परमगुरुदेव (श्री भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद) ने अपनी आविर्भाव तिथि में हमें सावधान करते हुए जो कहा वह एक बहुत ध्यान देनेवाली बात है। हमारे गुरुजी ने भी इस विषय में हम लोगो को उपदेश दिया था। परमगुरुदेव अपनी पचासवीं आविर्भाव तिथि में उल्टाडांगा रोड में गुरुपूजा के लिए आए अपने शिष्यों को आशीर्वाद देते हुए बोल रहे थे। उन्होंने शिष्यों को सम्बोधन किया,” हे विपत्त-तारण बान्धव गण” (विपत्त से उद्धार करनेवाले बंधू), आप लोग अन्वय विचार से सब गुरुवर्ग है और आपने अपने बहुमूल्य भजन के समय को मेरे जैसे पापी व्यक्ति की बाते सुनने के लिए दिया।
जिन प्रभुपाद ने सम्पूर्ण विश्व में कृष्ण भक्ति का प्रचार किया और आलौकिक रूप से जिनका आविर्भाव हुआ, वे अतिमर्त्य महापुरुष यहाँ हमें यह शिक्षा दे रहे हैं कि यदि स्वयं को गुरु समझ लिया तो हम बहुत बड़ी मुश्किल पड़ जायेंगे। महाप्रभु ने भी इस विषय में शिक्षा दी है, हम लोग नवद्वीप धाम परिक्रमा में चंद्रशेखर आचार्य भवन दर्शन के लिए जाते हैं, वहाँ पर महाप्रभु ने एक लीला की थी, उन्होंने कहा था कि मैं अभी लक्ष्मी का भाव ले कर नृत्य करूँगा। वहाँ पर महाविष्णु के अवतार अद्वैत आचार्य, ब्रह्माजी के अवतार हरिदास ठाकुर, नारद जी के अवतार श्रीवास पंडित, उनकी पत्नी और बाकी सभी पार्षद है। महाप्रभु बोले, “मैं अभी लक्ष्मी भाव में नृत्य करूँगा जो जितेन्द्रिय नहीं है, जो इन्द्रियों के दास हैं उनको मेरी इस लीला को देखने का अधिकार नहीं है, जो केवल जितेंद्रिय है वे ही देख सकते हैं।“ महाविष्णु अवतार (अद्वैत आचार्य) जिनके हुंकार से गौरांग महाप्रभु का अवतार हुआ, वे कहते मैं तो जितेंद्रिय नहीं हूँ, मैं तो इन्द्रियों का दास हूँ मेरा तो दर्शन करने का अधिकार नहीं है। हरिदास ठाकुर भी कहते,” मैं भी अपनी इन्द्रियों का दास हूँ, मेरा भी अपनी इन्द्रियों पर संयम नहीं, इसलिए मेरा भी दर्शन करने का अधिकार नहीं है, श्रीवास पंडित ने भी यही कहा। महाप्रभु की शर्त सुनकर सभी दु:खी हो गए किन्तु महाप्रभु सबकी बाते सुनकर मुस्कुराये क्योंकि वे जानते हैं कि वास्तव में ये लोग ही जितेंद्रिय है। महाप्रभु ने कहा,”ठीक है मेरी कृपा से तुम लोग महायोगेश्वर बन जाओगे, तुम लोग मेरी इस लीला का दर्शन कर पाओगे।”
श्रेष्ठ वस्तु का संग होने से दीनता अपने आप आती है, किसी प्रकार का घमंड नहीं रहेगा।अद्वैत आचार्य कहते है महाप्रभु को लक्ष्मी रूप में नृत्य करते हुआ देखने का मेरा अधिकार नहीं है, किन्तु हम लोग उनसे विपरीत हैं, हम लोग कहते हैं कि हमारा अधिकार है, अधिकार के लिए झगड़ा करते हैं।
उसी प्रकार हमारा परमगुरुजी सावधान करते हुए कहते है अपने आप को गुरु मानोगे तो पतन हो जाएगा। सब गुरुवर्ग हैं, सबको गुरु देखने से ही हमारा उद्धार होगा। श्रीमद भागवतम में भी २६ प्रकार के गुरु के बारे में बताया गया है सबसे शिक्षा मिल सकती है। परमगुरुदेव ने अपने शिष्यों को कहा कि आप लोग मेरे गुरुवर्ग हैं। उन्होंने अपने ऊपर लेकर सब को शिक्षा दी।
हमारे गुरूजी ने भी अपनी आविर्भाव तिथि पर हमें शिक्षा दी। उस दिन सब शिष्यों ने गुरूजी का माहात्म्य कीर्तन किया। गुरूजी कहते हैं,” दैव से हमारा जन्म उत्थान एकादशी पर हुआ। आप सब लोग मुझे आशीर्वाद करने के लिए आए हैं, ऐसा बेवकूफ कौन होगा जो आशीर्वाद को नहीं लेगा।” उनका दर्शन कैसा है! “मैं गुरु बन गया, सब मेरी प्रशंसा कर रहे हैं, मैं श्रेष्ठ हो गया” —यदि किसी व्यक्ति को ऐसा जब बोध हो तो वह लघु बन जाएगा। हम उनसे आर्शीवाद लेने के लिए आये हैं, पर वे कह रहे हैं,”आप सब आशीर्वाद देने के लिए आए हैं, आप लोगो के आशीर्वाद से मेरा मन, इन्द्रिय सब भगवान् की सेवा में लगे तब आप लोगो के आशीर्वाद का लाभ है।” उन्होंने गुरु के विषय में भी बताते हुए कहा कि भगवान मूल गुरु है, जिन्होंने कृपा की श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद, वे महंत गुरु हैं और वैष्णव भी गुरु है। वैष्णव स्वयं भगवान् की सेवा करते है और दूसरों को भी सेवा में लगाते हैं। जो शिष्य है वह भी गुरु है क्योंकि शिष्य सब समय यह देखता रहता है कि गुरूजी क्या कर रहे हैं, गुरु कुछ भी इधर-उधऱ गलती करेंगे तो शिष्य तुरंत पकड़ लेगा, इस प्रकार शिष्य भी शासन करता है।
इस विषय में मेरी बोलने की इच्छा थी किन्तु संक्षिप्त में बोल दिया, गुरूजी का सुन्दर लेखनी भी है इस विषय में कल समय मिलेगा तो कल उस विषय पर बोलेंगे। हमारी कोई प्रसंशा करता है, उसे यदि हम यह सोचकर अपनी पॉकेट में लेंगे कि मैं बहुत बड़ा गुरु बन गया तो हम नरक में चले जाएँगे। “सब ने कीर्तन करके गुरुसेवा किया, मैंने श्रवण करके गुरुसेवा किया”—इस प्रकार सोचनेवाला गुरु होना चाहिए, और ऐसे गुरु की हमें सेवा करनी चाहिए।