वेदों में से मुख्य दस मूल शिक्षा और नौ प्रमेय

सेइ श्रुतिशास्त्रे जानि – कर्मज्ञान छार।
निर्मल – भक्तिते मात्र पाइ सर्वसार ।।

मायामूढ़ – जीवे कर्मज्ञाने शुद्ध करि’।
शुद्ध भक्ति अधिकार शिरवाइला हरि ।।

प्रमाण से वेदवाक्य, नयटी प्रमेय।
शिवाय सम्बन्ध, प्रयोजन, अभिधेय ।।

एइ दशमूल सार – अविद्या – विनाश।
करिया जीवेर करे सुविद्या प्रकाश ।।

1) हरि एक परत्तत्त्व,

2) तिनि सर्वशक्तिमान,

3) तिनि रसमूर्ति

प्रथमे शिखाय – परतत्त्व एक हरि।
श्याम, सर्वशक्तिमान्, रसमूर्त्तिधारी ।।

जीवेर परमानन्द करेन विधान।
संव्योम धामेते ता’र नित्य अधिष्ठान ।।

ए तिन प्रमेय हय श्रीकृष्णविषये।
वेदशास्त्र शिक्षा देन जीवेर हृदये ।।

श्रुति – शास्त्रों के माध्यम से हम यह जानते हैं कि कर्म और ज्ञान जीव के वास्तविक उद्देश्य को पूरा नहीं करते, केवल मात्र निर्मल भक्ति ही जीव को उसके जीवन का वास्तविक उद्देश्य प्रदान करती है। माया से मोहित जीव कर्म तथा तुच्छ ज्ञान के चक्कर में उलझे रहते हैं। भगवान श्रीहरि ने कृपा करके जीवों को कर्म और ज्ञान से ऊपर उठाकर शुद्ध भक्ति का अधिकार दिया एवं उसकी शिक्षा प्रदान की क्योंकि शुद्ध भक्ति से ही श्रीकृष्ण – प्रेम की प्राप्ति होती है। भगवान कहते हैं कि वेद तथा नौ प्रमेय इसके प्रमाण हैं। वेद, जीव को सम्बन्ध, अभिधेय तथा प्रयोजन तत्त्व की ही शिक्षा देते हैं। यह दस मूल शिक्षा* ही तमाम उपदेशों का सार है। इस दशमूल शिक्षा से अविद्या का विनाश होता है तथा ये दशमूल शिक्षा जीव के हृदय में सुविद्या (आध्यात्मिक विद्या) का प्रकाश करती है।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि