वैष्णवों के किस-किस दोष को देखने से वैष्णव निन्दा होती है
वैष्णवेर जाति आर पूर्वदोष धरे।
कादाचित्क दोष देखि’ येइ निन्दा करे ।।
नष्टप्राय दोष ल ‘ये करे अपमान।
यमदण्डे कष्ट पाय से सब अज्ञान ।।
वैष्णवेर मुखे नाम – माहात्म्यप्रचार ।
से वैष्णवनिन्दा कृष्ण नाहि सहे आर ।।
धर्म – योग – याग – ज्ञानकाण्ड परिहरि’।
ये भजिल कृष्णनाम, सेइ सर्वोपरि ।।
माना किसी वैष्णव का जन्म छोटी जाति में हुआ हो और कोई व्यक्ति उसका यह जाति दोष देखे या किसी ने श्रीकृष्ण के चरणों में पूर्ण शरणागति लेने से पहले अगर कोई पाप किया हो और कोई उस पाप को याद करवा कर उस भक्त की निन्दा करे अथवा अचानक किसी वैष्णव से कोई पाप – कर्म हो जाये या कोई वैष्णव ऐसी स्थिति में हो कि पहले पाप करता था परन्तु अब वह शरणागत रहकर भजन करता है परन्तु थोड़े बुरे संस्कार अभी बाकी हैं, इनको देखकर ही कोई उसकी निन्दा करे या उसका अपमान करे तो वह अज्ञानी, वैष्णव – निन्दक, यमदण्ड का भागीदार बनता है। वैष्णवों के मुख से ही श्रीकृष्ण – माहात्म्य का प्रचार होता है। ऐसे वैष्णवों की निन्दा को श्रीकृष्ण बिल्कुल भी सहन नहीं करते। दुनियावी भोग दिलाने वाले ध र्म-कर्म-यज्ञ अथवा मोक्ष दिलाने वाले ज्ञान काण्ड को भी छोड़कर जो श्रीकृष्णनाम का भजन करते हैं, वे ही सर्वोपरि हैं।
श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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