श्रीगुरुदेव आदर्श मातृ-भक्त थे। आपकी माता जी आपको अपने पास बिठाकर विभिन्न शास्त्र-ग्रन्थों का स्वयं पाठ करती थीं एवं आपके द्वारा भी पाठ कराती थीं। इस प्रकार वह धर्मपरायण माता, आपका धर्म विषय में तथा ईश्वर आराधना में उत्साह बढ़ाती रहीं। नियमित रूप से प्रतिदिन गीता पाठ करते-करते आपको 11 वर्ष की आयु में ही सारी गीता कण्ठस्थ हो गयी थी। श्रीगुरुदेव जी की शिक्षा काँचनपाड़ा ग्राम तथा भट्ट ग्राम में हुई। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उसके बाद आप कलकत्ता आ गये । कलकत्ता आने पर आपके हृदय में भगवान् के लिए विरह-व्याकुलता बहुत तीव्र हो गयी। आपके पूर्वाश्रम के सम्बन्धी श्रीनारायण मुखोपाध्याय आपको आपके कमरे में व्याकुलता से भगवान् को पुकारते हुए और रोते हुए देखा करते थे। उस समय आप दिन में एक बार ही खाना खाते थे और सब समय भगवत्-चिन्तन में बिताते थे।