विश्वव्यापी श्रीचैतन्य मठ एवं श्रीगौड़ीय मठ समूह के प्रतिष्ठाता नित्यलीला प्रविष्ट परमहंस ॐ 108 श्री श्रीमद् भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर ‘प्रभुपाद’ जी के प्रियतम् पार्षद व श्रीकृष्णचैतन्य-आम्नाय धारा के दसवें आचार्य एवं अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ प्रतिष्ठान के प्रतिष्ठाता, अस्मदीय गुरुपादपद्म, परमहंस परिव्राजकाचार्य, ॐ 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज विष्णुपाद जी, शुक्रवार, 18 नवम्बर, सन् 1904 की एक परम पावन तिथि अर्थात उत्थान एकादशी को प्रातः 8 बजे पूर्व बंगाल (वर्तमान बंगला देश) में फरीदपुर जिले के काँचन-पाड़ा नामक गाँव में एक दिव्य बालक के रूप में प्रकट हुए ।

जिस प्रकार ‘उत्थान एकादशी’ के दिन परम करुणामय, परमानन्द स्वरूप श्रीहरि की जागरणलीला सब जीवों के लिए मंगलदायक और आनन्दवर्धक होती है, उसी प्रकार त्रिताप से पीड़ित जीवों के सौभाग्य से श्रीहरि के प्रियतम जन एवं करुणामय मूर्ति हमारे परमाराध्यतम् श्रील गुरुदेव भी सब जीवों के वास्तविक मंगल के लिए एवं उनके उल्लास वर्धन हेतु ‘उत्थान एकादशी’ को प्रकट हुए। ये ही नहीं, वैराग्य की पराकाष्ठा की मूर्ति, हमारे परमेष्ठी गुरुपादपद्म परमहंस-वैष्णव श्रील गौर किशोर दास बाबा जी महाराज जी ने भी इस शुभ तिथि को ही भगवान् की नित्यलीला में प्रवेश किया था-ये भी अति विशेष रहस्यपूर्ण बात है।

काँचनपाड़ा गाँव, भेदार गंज थाने के अन्तर्गत पद्मावती नदी के मुख की ओर स्थित है। यहाँ का वातावरण अत्यन्त पवित्र एवं रमणीय है। प्रेम भक्ति प्रदान करने के लिए इस नदी की महिमा खूब सुनने में आती है। जागतिक विचार से बहुत से लोग इस नदी को बहुत अच्छा नहीं समझते और इसे कीर्तिनाशा कहते हैं क्योंकि इस नदी के बहाव में अब तक अनेक गाँवों और शहरों का अस्तित्व ही खत्म हो चुका है।

ये वही नदी है जहाँ पतित पावन श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु जी ने स्नान करने के पश्वात् श्रील नरोत्तम ठाकुर जी के लिए प्रेम संरक्षण किया था। इसलिए आज भी लोग इस स्थान को ‘प्रेमतली’ नाम से पुकारते हैं। अब भी पद्मावती नदी के किनारे पर प्रेमतली नाम का एक गाँव है। परम आराध्यतम् श्रील गुरुदेव जी की माता जी के मामा जी का घर इसी गाँव में था। बंगला देश के बनने के बाद काँचनपाड़ा गाँव का वह रमणीय परिवेश और बाहरी दर्शन अब उस प्रकार दृष्टिगोचर नहीं होता।

श्रील गुरुदेव जी की माता जी के मामा लोग प्रसिद्ध धनी व्यक्ति थे। गाँव में उनकी एक बड़े ज़मींदार के समान मर्यादा थी। तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ‘राज चक्रवर्ती’ की उपाधि से विभूषित किया था। आपका गाँव एक खुशहाल तथा ब्राह्मण प्रधान गाँव था ।

श्रील गुरुदेव के मामा लोग भी इसी काँचनपाड़ा गाँव में रहते थे इसलिए काँचन पाड़ा को श्रीगुरुदेव के मामा का घर भी कहते हैं।