गुरु महाराज जी के सभी गुरुभ्राता उनके पास जाकर बोले कोई चिंता नहीं करते हैं, आपने तो बहुत स्थानो पर बड़े बड़े मठो की स्थापना की है। हमारे गुरुमहाराज जी का आविर्भाव स्थान भी आप प्रकाशित कीजिए। आपके अतिरिक्त और किसी से हमे आशा नहीं है। गुरुमहाराज जी का ऐसा व्यक्तित्व है जब किसी कार्य को ठान लेते है तो उसे पुरा करके ही रहते है। जब सब गुरुभाई ने बोल दिया तब यह सुनकर गुरु महाराज समझ गए कि उनके सभी गुरुभ्राता इस महत् कार्य का दायित्व केवल उन्हें ही सौंप कर उन पर कृपा कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने उन सभी को साक्षात् दण्डवत् प्रणाम ज्ञापन किया। इस प्रकार अत्यन्त हर्षपूर्वक उन्होंने श्रील प्रभुपाद के जन्मस्थान को संग्रह करने का सम्पूर्ण दायित्व स्वीकार किया।
अनेक प्रकार की कठिनाइयों एवं परेशानीयों (सुप्रीम कोर्ट का मामला था। बहुत सारे किरायेदार उस जगह पर रहते थे उन सबको वह से हटाना बहुत मुश्किल था। ) के कारण जिस स्थान की प्राप्ति की आशा को परित्याग करके इस्कॉन जैसे बृहद् एवं साधन-सम्पन्न संस्थान के लोग भी हताश होकर चले गए थे, उस स्थान को प्राप्त करने हेतु गुरु महाराज ने अनेक शारीरिक एवं मानसिक कष्ट-यातनाओं को स्वीकार किया। मैंने गुरुजी से कहा कोई चिंता नहीं करा रहा है, आप क्यों इतना कष्ट उठा रहे हैं? आपका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है किन्तु गुरुमहाराज ने मेरी बात का कोई उत्तर ही नहीं दिया। मुझे बोला तुम मुख्या मंत्री को चिट्ठी लिखो। गुरूजी ने हमें सेवा में लगाने के लिए प्रयास किया। मूल में गुरूजी हैं उन्होंने ही सब कुछ किया। ऐसा व्यक्तित्व है। रंगनाथ मिश्र(जो बाद में सुप्रीम कोर्ट का चीफ़ जस्टिस बने थे ) ने गुरूजी का पूरा साथ दिया।। उन्होंने गुरूजी से कहा आप चेष्टा कीजिये सब हो जायेगा। गंगाधर महापात्र ने भी गुरूजी का पूरा समर्थन दिया। इसतरह बड़े-बड़े लोग गुरुजी के सहयोग में उनके पीछे खड़े हो गए। गुरुजी पंजाब में प्रचार कार्य में व्यस्त थे तब गाधर महापात्र ने संवाद दिया, कहा एक और मठ आ गया है उन्होंने आवेदन-पत्र भेजा तथा साथ में प्रमाणों सहित अनेक पत्र एवं दस्तावेज़ प्रस्तुत किए एवं कहा– “हमारा श्रीचैतन्यमठ ही मूल मठ है । हमें ही श्रील प्रभुपादजी की आविर्भाव-स्थली का दायित्व ग्रहण करने का वास्तविक अधिकार है। श्रीमाधव महाराज ने जिस मठ की ओर से आवेदन-पत्र दिया है,वह मूल मठ नहीं है।” साथ-ही-साथ उन्होंने उच्च-न्यायालय में भी स्टे-ऑर्डर प्राप्ति हेतु याचिका दाखिल कर दी।
तब गुरूजी को समाचार दिया कि आपको आना पड़ेगा। तब गुरूजी ने कहा मैं तो नहीं आ सकता हूँ यहाँ जगह-जगह प्रचार कार्य चल रहा है, मैं तीर्थ महाराज को भेज दूंगा। तब गुरुजी मुझे बोला तुम्हें जाना होगा । वहाँ जा कर देखा तो जो अन्य मठ था उनकी और गवर्नर की अच्छी मित्रता थी मैंने गुरूजी से प्रार्थना की (मठ ) उनकी पॉकेट में गवर्नर, चीफमिनिस्टर सब है, आपको आना पड़ेगा। मैंने जब उनसे इस प्रकार प्रार्थना की तब गुरुमहाराज प्रचार कार्य छोर्ड कर पुरी में आ गये। वहाँ का गवर्नर यति था। गुरूजी बिना किसी पूर्व सुचना दिया ही (अपॉइंटमेंट) यति साहब से मिलने के लिए गवर्नर हाउस पहुंच गए। तब यति साहब उस समय बाहर जा रहा थे। उनके साथ बहुत सुरक्षा-कर्मी थे। तब यति साहब अपनी गाडी से उतर गए खड़े हो गए तब सिक्योरिटी वालो को भी चिंता हो गयी क्या हुआ कभी ऐसा देखा नहीं। गुरूजी को देख कर यति आकर्षित हो गए। उन्होंने गुरूजी के पास आकर प्रणाम किया। गुरूजी बोले मैं अपॉइंटमेंट के बिना आपसे मिलने आ गया हूँ। वे बोलै मैं अभी आता हूँ। थोड़ी देर बाद वे आ गए गुरुजी को देखर ओर उनसे बात कर उल्टा हो गया, विरुद्ध पक्ष के सब पॉकेट खली हो गए। उन लोगो ने गवर्नर को कुछ पैसा दिया था अपने पक्ष में करने के लिए परन्तु गुरु महाराज के दर्शन से ही गवर्नर का हृदय परिवर्तित हो गया। प्रभुपाद की कृपा से न्यायालय द्वारा स्टे-ऑर्डर (रोक-आदेश) पारित होने से एक दिन पूर्व ही स्थान का पञ्जीकरण कार्य सम्पन्न हो गया। भगवान की इच्छा,जग्गनाथ की इच्छा,गुरूजी इतने समर्थ हैं वहाँ पर प्रभुपाद का स्थान मिल गया।
पुरी रंगनाथ मिश्र ने वर्ल्डस रिलीजियस कांफ्रेंस(विश्व-धर्म सम्मलेन) का आयोजन किया था। उन्होंने गुरुजी से कहा। दिन में सुबह ओर शाम दोनों समय सभा होगी , ४ दिन दोनों समय की सभा में आपको बैठना होगा एक दिन आप प्रवचन से सभा शुरू करेंगेओर दुसरे दिन प्रवचन से समाप्त करेंगे। उन्सहोंने कहा सब धर्म-सम्प्रदाय (बौद्ध , मुसलमान )के लोगो के भी प्रवचन होंगे, आप सिर्फ बैठेंगे रंगनाथ मिश्र ने कहा तो गुरु महाराज दोनों समय सभा में बैठते थे। एक दिन बांकी कॉलेज के पूर्व अध्यक्ष श्री राजकिशोर राय ब्राह्मणों की विशेष सभा के पौरोहित्य कार्य के लिए गुरुजी को अपने साथ ले गए। उस दिन संध्या की सभा में गुरुजी नहीं आ पाए तो दुसरे दिन उस सभा के कुछ विशेष व्यक्तिओं ने मुझसे कहा आपके गुरूजी कल क्यों नहीं आए? कल सभा की शोभा नहीं हुई। आपके गुरूजी के बैठने से लगता है कोई महापुरुष विराजमान है आपके गुरूजी नहीं है तो सभा की कोई शोभा ही नहीं है। इसतरह से बाहर के व्यक्ति जिन्होंने गुरुजी को पहले देखा नहीं वे भी उनसे आकर्षित हो गए। शुरू से अंत तक गुरूजी इस प्रकार का प्रभाव था। जो असंभव था वह भी संभव हो गया, कोई चिंतन ही नहीं कर सकता। जब हम वहाँ गए (प्रभुपाद जी केजन्म स्थान पर ) देखा गन्दा पानी था, प्रणाम करने की भी इच्छा नहीं होती थी, इतने किरायेदार रहते थे, कोई वह स्थान छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।किन्तु गुरुजी की कृपा से सब असंभव भी संभव हो गया।
जब उनका अंतर्ध्यान हुआ था, मैं तो हतप्रभ हो गया। इतना बड़ा पुराना बिल्डिंग तोड़ के मंदिर निर्माण का कार्य पूरा कैसे करेंगे। तब गुरुजी ने कैसी व्यवस्था की!! केशव प्रभु , बाबाजी महाराज और मैं रास्ते से जा रहे थे, कोई एक व्यक्ति जिसको हमने पहले कभी देखा नहीं, ज़िंदगी में कभी हुआ नहीं ऐसा रास्ते में चलते हुए हुआ। उस व्यक्ति ने मुझे 500 ओर उन दोनों को २००-२०० रूपये दिए।इस तरह से रस्ते में अचानक से भागकर आकर कोई पैसे देता नहीं है मुझे विचार आया कि गुरूजी जैसे बता रहे हैं कि इनके पास जाओ आपका कार्य हो जायेगा। बाबाजी महाराज से आकर्षित होकर उन्होंने अपने घर में बुला कर कीर्तन किया।गुरुमहाराज जानते है इनसे होगा नहीं, बोल रहे है इनके पास जाओ ये व्यक्ति धन देकर सहायत करेगा। जो कुछ बाद में हुआ वो भी गुरूजी की इच्छा से हुआ। वे केवल बोलने मात्र से नहीं आचरण करके दिखाते थे। कोई उनमें दोष ढूंढने का यथा-साध्य प्रयास करेंगे तब भी नहीं ढूंढ पायेगा, गुरूजी most ideal character थे। केवल भाषण देने वाले नहीं थे।