हमारा कोलकाता मठ जब रासबिहारी एवेन्यू में था, तब एक व्यक्ति नियमित रूप से हरिकथा श्रवण करने के लिए मठ में आते थे। ख़राब मौसम में भी अन्य व्यक्ति भले ही न आएँ, किन्तु वे अवश्य आते थे। उनकी प्रशंसा करते हुए हम उनसे कहते, “आपको भगवान् की कथा श्रवण में रुचि है, यह बड़े सौभाग्य की बात है।”

आठ-नौ महीने तक प्रतिदिन हरिकथा श्रवण के लिए आते रहने के बाद अचानक उन व्यक्ति का मठ में आना बंद हो गया। हमने सोचा कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा या वे कोलकाता छोड़कर कहीं और चले गए होंगे। हरिकथा सुनने आनेवाले अन्य व्यक्तिओं से उनके विषय में पूछने पर पता चला कि वे कोलकाता में ही हैं। उन्होंने कहा, “हमने उन्हें देखा है, किन्तु हम उनका पता नहीं जानते।” हमारे पास उनसे संपर्क करने का कोई उपाय नहीं था।

किन्तु एक दिन जब मैं किसी सेवा कार्य के लिए मठ से बाहर गया था, तब मार्ग में मेरा उन व्यक्ति से मिलना हुआ। “ओह,” मैंने कहा, “हम सब लम्बे समय से आपके संग से वंचित हैं। क्या आप कोलकाता में नहीं थे?”

उन्होंने कहा, “मैं कोलकाता में ही था। ”

मैंने कहा, “फिर, आप मठ में क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है?”

उन्होंने कहा, “नहीं, मेरा स्वास्थ्य भी ठीक है। मेरा मठ में न आने का कारण कुछ और है। मैं बहुत दिन तक मठ में आता रहा। मठ में दी जानेवाली सभी शिक्षाऐं मैंने श्रवण कर ली हैं। आपकी शिक्षा है कृष्ण भजन करो, हरिनाम करो। यदि कोई नई बात सुनने को मिलेगी तो मैं फिर से आ सकता हूँ।”

उनकी यह बात सुनकर मुझे समझ में आ गया कि वे केवल ज्ञान प्राप्त करने की उत्सुकता से मठ में आते थे, भगवान् के भजन के लिए नहीं।

भगवान् अनंत हैं और उनकी महिमा भी अनंत है। भगवद् संबंधित कोई वस्तु बासी (पुरानी) नहीं होती। भगवान् का प्रसाद या भगवान् की कथा कभी बासी नहीं होती। नारद गोस्वामी अनंत काल से भगवान् का नाम-कीर्तन कर रहे हैं फिर भी कृष्ण-नाम-रस का पूर्ण रूप से आस्वादन नहीं कर पाए हैं।

यदि कोई कहे, “मैं व्रज-धाम के बारह वनों के विषय में कई बार श्रवण कर चुका हूँ। यह विषय पुराना हो गया है। मुझे किसी नए वन के विषय में सुनना है” तो समझना होगा कि उसने कुछ श्रवण किया ही नहीं। यदि इन वनों में से किसी एक वन की महिमा भी हम वास्तविक रूप में श्रवण कर लें तो हमारा पूरा जीवन बदल जाएगा और हम पुनर्जन्म से बच जाएँगे। कृष्ण के अनंत गुणों में से यदि किसी एक गुण की महिमा भी हमारे हृदय में प्रकाशित हो जाए तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा और हमारे सभी दुःख दूर हो जाएँगे। किन्तु भगवान् के गुणों के विषय में श्रवण-कीर्तन करने के बाद भी हम संसार के दुःखों का अनुभव करते हैं। इससे यही प्रमाणित होता है कि उन दिव्य गुणों के गान ने हमारे कर्णों को अभी तक स्पर्श भी नहीं किया है, हम भले ही सोचें कि हमने उन गुणों के विषय में श्रवण कर लिया है! ‘फलेन फल-कारणम् अनुमीयते’, श्रवण-कीर्तन से मिलनेवाले अनुभव से समझ सकते हैं कि हमारा कृष्ण से संपर्क हुआ है या नहीं।

यदि कोई कहे, “मैंने भगवान् और भक्तों की गुण महिमा का श्रवण कर लिया है, अब मुझे कुछ नया श्रवण करना है,” तो समझना होगा कि अभी तक उसका हरिकथा के साथ संपर्क ही नहीं हुआ। श्रीचैतन्य महाप्रभु ने ध्रुव और प्रह्लाद के चरित्र को सौ-सौ बार सुनने के बाद और सुनने की इच्छा प्रकट की। यदि भगवान् और भक्तों की महिमा अनेकों बार श्रवण करने के बाद और श्रवण करने की इच्छा हो तो समझना होगा कि हमने भक्तिराज्य में प्रवेश किया है। अन्यथा, हम भक्तिराज्य से बाहर ही हैं।

हमारे मठ में प्रत्येक दिन तीनों समय भगवान् की आरती और पाठ-कीर्तन होता है। क्या कुछ नया किया जाता है? सभी ने आरती और हरिकथा का श्रवण कर लिया है। किन्तु मेरे गुरुदेव और परमगुरुदेव की शिक्षा है कि हमें भगवान् की कथा बार-बार श्रवण करनी है। इसी से हमारा कल्याण होगा।