हमने प्रोफेसर निक्सन के विषय में इतिहास में पढ़ा है। वे ब्रिटेन के निवासी थे, जो वहाँ की वायुसेना में एक पायलट पद पर कार्यरत थे। जिस समय हिटलर के नेतृत्व में जर्मनी का फ्रांस के साथ युद्ध चल रहा था, उस समय ब्रिटेन फ्रांस के पक्ष में था। इसीलिए प्रोफ़ेसर निक्सन उस समय फ्रांस के लिए जर्मनी के विरुद्ध एक गुप्तचर (जासूस) का कार्य कर रहे थे और जर्मनी की गतिविधियों पर विमान द्वारा निगरानी रखकर वहाँ के गोपनीय (गुप्त) समाचार फ्रांस को पहुँचाते थे। प्रोफ़ेसर निक्सन ने अपने जीवन चरित्र में एक ऐसी अद्भुत घटना का वर्णन किया है जिसने उनके जीवन को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया। उस घटना का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा कि वे पूरी तरह से नास्तिक थे और ईसाई होते हुए भी न तो उन्होंने कभी बाइबल पढ़ी और न ही कभी गिरजाघर (चर्च) गये। उनका सोचना था कि जिस वस्तु को आँखों से देखा नहीं जा सकता उस वस्तु के अस्तित्व को कैसे स्वीकार किया जा सकता है? इसी सोच के कारण वे भगवान् में विश्वास नहीं रखते थे।

निक्सन के अपने कार्य में निपुण होने के कारण सभी लोग उनकी प्रशंसा करते थे। जब प्रतिष्ठा मिलने लगती है तो व्यक्ति को अहंकार होने लगता है तथा तब और अधिक नाम कमाने की इच्छा में वह बड़ी से बड़ी भूल कर बैठता है। उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। एक दिन वे विमान द्वारा जर्मनी में गुप्तचरी (जासूसी) कर रहे थे। उनके साथ विमान में दो लोग और थे। निक्सन विमान को नीचे की ओर भूमि के बहुत पास ले गए। उन्होंने सोचा, “यदि में विमान को थोड़ा और अधिक नीचे उतार लूँ तो समाचार पत्रों में छापने के लिए और अच्छी रिपोर्ट मिलेगी, जिससे मेरा नाम और प्रसिद्ध हो जाएगा।”

ऐसा सोचकर वे विमान को नीचे की ओर ले जाते चले गए। दूसरी ओर जर्मनी की सेना भी जैसे ही शत्रु देश का कोई विमान देखती तो उसे नीचे गिराने का पूरा प्रयास कर रही थी। जब निक्सन ने विमान को थोड़ा और नीचे उतारा तो अचानक नीचे की ओर से एक गोला उड़ता हुआ उनके विमान के ईंधन टैंक से आ टकराया जिससे विमान में आग लगने के कारण वह नीचे की ओर गिरने लगा। जब विमान नीचे की ओर गिर रहा था तब निक्सन ने साक्षात् मृत्यु को अपनी ओर आते हुए अनुभव किया। अब बचने का कोई उपाय न देख वे रोते हुए चिल्लाए, “यदि कोई सर्वशक्तिमान है तो वह मेरी रक्षा करे। मेरी रक्षा करे।” ऐसी प्रार्थना करते-करते वे बेहोश हो गए।

भगवान् को पुकारने के फलस्वरूप उनका विमान वापिस फ्रांस की सीमा में ही आकर गिरा। फ्रांस के सैनिक तुरन्त एम्बुलेंस लेकर वहाँ सहायता के लिए आ गए।

उन्होंने देखा कि निक्सन के दोनों साथियों की मृत्यु हो चुकी थी। निक्सन अचेतन अवस्था में थे। उन्हें चिकित्सा के लिए अस्पताल ले जाया गया। चिकित्सा के बाद भी जब वे होश में नहीं आए तो उन्हें लन्दन ले जाया गया। वहाँ वे लगभग दो महीनों तक बेहोश रहे। दो महीनों के बाद जब उन्हें होश आया तो सबसे पहले उन्होंने अपने दोनों साथियों के विषय में पूछा। पूरी घटना के विषय में जानकर उन्हें इस बात पर विश्वास हो गया कि कोई तो सर्वशक्तिमान है जिसने उनकी रक्षा की है, अन्यथा उनके बचने की कोई सम्भावना ही नहीं थी। स्वस्थ होने के बाद वे उस सर्वशक्तिमान सत्ता के विषय में जानने के लिए अलग-अलग गिरजाघरों में जाकर आध्यात्मिक
प्रश्न करने लगे। गिरजाघर के प्रधान व्यक्तियों ने निक्सन को बतलाया कि वे उन्हें केवल मात्र धर्म के विषय में समझा सकते हैं। किन्तु सर्वशक्तिमान के विषय में अधिक जानकारी के लिए उन्हें भारत जाना होगा।

उस समय भारत ब्रिटेन के अधीन था। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखा कि वे भारत जाना चाहते हैं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें तुरन्त लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर के रूप में भारत भेज दिया। इस प्रकार वे भारत आए और प्रोफ़ेसर निक्सन बन गए। भारत में उनका सम्पर्क यूनिवर्सिटी के वाईस चाँसलर ज्ञानेन्द्रनाथ चक्रवर्ती से हुआ जो बंगाल के एक बहुत बड़े विद्वान थे। शास्त्र अध्ययन के लिए निक्सन ने संस्कृत भाषा सीखनी शुरू की। उन्होंने वेदान्त पढ़ा जिससे उनकी बुद्धि तीक्ष्ण हुई। बाद में उन्होंने श्रीमद् भागवत् भी पढ़ी जिससे उनका हृदय कृष्ण-प्रेम प्राप्त करने के लिए विह्वल हो उठा। ज्ञानेन्द्रनाथ चक्रवर्ती की पत्नी यशोदाबाई भगवान् श्रीकृष्ण की भक्त थीं। निक्सन ने यशोदाबाई से हरिनाम लिया और उनका नाम ‘कृष्णप्रेम’ हुआ। बाद में वे श्रीचैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव स्थान श्रीधाम मायापुर आए और हमारे परमगुरुदेव (श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर) से मिले। उनसे श्रीचेतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं के विषय में सुनकर निक्सन बहुत प्रभावित व प्रसन्न हुए। अपने जीवन के अन्त तक भारत में ही रहते हुए निक्सन ने अल्मोड़ा नामक स्थान पर अपना शरीर छोड़ा। उन्होंने लिखा है, “मैं एक नंबर का नास्तिक था, अब एक नंबर का आस्तिक हो गया।”

यहाँ शिक्षामूलक वस्तु यह है कि निक्सन ने पूर्ण शरणागति से नहीं, मात्र शरणागति के आभास के साथ भगवान् को पुकारा था। भगवान् का नाम भी नहीं लिया। उन्होंने भगवान् के ‘सर्वशक्तिमत्ता’ गुण का चिन्तन करते हुए हृदय से उन्हें पुकारा तथा उसी से उनकी रक्षा हो गई।

1 जगत्-गुरु श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर, विश्वव्यापी श्री चैतन्य मठ और श्री गौड़ीय मठ समूह के प्रतिष्ठाता है।
2 वर्तमान के उत्तराखंड प्रदेश का एक भाग