हमारे गुरुवर्गों ने हमें श्रेष्ठ वैष्णवों के संग में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत् श्रवण करने का निर्देश दिया है। साधुमुख से शास्त्र श्रवण करने को प्रधानता दी गयी है। विशेष रूप से दामोदर मास में, श्रीमद् भागवतम् के अष्टम स्कन्द से गजेंद्र मोक्ष लीला का पाठ करना अत्यंत मंगलकारी कहा गया है। गजेंद्र मोक्ष लीला हमें भगवान में पूर्ण शरणागति की शिक्षा देती है। शरणागति ही भक्त का जीवन है, प्राण है।
गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग कार्तिक व्रत में आलोचना होता है। जब से मैं गौडीय मठ में आया हूँ तब से मैंने श्रील गुरुदेव को हर साल कार्तिक के महीने में इस प्रसंग को पढ़ते हुए देखा है। इसका विशेष महत्व है। इसलिए, इस शुभ महीने में हम गजेंद्र मोक्ष पढ़ते हैं। यह प्रसंग गजेन्द्र के बारे में है, जो जंगल के हाथियों का नेता था और जिसे भगवान ने ग्राह (मगरमच्छ) के चंगुल से बचाया था। इस भौतिक संसार की तुलना मगरमच्छ से की जाती है। श्रीमद्भागवतम के आठवें स्कंध के पहले अध्याय में, श्री शुकदेव गोस्वामी कहते हैं,
देवा वैधृतयो नाम विधृतेस्तनया नृप।
नष्टा: कालेन यैर्वेदा विधृता: स्वेन तेजसा॥ 29 ॥
(श्रीमद्भागवतम 8.1.29)
“हे राजन, तामस मन्वन्तर में, विधृति के पुत्र, जो वैधृतयों के नाम से जाने जाते थे, देवता बन गए। चूँकि कालांतर में वेद लुप्त होने लगे तो, इन देवताओं ने अपनी शक्तियों से उनकी रक्षा की।”
यहाँ तामस मन्वन्तर के विषय में कह रहे हैं, कुल चौदह मनु होते हैं, जिसमें स्वयम्भू मनु सर्वप्रथम मनु हैं, तृतीय मनु उत्तम और तामस चतुर्थ मनु हैं। तामस मन्वन्तर में गजेन्द्र मोक्ष का ये प्रसंग है जिसका वर्णन दूसरे (निम्नलिखित) श्लोक में किया गया है।
तत्रापि जज्ञे भगवान्हरिण्यां हरिमेधस:।
हरिरित्याहृतो येन गजेन्द्रो मोचितो ग्रहात्॥
(श्रीमद्भागवतम 8.1.30)
“इस मन्वंतर में, भगवान विष्णु ने हरिमेध की पत्नी हरिणी के गर्भ से जन्म लिया, और वे हरि के नाम से जाने गए। हरि ने अपने भक्त गजेंद्र को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया।”
यहाँ ‘हरिणी’ नाम का एक और अर्थ है जिसे आप डिक्शनरी में देख सकते हैं, इसका अर्थ है भार्या अर्थात् पत्नी। हरिणी का एक अर्थ स्त्री हिरण होता है और एक अर्थ होता है भार्या। हरिमेध और उनकी पत्नी हरिणी को अपने माता-पिता के रूप में स्वीकार करके भगवान हरि अवतरित हुए। भगवान हरि के रूप में प्रकट होकर, भगवान ने गजेंद्र को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया।
शुकदेव गोस्वामी ने जब इस प्रकार कहा तो राजा परीक्षित ने कहा,
श्रीराजोवाच
बादरायण एतत् ते श्रोतुमिच्छामहे वयम्।
हरिर्यथा गजपतिं ग्राहग्रस्तममूमुचत्॥
(श्रीमद्भागवतम 8.1.31)
“राजा परीक्षित ने कहा, हे भगवान बदरायणी, हम आपसे विस्तार से सुनना चाहते हैं कि मगरमच्छ द्वारा आक्रांत गजेन्द्र को किस प्रकार भगवान् ने मुक्त किया।”
श्रीमद्भागवत् ग्रन्थ कृष्ण भक्ति की महिमा के विषय में हैं। भगवान केवल एक ही हैं। भगवान दो या तीन नहीं हो सकते। वास्तव में ‘हरि’ कहने से भगवान कृष्ण को ही समझा जाता है। हरि कौन हैं? हरि किसे कहते हैं? जो हरण अर्थात् चोरी करते हैं। तो सबसे बड़ा चोर कौन है
पुरुषोत्तम मास में हम वल्लभाचार्य द्वारा लिखित श्रीचौराग्रगण्य अष्टक का पाठ करते हैं|
व्रजे प्रसिद्धं नवनीतचौरं
गोपाङ्गनानां च दुकूलचौरम्।
अनेकजन्मार्जितपापचौरं
चौराग्रगण्यं पुरुषं नमामि।।
(ब्रज में प्रसिद्ध माखन चुराने वाले, एवं गोपियों के चीर हरण करने वाले अपने आश्रियजनों के अनेक जन्मों के द्वारा उपार्जित पापों को चुराने वाले चौराग्रगण्यपुरुष को मैं प्रणाम करता हूँ।)
भगवद तत्व एक ही है, लीला में भेद है। तत्व में भेद नहीं है। बहु भगवान नहीं हैं। भगवान् एक ही हैं, लीला में भेद है। हरि कहने से कृष्ण को ही समझा जाता है।
व्रजे प्रसिद्धं नवनीतचौरं.. ब्रज में प्रसिद्द कौन है? माखन चोरी करने वाला और गोपियों के वस्त्र हरण करने वाला, कृष्ण। वह सबसे बड़ा चोर है। लज्जा रहने से भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते, उससे भगवद् प्राप्ति में बाधा आ जाती है। वस्त्र हरण करने वाला कौन है? कृष्ण है। और जीवों के समस्त पाप को हरण करने वाला कृष्ण है। अनेकजन्मार्जितपापचौरं… कई जन्मों में संचित जीवों के सभी पापों को चुरानेवाला कौन है? वह भी कृष्ण है। तो सबसे बड़ा चोर कौन है? कृष्ण है।
श्रीराधिकाया हृदयस्य चौरं,
नवांबुदश्यामलकान्तिचौरम्।
पदाश्रितानां च समस्तचौरं,
चौराग्रगण्यं पुरुषं नमामि॥
“श्रीमती राधिका के हृदय को चुरानेवाले, नूतन जलधर (जल से भरे हुए नये बादल) की श्यामकान्ति को चुरानेवाले, एवं निजचरणावितों के समस्त पाप-ताप चुरानेवाल चौराग्रगण्यपुरुष को मैं प्रणाम करता हूँ।”
राधिका के हृदय को चोरी किया। नवाम्बुद श्यामल कान्ति चोरम…यद्यपि मेघ, वर्षा आदि, स्वयं भगवान् की ही सृष्टि है, सब कुछ भगवान् से ही आया है तथापि लेखक भगवान् के दिव्य सौन्दर्य का वर्णन करने के लिए उसकी तुलना नविन घनमेघ से करते है। लेखक कहते हैं – जो उनकी शरण लेगा, वे उसका सब कुछ छीन लेते हैं। यह श्रवण कर कोई कह सकता है, “अरे, कृष्ण की शरण लेना ठीक नहीं होगा, वे सब कुछ ले लेंगे।” उसे चोर कहा जा रहा है इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके बाहर कुछ भी है। वे अवतारी (सभी का स्रोत) हैं। साथ ही श्रीरामचंद्र की महिमा भागवत में लिखी गई है।
गजेन्द्र मोक्ष का यह प्रसंग दर्शाता है कि किस प्रकार से शरणागत होने से भगवान रक्षा करते हैं, भगवान का वात्सल्य किस प्रकार है। अभी परीक्षित महाराज ये प्रसंग विस्तार से श्रवण करना चाहते हैं।
तत्कथासु महत् पुण्यं धन्यं स्वस्त्ययनं शुभम्।
यत्र यत्रोत्तमश्लोको भगवान्गीयते हरि:॥
(श्रीमद्भागवतम् 8.1.32)
जिसमें उत्तमश्लोक भगवान् श्री हरि की महिमा का कीर्तन है वह सब कथा अतिशय पवित्र, धन्य, शुभ एवं मंगलकर है।
इसलिये परीक्षित महाराज ने विस्तार से श्रवण करने के लिए इच्छा प्रकट की। उसके बाद शुक उवाच..