एक गृहस्थ-भक्त का उसका माता-पिता व पत्नी के प्रति उत्तरदायित्व है। वह याचक नहीं है, वह भिक्षा नहीं कर सकता। उसे गृहस्थ-जीवन निर्वाह करने के लिए धन उपार्जन करना होगा।
प्रश्न – मेरे पुत्र को धन-उपार्जन कार्य में रुचि नहीं है। मैं उसके लिए चिंतित हूँ कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करेगा, क्योंकि उसकी पत्नी ने भी अपने कार्य को त्याग दिया है। इस स्थिति का समाधान होना अत्यन्त आवश्यक है। मैं आपके श्रीचरण कमलों में अपना प्रश्न निवेदन कर रही हूँ। कृपया कर मेरा मार्गदर्शन करें कि ऐसी स्थिति में अपने लिए और अपने पुत्र की सहायता करने के लिए मेरा क्या कर्तव्य है?
श्रील गुरुदेव – एक माता के लिए अपनी संतान के प्रति प्रीति भाव होना स्वाभाविक है। संतान में भी अपनी माता से अनेकों अभीष्ट वस्तुएँ माँगने की वृत्ति होना स्वाभाविक है। सम्बन्ध की इस निहित प्रकृति को परिवर्तित करना अति कठिन है। उस बालक के प्रति उदासीन व कठोर होकर व्यवहार करना जिसे आपने अपने गर्भ से जन्म दिया है आपके लिए कैसे संभवपर है? क्योंकि वह अपनी माता की देख-रेख में कार्यरत है, उसका कार्य, अन्य कंपनी के प्रबंधक (बॉस) के लिए किए गए कार्य के समकक्ष नहीं होगा।
क्योंकि आपका पुत्र युवा व शिक्षित है, उसे समझना होगा कि वह त्यागी नहीं है; वह एक गृहस्थ-भक्त है; विवाहित भी है। उसका माता-पिता व पत्नी के प्रति उत्तरदायित्व है। वह याचक नहीं है, वह भिक्षा नहीं कर सकता। उसे गृहस्थ-जीवन निर्वाह करने के लिए धन उपार्जन करना होगा। भविष्य में उसकी माता अपनी अग्रिम आयु के कारण कंपनी का सेवा-कार्य उस क्षमता से नहीं कर पाएगी जिस प्रकार वे अभी कर रही हैं। इसलिए उसके लिए यही उपयुक्त होगा कि वह आपके कार्य-भार को कम करने का प्रयास करे। अधिक धन उपार्जन करने की आवश्यकता नहीं है क्योकि इस कामना का कोई अंत नहीं है। जीवन निर्वाह के लिए जितना आवश्यक है, आप दोनों को न्यूनाधिकरूप से उतना धन उपार्जन करना है। अन्यथा, भविष्य में पूरा परिवार कठिनाई में होगा। गृहस्थ भक्तों को अपनी न्यूनतम अर्जित धनराशि से ही निर्वाह करना होता है। यदि वे इसके प्रति उदासीन रहेंगे तो परिवार में और अधिक समस्याएँ उत्पन्न होंगी। गृहस्थ भक्त त्यागी भक्तों के समान भजन में रत नहीं रह सकते। उन्हें सांसारिक क्रिया-कलापों के लिए भी समय देना होगा।
क्योंकि आपका पुत्र आपकी देख-रेख में कार्यरत है, उसके लिए अधिक कठिनाई नहीं है। यदि वह अन्य किसी कंपनी में कार्य करने के लिए जायेगा तो उसे धन उपार्जन के लिए अधिक समय देना पड़ेगा और नए वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई होगी। आपके तत्वावधान में कार्य करना ही उसके लिए श्रेयस्कर है। आप अपने पुत्र को एक उत्तरदायी व्यक्ति के समकक्ष योग्य नहीं जान कर चिंतित हैं। मुझे विश्वास है कि शिक्षित होने के कारण वह अपनी इस कमी को समझकर, कम्पनी द्वारा दिए गए उत्तरदायित्व का निर्वाह करेगा और आपको राहत प्रदान करेगा।
श्रीगुरुगौरांग आप पर कृपा करें। आप सभी को मेरा स्नेह।