भागवत – अधोक्षज मूर्तविग्रह है-
पादौ यदीयौ प्रथमद्वितीयौ तृतीयतुर्यौ कथितौ यदूरू नाभिस्तथा पञ्चम एव षष्ठौ भुजान्तरं दोर्युगलं तथान्यौ।
कण्ठस्तु राजन्नवमो यदीयो मुखारविन्दं दशमः प्रफुल्लम् एकादशो यस्य ललाटपट्ट शिरोऽपि तु द्वादश एव भाति ॥
तमादिदेवं करुणानिधानं तमालवर्ण सुहितावतारम् ।
अपारसंसार-समुद्र-सेतुं भजामहे भागवत-स्वरूपम् ॥
(पद्म-पुराण)
अपार संसार-सागर पार होनेके लिए सेतु-स्वरूप आदिदेव, करुणा-निधान, तमालवर्ण श्रीकृष्णके मङ्गलमय शाब्दिक अवतार श्रीमद्भागवतका मैं भजन करता हूँ। इस ग्रन्थावतारके द्वादश स्कन्ध द्वादश अङ्ग-स्वरूप हैं। प्रथम और द्वितीय स्कन्ध इनके युगलपाद हैं, तृतीय और चतुर्थ स्कन्ध इनकी जंघाएँ हैं, पञ्चम इनका नाभिदेश है, षष्ठ स्कन्ध इनका भुजान्तर अर्थात् वक्षःस्थल है। सप्तम और अष्टम ये दोनों इनके युगल बाहु हैं, दशम स्कन्ध इनका प्रफुल्ल मुख पद्मस्वरूप है, एकादश स्कन्ध इनका ललाटदेश एवं द्वादश स्कन्ध इनका मस्तक है।