गुरु ही जिनके जीवन हैं, गुरु ही जिनके आदर्श हैं, गुरुसेवा ही जिनका व्रत है, गुरु एवं कृष्ण में समान रूप से प्रीतियुक्त होने पर भी जो गुरु के अधिक पक्षपाती हैं, वे ही गुरुभक्त या असली शिष्य हैं । असली शिष्य दुर्बल नहीं होते, वे गुरु की कृपा के बल से बलवान् होते हैं। गुरु की कृपा या गुरुसेवा ही उनका बल या भरोसा है । असली शिष्य प्राण जाने पर भी कभी भी गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते । श्रीगुरुदेव कृपापूर्वक उसे जिस सेवा का भार प्रदान करते हैं, उसे वह प्राण देकर भी पूरा करते हैं, इसीलिए वे गुरु की कृपा भी पाते हैं ।
श्रीलप्रभुपाद
_ _ _ _ _ _ _ _ _
सभी जीवों का स्वार्थ और परमार्थ श्रीकृष्ण भजन ही है। किसी भी अवस्था में या किसी भी वर्ण अथवा आश्रम में रहकर आप उपरोक्त भजन कर सकते हैं। परन्तु किसी वर्ण अथवा आश्रम में फंसकर निर्गुण श्रीहरि के सान्निध्य की प्राप्ति अथवा उनकी शुद्ध सेवा नहीं हो सकती । इससे तो पुनः पुनः जन्म-मरण में ही फंसे रहना पड़ेगा।
श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज
_ _ _ _ _ _ _ _