पाश्चात्य देशों में भी श्रीमन्महाप्रभु जी की वाणी का प्रचार हो-श्रील प्रभुपाद का इस प्रकार आग्रह होने से उन्होंने श्रील गुरुदेव जी को इस कार्य के उपयुक्त समझकर उन्हें भेजना निश्चित् किया।
श्रील प्रभुपाद जी के निर्देशानुसार श्रील गुरुदेव तथा अन्य दो सेवकों के फोटो खींचे गये तथा पासपोर्ट की व्यवस्था भी हो गयी। विदेश में प्रचार के लिए जाना जब पूरी तरह से निश्चित् हो गया तभी राजर्षि कुमार शरदिन्दु नारायण राय जी ने प्रभुपाद जी को कहा- “विलायत परियों का देश है। वहाँ कम उम्र के सुन्दर युवक को भेजना मैं उचित नहीं समझता हूँ। किसी वयस्क व्यक्ति को भेजना उचित होगा ।”
श्रील प्रभुपाद जी ने राजर्षि शरदिन्दु की बात को गम्भीरता से लिया और श्रील गुरुदेव की बजाए श्रीमद् भक्ति प्रदीप तीर्थ महाराज जी को भेजना निश्चित् किया तथा श्रील गुरुदेव जी को विदेश प्रचार में होने वाले खर्चे का संग्रह करने की आज्ञा दी। श्रील गुरुदेव जी को मन-मन में आशंका थी कि श्रील प्रभुपाद अब अधिक दिन प्रकट नहीं रहेंगे। इसलिए जब उन्हें विदेश में भेजना निश्चित् हुआ था तो वे इसी चिन्ता में व्याकुल रहते थे कि जब वे वापस आएँगे तो पता नहीं उन्हें श्रील प्रभुपाद जी के दर्शन हो सकेंगे या नहीं। परन्तु जब श्री राजर्षि शरदिन्दु नारायण के परामर्श से श्रील प्रभुपाद जी ने उनका विदेश जाना रोक दिया तो श्रील गुरुदेव इसमें अपना मंगल अनुभव करने लगे।