भक्ति के जितने अंग हैं, उनमें कृष्णसंकीर्तन ही प्रधान एवं आवश्यक है। श्रीकृष्णसंकीर्तन के द्वारा ही परमार्थ (भक्ति) जीवन में अग्रसर होने की योग्यता प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण नाम सर्वशक्तिमान है। उनमें समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने की तथा चरमफल कृष्णप्रेम प्रदान करने की क्षमता है।
श्रीकृष्ण नाम के द्वारा हमारी भक्ति के अतिरिक्त समस्त प्रकार क्रियाओं से विरक्ति हो जाएगी तथा समस्त प्रकार की जड़ चिन्ताएँ एवं जड़ धारणाएँ दूर हो जाएँगी। यदि सौभाग्य से हमारी जिहा पर कृष्ण नाम उदित हो जाए, तभी हम जड़ जगत के प्रति अपने कर्तव्य जैसे- समाजसेवा, देशसेवा, माता-पिता की सेवा आदि को त्याग कर सम्पूर्ण रूप से भगवान की सेवा कर सकते हैं तथा तभी हमारी भोग करने की लालसा भी दूर हो सकती है। कृष्ण नाम के द्वारा ही भक्तिमार्गमें आनेवाली समस्त प्रकारकी विघ्न बाधाएँ सहज रूपमें ही दूर हो सकती हैं। यह कृष्ण नाम केवल साधन ही नहीं है, अपितु साधन का चरमफल साध्य भी है। ऐसे कृष्णनाम को गुरु के आनुगत्य में पुनः – पुनः श्रद्धा पूर्वक उच्चारण करना चाहिए। श्रीकृष्णनाम से समस्त प्रकार के मंगल उदित होते हैं। अतः ऐसे अद्भुत प्रभावशाली श्रीकृष्णनाम के द्वारा ही जीव का कल्याण हो सकता है। एकमात्र श्रीकृष्णनाम ही हमें नित्यानन्द – सागर में डुबा सकता है। यह नाम समस्त रसों का आश्रय है।
श्रीगौरसुन्दर परम उपास्य वस्तु है। इस जगत में जितने भी उपास्य हो सकते हैं, ये उन समस्त उपास्यों के भी उपास्य हैं। स्वयं कृष्ण हो कर भी श्रीचैतन्यमहाप्रभु ने भागवत धर्म का आचरण कर जगत वासियों को दिखलाया कि श्रीकृष्ण – संकीर्तन ही भागवत धर्म की पराकाष्ठा है। श्रीकृष्ण संकीर्तन ही महाध्यान, महायज्ञ एवं महाअर्चण है। कृष्णका ध्यान, कृष्णका यज्ञ तथा कृष्ण का अर्चन साधारण है, परन्तु श्रीकृष्णसंकीर्तन रूप महाध्यान, महायज्ञ एवं महाअर्चण के द्वारा ही वे विषय अर्थात अर्चन, एवं ध्यान परिपूर्णता को प्राप्त कर चरमफल होते हैं।