सन् 1903-1904 में जब ॐ विष्णुपाद श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी श्रीधाम मायापुर योगपीठ में निवास कर रहे थे, उस समय कटहल वृक्ष के नीचे (जहाँ अधोक्षज विष्णु विग्रह आविर्भूत हुए थे और आजकल श्रीमन् महाप्रभु जी का मन्दिर निर्मित है) श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी बहुत दिनों तक रहे थे। उसी समय शुद्ध वैष्णव-जगत के लिए एक आदर्श गुरु और शिष्य का भजन रहस्य और लोक शिक्षामय आचरण का अध्याय रचित हुआ। उस समय श्रील गौरकिशोर प्रभु यद्यपि सम्पूर्ण भाव से, बाहरी दृष्टि – शक्ति रहित थे तथापि एक दिन अंधेरी रात्रि में लगभग 2 बजे कुलिया नवद्वीप से वे श्रीधाम मायापुर श्रीयोगपीठ में अकेले आ गये। अगले दिन प्रातः काल में श्रील सरस्वती ठाकुर जी ने अकस्मात् अपने प्रभु को देखकर अत्यन्त विस्मित होकर पूछा ‘आप यहाँ किस समय पहुँचे ?’ श्रील गौरकिशोर प्रभु ने कहा- ‘मैं कल रात को प्रायः 2 बजे यहाँ पर आया था।’ श्रील सरस्वती ठाकुर जी ने अवाक् होकर पूछा आपको यहाँ कौन लाया, और इतनी रात में वह पथप्रदर्शक आपको कहाँ मिला? श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी जी ने कहा ‘एक व्यक्ति ने रास्ता दिखा दिया।’ श्रीमद् सरस्वती ठाकुर जी ने कहा ‘मैं बाहरी दृष्टि से तो आपको पूर्णतया दृष्टि – शक्तिहीन देखता हूँ, इतनी दूर से यहाँ तक हाथ पकड़कर यदि कोई न लाता तो आप कैसे आ सकते थे? तब क्या स्वयं कृष्ण ही आपको हाथ पकड़कर यहाँ तक ले आये थे?’ यह बात सुनकर श्रील गौरकिशोर जी केवलमात्र मन्द – मन्द मुस्कराते रहे। अन्तरंग निज जन अन्दर की बात समझ गये। आजकल की तरह उस समय कुलिया से श्रीधाम – मायापुर तक जाने के लिए कोई पथ अथवा घाट नहीं था। श्रील सरस्वती ठाकुर ने फिर दुबारा पूछा, ‘इतनी रात में आपको नदी किसने पार करवाई?’ इसके उत्तर में श्रील गौरकिशोर प्रभु ने पहले के समान उत्तर दिया ‘एक व्यक्ति ने मुझे नदी पार करवा दी’। शिष्य समझ गये- ‘यह एक व्यक्ति और कोई नहीं, स्वयं अद्वयज्ञान ब्रजेन्द्रनन्दन ही हैं।’

श्रीधाम – मायापुर – योगपीठ में श्रील सरस्वती ठाकुर जी प्रत्येक वैशाख मास में पूरे एक महीने तक, श्रील सनातन गोस्वामी प्रभु जी द्वारा विरचित श्रीबृहद् भागवतामृत का पाठ और व्याख्या कर रहे थे। तब श्रील गौरकिशोर प्रभु और श्रीयुत क्षेत्रनाथ सरकार भक्तिनिधि महोदय, श्रील सरस्वती ठाकुर के श्रोता बनते थे।