सम्प्रदाय के आदिगुरु की शिक्षाओं को अवलम्बन करके आचरण करें

साधु – सम्प्रदाये, आचार्य सकल,
शिक्षागुरु प्रतिष्ठित ।

आद्याचार्य यिनि, गुरु – शिरोमणि,
पूजि’ ताँ रे यथोचित ।।

ताँ रे सुसिद्धान्त, अनुगत ह’ये,
ना मानिव अन्य शिक्षा।
ताँहार आदेश, पालिव यतने,
ना लइव अन्य दीक्षा ।।

वैष्णव – सम्प्रदाय के सभी आचार्य, शिक्षा गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं किन्तु जो आदि – आचार्य हैं, वे गुरु शिरोमणि हैं। उनकी यथोचित पूजा करनी चाहिए। इधर-उधर की बातें न सुनकर आदि आचार्यों के सुसिद्धान्तों का ही अनुसरण करना चाहिए एवं बड़े यत्न के साथ उनके आदेशों का पालन करना चाहिए तथा किसी वैष्णव- परम्परा से ही दीक्षा लेनी चाहिए, अन्य कहीं से नहीं।

वैष्णव-सम्प्रदाय के गुरु का वरण करना ही अनिवार्य है

सम्प्रदाय गुरुगणे शिक्षा – गुरु जानि’।
अन्यमत पण्डितेर शिक्षा नाहि मानि ।।

सेइ मते सुशिक्षित साधु सुचरित ।
दीक्षा – गुरु – योग्य सदा जाने सुपण्डित ।।

वैष्णव – सम्प्रदाय के आचार्यों को ही शिक्षा गुरु मानना चाहिए। अन्य – मतों के विद्वानों की शिक्षा ग्रहण नहीं करनी चाहिए। वैष्णव सम्प्रदाय के सिद्धान्तों में सुशिक्षित एवं चरित्रवान ही दीक्षा गुरु होने के योग्य हैं, ऐसा वैष्णव – विद्वानों का मत है।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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