हम बद्ध जीव हैं। पशु उत्पादों को प्रयोग करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति हम में पहले से ही विद्यमान है। अतएव इन उत्पादों के साथ संपर्क में रहने से हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा होगी।
प्रश्न – क्या एक भक्त ऐसे औषधि के कारखाने में कार्य कर सकता है जहाँ पशु उत्पादों का प्रयोग किया जाता है और दुर्गंध आदि की भी आशंका हो?
श्रील गुरुदेव – ऐसी पशु-उत्पाद युक्त औषधियों का प्रयोग करने पर पशु-प्रवृत्ति से दूषित होने की आशंका है। ऐसी प्रवृत्ति के संक्रमण (संदूषण) से हमारे चित्त के कलुषित होने की संभावना होती है भले ही इनका सेवन हम प्रत्यक्ष रूप से करें अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ही इन उत्पादों के संपर्क में क्यों न हो।
पुरातन काल में, भारत में सभी प्रकार की व्याधियों का उपचार जड़ी-बूटियों से तैयार की गई औषधियों द्वारा अत्यन्त प्रभावशाली पद्धति से किया जाता था। किन्तु भारत पर सैकड़ों वर्षों के विदेशी प्रभाव के कारण, अब जड़ी-बूटियों के ज्ञान का अभाव है व आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रचलन कम हो गया है। वर्तमान समय में पश्चिमी चिकित्सा प्रणाली प्रचलित हैं जिसमें औषधियों के निर्माण के लिए पशु उत्पादों का अधिक उपयोग किया जाता हैं। इसकी अपेक्षा यदि वे आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करें तो अधिक उपयुक्त होगा।
हम बद्ध जीव हैं। पशु उत्पादों को प्रयोग करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति हम में पहले से ही विद्यमान है। अतएव इन उत्पादों के साथ संपर्क में रहने से हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा होगी। विशेषकर एकादशी तिथि में, किसी गंभीर व्याधि के लिए भी, पशु उत्पाद युक्त औषधि को ग्रहण करना वर्जित है।
इसके विपरीत, मैंने समाचारपत्र में पढ़ा है कि पश्चिमी देशों में लोग अब शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता देने लगे हैं। शाकाहार को स्वीकार करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि वे यह मानने लगे हैं कि मांसाहार कई व्याधियों का कारण है।