श्रील गौरकिशोर प्रभु जब दृष्टि शक्ति हीन होने की लीला का अभिनय कर रहे थे तब श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर जी ने अपने श्रीगुरुपादपद्म से कोलकाता में जाकर चिकित्सा करवाने के लिए विशेष प्रार्थना की थी। श्रीमद् भक्तिविनोद ठाकुर जी ने भी बहुत अनुरोध किया, परन्तु श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी ने कहा “मैं बिल्कुल भी “माया का ब्रह्माण्ड” कोलकाता में नहीं जाऊँगा।” ठाकुर भक्तिविनोद जी ने श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी को कहा कि उनके सेवक सरस्वती कोलकाता में रहेंगे, वे ही उनकी सेवा कर सकते हैं, इसलिए उन्हें किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। यह बात सुनकर श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी जी ने कहा ‘मैं प्रभु जी की सेवा नहीं लूँगा, मैं जल में डूबकर प्राण त्याग दूँगा। गंगा में डूबकर मरने से शायद भूत बनना पड़ेगा, इसलिए मैं सरस्वती में डूबकर मरूँगा।’ ऐसा कहते-कहते श्रीगौरकिशोर दास बाबाजी स्वानन्द सुखद कुंज के सामने प्रवाहित सरस्वती नदी की ओर वेग से दौड़े। सरस्वती ठाकुर ने भी उनके पीछे-पीछे दौड़ते हुऐ उनसे बहुत प्रार्थना की। इसके उपरान्त 45 दिनों तक श्रील गौरकिशोर प्रभु का और कोई समाचार प्राप्त नहीं हुआ। 45 दिनों के बाद वे हठात् एक दिन आकर उपस्थित हो गये और कहने लगे – ‘आत्महत्या से कृष्ण को प्राप्त नहीं किया जा सकता, तब भी कोई मेरी सेवा करेगा, यह मैं बिल्कुल भी सहन नहीं कर सकूँगा।’ श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी को सैंकड़ों चेष्टाओं के बाद भी दवाई नहीं खिलाई जा सकती थी। वे निर्जला एकादशी व्रत पालन करते थे। एकादशी के अतिरिक्त अन्य समय में कभी गंगा की मिट्टी, कभी गंगाजल में भिगोकर सूखे चावल और मिर्च खाते थे। उनका वैराग्य बनावटी नहीं था, वह कृष्ण को संतुष्ट करने वाला था।