1 सितम्बर, 1961, शुक्रवार से 5 सितम्बर, मंगलवार तक, 22 अगस्त, 1962, बुधवार से 26 अगस्त, रविवार तक एवं 11 अगस्त, 1963, रविवार से 15 अगस्त, बृहस्पतिवार तक।
उपरोक्त धर्मानुष्ठानों में जिन-जिन व्यक्तियों ने योगदान दिया, उनमें उल्लेखनीय हैं- कोलकाता कारपोरेशन के भूतपूर्व मेयर, श्रीविजय कुमार वन्द्योपाध्याय, कोलकाता विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के भूतपूर्व प्रिसींपल, डाक्टर सतीश चन्द्र चट्टोपाध्याय, कोलकाता हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश, श्री हिमांशु कुमार वसु, कोलकाता कारपोरेशन के मेयर, श्री राजेन्द्र नाथ मजूमदार, काऊन्सिलर, डा० वीरेन्द्र चन्द्र वसु, माननीय न्यायाधीश, श्री निर्मल कुमार सेन, डा० नलिनीरंजन सेनगुप्त, श्री गणपति सूर, श्री आशुतोष गांगुली, श्री जयन्त कुमार मुखोपाध्याय, कारपोरेशन के काउन्सिलर, श्री देव प्रसाद चटर्जी, बैरिस्टर, श्री अनिल चन्द्र गांगुली, शिक्षामन्त्री, श्रीहरेन्द्रनाथ राय चौधरी, स्वायत्वशासन मन्त्री, श्री शैल कुमार मुखोपाध्याय, पूर्व मन्त्री, श्री खगेन्द्र नाथ दासगुप्त, भूतपूर्व उपाचार्य और न्यायाधीश, श्री शम्भुनाथ वन्द्योपाध्याय, बैरिस्टर, श्रीवनमाली दास, श्रीरामनारायण भोजनगर वाले, न्यायाधीश, श्रीशंकर प्रसाद मित्र, कलकत्ता कारपोरेशन के मेयर, श्री चितरंजन चट्टोपाध्याय, श्रीराधाकृष्ण कनौड़िया, श्री रामकुमार भुयालका, न्यायाधीश, “श्रीविनायक नाथ वन्द्योपाध्याय, डाक्टर कालिदास नाग, प्रचारमन्त्री, श्रीविजय सिंह नाहार, स्पीकर, श्रीकेशव चन्द्र वसु, डाक्टर कुमार वन्द्योपाध्याय, एडवोकेट, श्री केशव चन्द्र गुप्त, प्रोफेसर नारायण चन्द्र गोस्वामी, श्री ईश्वरी प्रसाद गोयन्का और न्यायाधीश, श्री सुबोध कुमार नियोगी।
परमाराध्य श्रील गुरुदेव, अपने गुरुभाई वैष्णवों के साथ मिलने के लिये तथा अपने सेवकों को श्रेष्ठ-वैष्णवों की सेवा प्रदान करने के लिये, विभिन्न गौड़ीय मठों के अध्यक्ष आचार्यों को धर्मानुष्ठान में योगदान देने के लिए बुलाया करते थे। आपके प्रीतिपूर्ण आमन्त्रण से, अन्यान्य मठों के आचार्य – आपके गुरु भाई लोग, अपने सेवकों के साथ, मठ के उत्सवों में परमोल्लास के साथ योगदान करते थे। सन् 1961 से सन् 1964 तक गुरुदेव जी के जिन गुरुभाइयों ने योगदान दिया, उनमें प्रमुख हैं- श्री गौड़ीय संघपति, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति सारंग गोस्वामी महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद्
भक्ति सर्वस्व गिरि महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति भूदेव श्रौती महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विचार यायावर महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डिस्वामी श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति कमल मधुसूदन महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति सौध आश्रम महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विकास हृषीकेश महाराज, परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विलास भारती महाराज और परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रापण दामोदर महाराज।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में संकीर्तन -शोभायात्रा तथा वार्षिक उत्सव के उपलक्ष्य में विराट संकीर्तन-शोभायात्रा के साथ | श्रीविग्रहों की रथयात्रा का प्रोग्राम भी यथारीति सुसम्पन्न हुआ। 35, सतीश मुखर्जी रोड़ के पुराने मकान में जब मठ के कार्य व विग्रहों की सेवा चलती थी, तब मठ परिसर में ही एक अस्थायी सभामण्डप बनाकर धर्मसभा की व्यवस्था होती थी। कभी-कभी सतीश मुखर्जी रोड़ की दूसरी खाली जमीन पर विराट सभा मण्डप बनाकर, धर्मसभा की “व्यवस्था होती थी। उक्त जमीन के मालिक थे- श्री रमणी मुखोपाध्याय । इन्हीं की अनुमति व सहायता से वहाँ पर सभा एवं महोत्सव का आयोजन होता था। बाद में डा० चटर्जी द्वारा वह जमीन खरीद ली गयी व वहाँ पर तीन मन्जिली इमारत का निर्माण हुआ। यद्यपि डा० चटर्जी ने मठ के निर्माण से पूर्व अपने मकान का निर्माण प्रारम्भ कर दिया था, परन्तु कान्ट्रेक्टर के साथ विरोध होने व मुकदमा चलने के कारण उनके गृह निर्माण कार्य में काफी विलम्ब हुआ। 35 सतीश मुखर्जी रोड पर स्थित पुरानी बिल्डिंग में मठ के कार्य-कलापों के शेष दिनों में, एक विशेष वार्षिक अधिवेशन में, अर्थात् जनवरी 1964 में, श्री जयन्त कुमार मुखोपाध्याय जी ने प्रधान अतिथि के रूप में भाषण देते समय जब यह घोषणा की कि कारपोरेशन द्वारा मठ का नक्शा पास हो गया है, तो उपस्थित सभी मठ के शुभ-चिन्तक भक्त लोग ये शुभ समाचार सुनकर परमोत्साहित हुये। सतीश मुखर्जी रोड से, पुनः 86-ए रासबिहारी एविन्यु पर मठ के कार्य व श्रीविग्रह सेवा परिवर्तित हो जाने से, 35, सतीश मुखर्जी रोड पर स्थित श्रीमठ के मन्दिर की नींव का पत्थर रखने तथा वैष्णव होम आदि का कार्य परमाराध्य श्रील गुरुदेव जी के ही पौरोहित्य में, 15 जुलाई, 1964 को हुआ । नींव रखने के समय फावड़े से जिन्होंने नींव की मिट्टी को खोदा व वैष्णव होम आदि के विविध आयोजनों व महोत्सव के समय जो-जो उपस्थित थे, उनके नाम इस प्रकार से हैं- पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्त्यालोक परमहंस महाराज, पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्तिकमल मधुसूदन महाराज, पूज्यपाद श्रीमद् जगमोहन ब्रह्मचारी प्रभु, पूज्यपाद श्रीमद् उद्धारण ब्रह्मचारी प्रभु, पूज्यपाद श्रीमद् ठाकुरदास ब्रह्मचारी प्रभु, श्रीमद् भक्ति ललित गिरि महाराज, श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज, श्रीलोकनाथ ब्रह्मचारी, श्री बलराम ब्रह्मचारी, श्री अचिन्त्य गोबिन्द ब्रह्मचारी, श्री कृष्ण मोहन ब्रह्मचारी, श्री नारायण दास ब्रह्मचारी, श्रीनित्यानन्द ब्रह्मचारी, श्री नृत्यगोपाल ब्रह्मचारी, श्री मदनगोपाल ब्रह्मचारी, श्री गोलोकनाथ ब्रहाचारी, श्री ललित कृष्ण ब्रह्मचारी, श्रीप्राणगोविंद ब्रह्मचारी, श्री अनन्त ब्रह्मचारी, श्री अप्रमेय ब्रह्मचारी, श्रीयादवेन्द्र दासाधिकारी, श्री रन्जित दास, श्री निखिल दास, पूज्यपाद श्रीमद् कृष्णानन्द भक्तिशास्त्री, पूज्यपाद श्रीमद् दुर्दैवमोचन दासाधिकारी, डा० एस० एन्० घोष, श्री मणिकण्ठ मुखोपाद्याय, श्रीजानकीनाथ वन्द्योपाद्याय, श्री पूर्णचन्द मुखोपाध्याय, श्री सुदेवचन्द्र दत्त, श्री निताईगोपाल दत्त, अवकाशप्राप्त आर्किटेक्ट इन्जीनियर, श्रीमहीतोष व उनके सहकर्मी, अवकाश प्राप्त इन्जीनियर, मिस्टर शील, इन्जीनियर, श्री गोपाल चन्द्र दे, श्री सत्येन्द्र नाथ वन्द्योपाध्याय, श्रीसुधांशु शेखर / मुखोपाध्याय, श्रीप्रसाद चन्द्रराय, श्री हरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य, श्री काली चरण चट्टोपाध्याय, श्री धीरेन्द्र नाथ वसु इत्यादि। तथा मठ के अनेकों भक्त व शुभचिन्तक ।
सतीश मुखर्जी रोड पर मन्दिर, संकीर्त्तन-भवन, रसोईघर, भोग- गृह, लाइब्रेरी व साधु-निवास आदि का, पांच मन्जिला गृह-निर्माण का कार्य जब आरम्भ हुआ, तो इसका मुख्य दायित्त्व दिया गया श्रीनरोत्तम ब्रह्मचारी को, जो कि सन् 1955 में दीक्षित हुये थे तथा सन् 1969 में संन्यास के उपरान्त, श्रीमद् भक्ति विज्ञान भारती महाराज के नाम से परीचित हुये। श्री नरोत्तम ब्रह्मचारी गृह-निर्माणादि कार्यों में विशेष रूप से दक्ष थे। श्रील गुरुदेव जी ने कान्ट्रैक्टर नियुक्त न करके, श्री नरोत्तम ब्रह्मचारी से ही सब कार्य करवाया। जरूरत पड़ने पर श्री नरोत्तम ब्रह्मचारी, गोपाल बाबू व महीतोष बाबू के साथ सलाह-मशवरा कर लेते थे। गोपाल बाबू जी ने वृद्ध होने पर भी यथेष्ट उद्यम व परिश्रम के साथ सहयोग प्रदान किया था। परमाराध्य श्रील गुरुदेव जी के महापुरुषोचित अलौकिक व्यक्तित्त्व से आकृष्ट होकर, धर्म-भावापन्न नर-नारियों ने मठ के निर्माण कार्य में आर्थिक सेवा दी। लगातार आर्थिक सेवा आते रहने के कारण, सिर्फ ढाई वर्ष में श्रीमन्दिर, संकीर्तन भवन, रसोईघर, भण्डारघर, लाइब्रेरी हाल, श्रीगुरु महाराज जी का भजन-गृह तथा साधु-निवास आदि के रूप में एक ब्लाक तीन- मन्जिला तथा दूसरा ब्लाक चार मन्जिला बन कर तैयार हो गया। इस निर्माण कार्य में जिस-जिस ने सहयोग किया था, उनमें उल्लेखनीय नाम हैं- श्री राम नारायण, भोजनगरवाले, श्री सुरेन्द्र कुमार तापुरिया तथा उनके पिता स्वधामगत श्री गजानन तापुरिया, श्री लक्ष्मी नारायण ट्राष्ट (श्री यशवन्त राय ओरा), श्रीमति कमला मुखोपाध्याय, श्रीरामेश्वर लाल नोपानि, श्री राम कुमार भुयालका, श्री भगवती प्रसाद अग्रवाल, श्री सुधाकर चट्टोपाध्याय, श्री प्रह्लाद राय अग्रवाल, श्रीमणिकण्ठ मुखोपाध्याय, श्री जानकी नाथ वन्द्योपाध्याय, डा० एस० एन० घोष, श्रीमति कमला वाला घोष, श्री जयन्त कुमार मुखोपाध्याय, श्री शैलेश कुमार मुखोपाध्याय, श्री केशव देव भक्त, श्री हलोयाशिया ट्राष्ट, श्री सुधान्शु शेखर मुखोपाध्याय, श्री निताईगोपाल दत्त, श्रीगोपाल चन्द्र दास (टालीगन्ज), श्रीमति तरुलतादास गुप्ता, श्रीमति कल्याणी दे, तथा श्रीमति मुकुलदास गुप्ता। इसी प्रकार और भी कई भक्तों द्वारा दिये गये आनुकूल्य के द्वारा मठ की चौथी तथा पाँचवीं मन्जिल तक अतिथि भवन, अतिरिक्त ग्रन्थागार तथा साधुओं के लिये कमरों का निर्माण हुआ।
पश्चिम बंगाल के पुराने आई० जी० पी०, श्री उपानन्द मुखोपाध्याय जी ने अपनी भक्तिमति सहधर्मिणी की यादगार के लिये, चौथी मन्जिल पर अतिथि भवन का निर्माण करवाया। उपानन्द बाबू की सहधर्मिणी श्रीमती विभावती देवी एक विदुषी महिला थीं। परमाराध्य श्रील गुरुदेव के प्रति वह खूब श्रद्धा-भक्ति रखती थीं। वे दोनों अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु से शोकग्रस्त थे। श्रील गुरुदेव जी के सान्निध्य में रहकर व उनकी अमृतमयी हरिकथा सुनकर अपने तप्त हृदय को शान्त करने के लिये, उपानन्द बाबू अपनी स्त्री को साथ लेकर श्रील गुरुदेव जी के साथ-साथ चण्डीगढ़, जालन्धर इत्यादि स्थानों पर प्रचार के समय रहे। उपानन्द जी ने अपनी स्त्री की इच्छानुसार, उसके स्वधाम प्राप्त हो जाने के बाद, उसके सभी धन को अतिथि भवन के निर्माण में नियोजित कर दिया।
उपरोक्त आर्थिक सेवा करने वालों में से एक गृहस्थ महिला भक्त, श्रीमती कमला मुखोपाध्याय ने दूसरी मन्जिल पर श्रील गुरुदेव जी के ठहरने वाले स्थान के निर्माण के लिये अधिकांश खर्च वहन किया। श्रद्धा-भक्ति रहने से साधारण दरिद्र व्यक्ति भी जिस प्रकार सेवा कर सकता है, तथाकथित, श्रद्धाहीन धनी व्यक्ति भी वैसा नहीं कर पाता। अन्यान्य, अर्थादि के द्वारा सेवा करने वालों के नाम हैं- श्री जीत पाल जी (अमीन चन्द प्यारे लाल), श्री देव दास घोष, श्री चिरन्जी लाल, श्रीप्रह्लाद लाल, श्री यमुना प्रसाद, श्री दुर्गा प्रसाद, श्रीमति नन्द रानी दास व श्रीमति ननी बाला देवी।
सतीश मुखर्जी रोड से रास बिहारी एवेन्यु में स्थानान्तरित होने पर लगभग ढाई वर्ष, मठ के विशेष अनुष्ठानादि, राजा बसन्त राय रोड पर पहले की तरह विशाल सभा मण्डप में होते रहे। श्रीजन्माष्टमी तथा वार्षिक उत्सव के अलावा अन्यान्य विशेष विशेष अनुष्ठान कलकत्ता मठ में तथा कलकत्ता को केन्द्र रखकर बाहर भी हुए।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी – 29 अगस्त, 1964, शनिवार से 2 सितम्बर, बुधवार तक। 19 अगस्त 1965, वृहस्पतिवार से 23 अगस्त, सोमवार तक, 7 सितम्बर 1966 बुधवार से 11 सितम्बर, रविवार तक श्रील गुरुदेव जी की शुभ आविर्भाव तिथि पूजा – 15 नवम्बर, 1964, रविवार, उत्थान एकादशी। कोलकाता से श्रील गुरुदेव जी का पाणिहाटी के श्रीराघव भवन में शुभ-पदार्पण – 1 नवम्बर, रविवार। कलकत्ता की कालीकृष्ण ठाकुर स्ट्रीट पर, गीता जयन्ती महोत्सव में श्रील गुरुदेव जी 15 दिसम्बर, 1964, मंगलवार से 17 दिसम्बर, गुरुवार तक ।
श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी की तिरोभाव तिथि:- 21 दिसम्बर, 1964, सोमवार से 23 दिसम्बर, बुधवार तक।
वार्षिक उत्सव :- 13 जनवरी, 1965 बुधवार से 17 जनवरी रविवार तक, 17 जनवरी, 1966 शुक्रवार से 11 जनवरी, मंगलवार तक ।
कोलकाता भारतीय संस्कृति-संसद् में श्रील गुरुदेवः- 19 अगस्त, 1965 वृहस्पतिवार ।
उत्तर भारत प्रचार-भ्रमण में श्रील गुरुदेवः- (दिल्ली, देहरादून, जालन्धर, होशियारपुर, लुधियाना चण्डीगढ़) 19 अप्रैल (1966), मंगलवार से 29 मई, रविवार तक।
84 कोस ब्रजमण्डल परिक्रमाः- 29 अक्तूबर, 1966, शनिवार से 28 नवम्बर, सोमवार, हेमन्तकी रासपूर्णिमा तिथि तक। श्रील गुरुदेव जी की आविर्भाव तिथि पूजा, महावन के अन्तर्गत ब्रह्माण्ड घाट में 23 नवम्बर बुधवार को सम्पन्न हुई।
बोलपुर में श्रील गुरुदेवः – 25 जून (1966) मंगलवार से 4 जुलाई सोमवार तक ।
ऊपर-उल्लिखित कोलकाता मठ के श्रीजन्माष्टमी तथा वार्षिक उत्सवों में जिन-जिन विशिष्ट व्यक्तियों ने योगदान दिया, उनमें उल्लेखनीय हैं डा० गोपीनाथ शास्त्री, श्री जयन्त कुमार मुखोपाध्याय, न्यायाधीश, श्री विमल चन्द्र मित्र, कलकत्ता इम्प्रूवमेन्ट ट्रिव्यूनल के प्रेजीडेण्ट, श्री ज्योत्स्ना नाथ मल्लिक, न्यायाधीश, श्रीशंकर प्रसाद मित्र, कलकत्ता कार्पोरेशन के मेयर, श्री चित्तरंजन चट्टोपाध्याय, न्यायाधीश, श्री विनायक नाथ वन्द्योपाध्याय, श्री शीतल
प्रसाद चट्टोपाध्याय, श्री प्रभु दयाल हिम्मतसिंका, एम० पी०, श्रीराम कुमार भुयालका, एम० पी०, श्री ईश्वरी प्रसाद गोयन्का, स्पीकर, श्रीकेशव चन्द्र वसु, प्रोफेसर नारायण चन्द्र गोस्वामी, न्यायाधीश, श्रीपरेशनाथ मुखोपाध्याय, पश्चिम बंगाल के कानून मन्त्री, श्री ईश्वर दास जालान, कार्पोरेशन टाउन प्लानिंग कमेटी के चेयरमैन, श्रीगणपति सुर, कलकत्ता कार्पोरेशन के मेयर, डा० प्रीतिकुमार राय चौधरी, न्यायाधीश, श्री अशोक चन्द्र सेन, शिक्षा मन्त्री, श्री रविन्द्र लाल सिंह, न्यायाधीश श्रीदुर्गादास वसु, डिप्टी मेयर, श्री महिर लाल गांगुली, युगान्तर पत्रिका के वार्तासम्पादक, श्री दक्षिण रंजन वसु, कार्पोरेशन के काउन्सिलर, श्री शिव कुमार खन्ना ।
धर्मसभाओं में श्रील गुरुदेव जी के ओजस्वी प्रवचनों को सुनने के लिये अनगिनत नर-नारी अधीरता से इन्तज़ार करते थे। आदर्श चरित्र • वाले श्रील गुरुदेव जी की उपदेश वाणी सबके हृदय में गहरी छाप छोड़ देती थी। श्रील गुरुदेव जी के गुरुभाइयों ने भी अलग-अलग दिनों में सभा में उपस्थित होकर भाषण प्रदान किए। इन धर्म-सभाओं में जिन्होंने सहयोग दिया था, उनके नाम हैं:- त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति सर्वस्व गिरि महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति भूदेव श्रौती महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्त्यालोक परमहंस महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विचार यायावर महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति सौरभ भक्ति सार महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विकास हृषीकेश महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विलास भारती महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति शरण शान्त महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रापण दामोदर महाराज, श्रीमद् गोर्वधन दास ब्रह्मचारी व डा. एस.एन. घोष | परमाराध्य श्रील गुरुदेव जी के अनुकम्ति त्यक्ताश्रमी शिष्यों में से भाषण दिया था- श्रीमठ के सम्पादक, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज और श्रीगौड़ीय संस्कृत विद्यापीठ के अध्यापक श्रीलोकनाथ ब्रह्मचारी जी ने कलकत्ता मठ के वार्षिक उत्सव के उपलक्ष्य में सुरम्यरथ पर विराजित श्रीविग्रहों के साथ विराट संकीर्तन-शोभायात्रा, जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में अधिवास संकीर्तन-शोभायात्रा एवं महोत्सवादि प्रतिवर्ष परमाराध्य श्रील गुरुदेव जी के आनुगत्य में यथारीति सुसम्पन्न हुए।