्वक व्यवहार करना पड़ेगा, अन्यथा नए साधक हमारे अदायित्वपूर्ण कार्य के कारण भक्ति के मार्ग से च्युत हो सकते हैं।”

श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज
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