हमें इस संसार को तथा विश्व की समस्त वस्तुओं को कृष्ण की सेवा के उपकरण के रूप में देखना चाहिए। इस जगत की सभी वस्तुएँ कृष्णसेवा की सामग्री हैं। जिस दिन गुरु एवं कृष्ण की कृपा से द्वितीयाभिनिवेश (कृष्णसेवा के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के प्रति असक्ति) से बचकर जगत को कृष्णमय दर्शन करेंगे अर्थात् सारा जगत ही कृष्ण का वैभव है, उनकी सेवा की वस्तु है, उसी दिन हमें इस जगत में ही गोलोक के दर्शन होंगे। हमें समस्त नारी जाति को श्रीकृष्ण की भोग्या के रूप में, श्रीकृष्ण की कान्ता (प्रेयसी) के रूप में दर्शन करना चाहिए। उनके प्रति किसी प्रकार की भोगबुद्धि नहीं होनी चाहिए। वे श्रीकृष्ण की भोग्या हैं, जीव की नहीं। हमें माता-पिता को अन्यरूप में दर्शन न कर कृष्ण के पिता माता के रूप में दर्शन करना चाहिए । हमें अपने पुत्र को अपना सेवक न मानकर बालगोपाल का सेवक मानना चाहिए। तब हमारा जगत दर्शन नहीं होगा। तथा इसी जगत के स्वरूप में ही गोलोक का दर्शन होगा।