श्रीचैतन्यमहाप्रभु के प्रियजन श्रीगुरुदेव ही संसाररूप मृत्यु से हमारी रक्षा कर सकते हैं। गुरु कौन हैं ? इस विषय पर हमें विचार करना चाहिए । जो समस्त गुरुओं के एकमात्र आराध्य हैं, ऐसे पूर्णवस्तु भगवान की सेवा में जो नियुक्त हैं, वे ही गुरु हैं। वैसे तो गुरु बहुत होते हैं। जैसे कुश्ती सिखानेवाले, तैराकी सिखानेवाले, खेल सिखानेवाले या स्कूल-कालेजों में जागतिक शिक्षा देने वाले । परन्तु इनमें से एक भी गुरु ऐसा नहीं हैं, जो हमें मृत्यु से बचा सके, अर्थात् इस दुःखमय संसार में हमारे आवागमन को रोक सके। क्योंकि वे तो स्वयं ही अपने को बचाने में असमर्थ हैं। अतः यहाँ पर ऐसे गुरुओं की बात नहीं कही गयी है। भागवत में भी कहा गया है। वह गुरु, गुरु नहीं हैं; वे मातापिता, मातापिता नहीं हैं; वह देवता, देवता नहीं हैं; वे बन्धुबान्धव, बन्धु – बान्धव नहीं हैं; जो हमें भक्ति का उपदेश प्रदान कर हमारी मृत्यु अर्थात् संसार में हमारे आवागमन को न रोक सके, इस जड़जगत के प्रति आविष्टतारूपी मृत्यु से हमारी रक्षा कर सके । अज्ञान के कारण ही अर्थात् भगवान को भूलने के कारण ही हमें मृत्यु के मुख में जाना पड़ता है अर्थात् जन्म-मरण के चक्कर में पड़ना पड़ता है। ज्ञान होने पर सहजरूप में ही हम मृत्यु के मुख में जाने से बच जाते हैं। इस संसार में हम जो विद्या ग्रहण करते हैं, यदि किसी कारण से हम पागल हो जाएँ, हमें पक्षाघातग्रस्त (लकवा) हो जाये या हमारी मृत्यु हो जाये, तो उस समय इस विद्या का कुछ भी मूल्य नहीं रहता । जो गुरु हमें मृत्यु के मुख से बचा नहीं सकते, वे कुछ दिन तो हमारे लिए विषय-भोगों की व्यवस्था तो कर देते हैं अर्थात् हमें ऐसी शिक्षा प्रदान करते हैं, जिसके द्वारा हम नाशवान शारीरिक सुख की वस्तुओं को इकट्ठा कर लेते हैं, परन्तु इस संसार के प्रति आसक्ति रूप मृत्यु से बचा नहीं पाते। अतः ये सब वञ्चक हैं।