मायादेवी की निष्कपट कृपा ही हमारा प्रयोजन है
मायावादी से-सब पाषण्डे अधोगति।
दिया नामामृते आर नाहि देन मति ।।
तबे यदि साधुसेवाय तुष्ट हन माया।
अकपटे देन तबे कृष्णपदछाया ।।
माया कृष्णदासी, बहिर्मुख जीवे दण्डे।
माया पूजिलेओ शुभ नाहि पाय भण्डे ।।
कृष्णनाम करे येइ, मायावादी तारे।
निष्कपटे कृपा करि लय भवपारे ।।
अतएव श्रुतिनिन्दा अपराध त्यजि।’
अहरहः नामसंकीर्त्तनरसे मजि ।।
इस प्रकार पाखंड आचरण करने वाले व्यक्ति को मायादेवी अधोगति प्रदान करती है एवं भगवद् नाम में उनकी मति नहीं होने देती किन्तु यदि साधक की साधु – सेवा की निष्कपट भावना द्वारा मायादेवी अर्थात् दुर्गादेवी प्रसन्न हो जाती हैं तो वे भी निष्कपट भाव से उसको श्रीकृष्ण के पाद – पद्मों की छाया प्रदान करती हैं। मायादेवी श्रीकृष्ण की दासी हैं। वह श्रीकृष्ण से विमुख जीवों को दण्ड देती हैं। मायादेवी अपनी पूजा से इतना प्रसन्न नहीं होतीं जितना श्रीकृष्ण की पूजा से प्रसन्न होती हैं। जो श्रीकृष्ण का नाम उच्चारण करते हैं, मायादेवी उन पर निष्कपट कृपा करते हुये उन्हें भवसागर से पारा ले जाती हैं। अतः श्रुति – शास्त्र की निन्दारूपी अपराध को छोड़कर श्रीनाम संकीर्तन रस में मग्न रहना चाहिए।
श्रीहरिनाम चिन्तामणि