श्रील भाक्त बल्लभ तार्थ गास्वामी महाराज

परम पूज्यपाद श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज (श्रील गुरुदेव) का आविर्भाव १९२४ में भारत के आसाम राज्य के ग्वालपाड़ा में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचंद्र की शुभ प्रकट तिथि, श्रीरामनवमी के पावन अवसर पर हुआ। बाल्य काल से ही वे दीनता, गुरु-जन एवं शिक्षकों के प्रति आज्ञाकारीता, सांसारिक विषयों के प्रति उदासीनता, आध्यात्मिक जीवन में स्वाभाविक रुचि जैसे असाधारण गुणों से विभूषित थे।

वर्ष १९४७ में दर्शनशास्त्र में M. A. डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु, श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज के दिव्य और अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व से आकर्षित होकर, अपने जीवन को सम्पूर्ण रूप से उनकी सेवा में समर्पित कर दिया। श्रील माधव गोस्वामी महाराज शुद्ध-भक्ति के प्रवर्तक जगत्-गुरु श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद के प्रिय शिष्यों में से एक हैं।

श्रील गुरुदेव ने अपने गुरुदेव की शिक्षाओं को अक्षरशः पालन कर एक उत्तम शिष्य का आदर्श स्थापित किया एवं अथक सेवाभाव के साथ संस्थान की गतिविधियों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। शीघ्र ही उनके गुरुदेव ने उन्हें संस्था के सचिव के रूप में नियुक्त किया और वर्ष १९६१ में उनको सात्वतः शास्त्रों के विधान के अनुसार त्रिदंड-संन्यास प्रदान किया। महाप्रभु की शुद्ध भक्ति शिक्षाओं के प्रचार के लिए उन्होंने अपने गुरुदेव के साथ व्यापक रूप से यात्राएँ की। उनके गुरुदेव ने पहले ही उन्हें संस्थान के अगले आचार्य के रूप में घोषित कर दिया था। १९७९ में श्रील माधव गोस्वामी महाराज के अप्रकट होने के बाद श्रील गुरुदेव को संस्थान के आचार्य पद पर अधिष्ठित किया गया।

तत्पश्चात श्रील गुरुदेव ने मठ संस्थान के उत्तरदायित्व को सुचारू रूप से सँभालते हुए ‘आचरण ही उत्तम प्रचार है ‘यही शैली में मठ की शिक्षाओं का व्यापक प्रचार किया। उनका प्रत्येक कार्य गुरुदेव में पूर्ण शरणागति का निदर्शन है। उनके अत्यंत स्नेह-पूर्ण व्यव्हार, आकर्षक व्यक्तित्व, विशुद्ध भक्तिमय आचरण ने, उनके संपर्क में आए हुए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय को जीत लिया। फलस्वरूप विश्व के अनेक नर-नारी उनके चरणाश्रित हुए।

श्रील गुरुदेव ने अपने शिक्षागुरु श्रील भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए १९९७ में शुद्ध-भक्ति सिद्धांतों के प्रचार के लिए विदेश में शुभ पदार्पण किया। प्रचार कार्य के अंतर्गत ब्रिटेन, हॉलैंड, इटली, स्पेन, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, स्लोवेनिया, फ्रांस, रूस, यूक्रेन, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, हवाई और अमेरिका सहित पच्चीस देशों में भ्रमण किया। वर्ष १९९७ में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर संयुक्त राष्ट्र के ‘World Conference On Religion And Peace ‘ एवं ‘World Peace Prayer Society’ में उन्होंने विश्व-शांति के लिए वैदिक सिद्धांतों पर आधारित एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की। उनके मधुर और विनम्र व्यक्तित्व से सभी प्रतिभागी बहुत प्रभावित हुए।

विविध स्थानों, जैसे कि विश्वविद्यालय, अंतर्जातीय संघ, गिरजाघर, मंदिर, आध्यात्मिक शिक्षा केंद्रों में हुए प्रचार कार्यों के दौरान श्रील गुरुदेव के अनेक कैथलिक, प्रोटेस्टेंट, यहूदी, मुस्लिम, हिंदू और बहाई धर्मशास्त्रियों के साथ रोमांचक वार्तालाप भी हुए। उनके मृदु, स्नेहमय स्वभाव एवं हरि-गुरु-वैष्णव में सुदृढ़ निष्ठा ने सब के मन जीत लिए। उन्होंने कई रेडियो और टेलीविजन कार्यक्रमों पर भी श्रीचैतन्य महाप्रभु की उदात्त शिक्षाओं का प्रचार किया। इनमें वर्ष २००० में BBC रेडियो पर विश्वव्यापी प्रसारित एक विचार-प्रेरक इंटरव्यू भी है।

गुरु-वैष्णवों की सेवा के प्रति श्रील गुरुदेव का समर्पण सभी वैष्णव आचार्यों के लिए एक उत्तम आदर्श है। वर्ष २०११ में हुए उनके संन्यास के पचास वर्ष पूर्ति महोत्सव में विभिन्न संस्थाओं से पचास से अधिक आचार्यों ने भाग लिया। इसके अतिरिक्त अनेक संन्यासी, ब्रह्मचारी तथा असंख्य गृहस्थ भक्तों ने भी इसमें भाग लिया। मायापुर में इतनी बड़ी संख्या में वैष्णव-आचार्यों और भक्तों का समागम एक अभूतपूर्व घटना थी।

शुद्ध भक्ति शिक्षाओं के विश्वव्यापी प्रचार के उद्देश्य से श्रील गुरुदेव ने वर्ष १९९७में GOKUL-The Global Organisation of Krishnachaitanya’s Universal Love- संस्था की स्थापना की। वे ‘World Vaishnava Association’ के भी अध्यक्ष रहें।

श्रील गुरुदेव ने अपनी दिव्य भौम-लीला में ६० से भी अधिक वर्षों तक श्रीचैतन्य महाप्रभु के प्रेम धर्म का पूरे विश्व में अनथक प्रचार किया। २० अप्रैल २०१७, रात्रि १०.१५, सात दिनों के अखंड-संकीर्तन यज्ञ के बीच उन्होंने श्रीराधाकृष्ण की नित्य-लीला में प्रवेश किया।