वेद विरुद्ध वाद

जैमिनि, कपिल, नग्न, नास्तिक, सुगत।
गौतम – ए छयजन हेतुवादे हत ।।

वेद माने मुखे, तबु ईश नाहि माने।
कर्मकाण्ड श्रेष्ठ बलि’ जैमिनि बारखाने ।।

ईश्वर असिद्ध, कपिलेर कल्पनाय।
तबु योग माने, अर्थ बुझा नाहि याय ।।

नग्न से तामसतन्त्र करय विस्तार।
वेदेर विरुद्ध धर्म करये प्रचार ।।

नास्तिक चार्वाक, कभु वेद नाहि माने।
सुगत बौद्धेरा एक प्रकार बारखाने ।।

गौतम न्यायेर कर्त्ता ईश्वर ना भजे।
तार हेतु वादमते नरमात्र मजे ।।

जैमिनी, कपिल, नग्न, नास्तिक, सुगत तथा गौतम ये छः व्यक्ति हेतुवाद से ग्रस्त हैं। जैमिनी, मुख से वेदों को तो मानते हैं परन्तु ईश्वर को नहीं मानते। उनका कहना है कि कर्मकाण्ड ही श्रेष्ठ है। कपिल की कल्पना में ईश्वर असिद्ध है, काल्पनिक है परन्तु फिर भी उन्होंने जिस योगमार्ग की शिक्षा दी है, उसका तात्पर्य क्या है, समझ में ही नहीं आता। नग्न ने तामस – तन्त्र का विस्तार करके वेद – विरुद्ध धर्म का प्रचार किया। नास्तिक चार्वाक तो कभी भी वेद को नहीं मानते। सुगत जो बौद्धधर्म का पालन करते हैं, वे अलग ही तरह की व्याख्या करते हैं। न्याय दर्शन के रचयिता गौतम, भगवान को नहीं मानते। इनके हेतुवाद में मनुष्य उलझे हुये हैं।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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