सन् 1953 में श्रील गुरुदेव जी ने गोहाटी, आसाम के स्वनामधन्य, प्रतिष्ठावान व्यक्ति श्री राम कुमार हिम्मतसिंका महोदय के आमन्त्रण पर उनके घर दीर्घकाल अर्थात् एक मास तक ठहर कर व्यापक रूप से श्रीचैतन्य महाप्रभु के विशुद्ध प्रेम-धर्म का प्रचार किया। श्री गिरिजा कुमार दास, श्री धीरेन देव, डा० श्री गौरी शंकर चटर्जी, डी.एम. तथा चरित्र बाबू आदि अनेक स्थानीय विशिष्ट व्यक्ति आपके प्रति आकृष्ट व श्रद्धायुक्त हुए। श्री गिरिजा कुमार दास ने गोहाटी में मठ स्थापन करने के लिए अपनी ज़मीन व मकान दान करने की इच्छा प्रकट की । श्रीगिरिजा कुमार दास की भक्तिमति सहधर्मिणी व उनके पुत्रों ने भी उनकी इच्छा पूर्ण करने में कोई बाधा नहीं डाली, परन्तु स्थानीय वकील लोगों ने बहुत बाधाएँ उपस्थित कीं – जिनको उन्होंने स्वयं ही पूर्णतया दूर किया तथा स्वयं
जनवरी, 1953 को मठ के लिए दानपत्र के दस्तावेजों की रजिस्ट्री कर दी, जिससे श्रीनित्यानन्द त्रयोदशी तिथि के शुभ दिन उस ज़मीन पर श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ संस्थापित हुआ ।
डा० गौरी शंकर चटर्जी महोदय ने गोहाटी में मठ स्थापन करने के लिए श्रील गुरुदेव जी को और दाता (गिरिजा कुमार दास) को प्रोत्साहित किया था। कुछ समय पश्चात् अर्थात् बुधवार 1 जुलाई 1953 के शुभ दिन, श्रील गुरुदेव जी के मूल पौरोहित्य में, श्री श्रीगुरु-गौरांग- राधानयनानन्द जी के विग्रहों की, शास्त्र व महाजनों की अनुमोदित विधि के अनुसार, वैष्णव होम तथा हरिनाम संकीर्तन आदि महोत्सव के साथ स्थापना हुई। इस उपलक्ष्य में 30 जून, मंगलवार से लेकर 4 जुलाई, शनिवार तक विराट धर्म-सम्मेलन का आयोजन भी किया गया, जिसमें 30 जून को ही दोपहर बाद नगर संकीर्तन शोभा यात्रा, 1 जुलाई को श्रीविग्रह-प्रतिष्ठा महोत्सव, 4 जुलाई को श्रीविग्रहों की रथ- आरोहण शोभा यात्रा व संकीर्तन के साथ नगर भ्रमण आदि अनुष्ठान सुसम्पन्न हुए ।
15 फरवरी, 1973, वृहस्पतिवार श्रीनित्यानन्द त्रयोदशी के शुभ दिन पर गोहाटी मठ के नवचूड़ा विशिष्ट सुरम्य श्रीमन्दिर एवं श्रीगौरांग और राधा नयनानन्द जी तथा विजय विग्रहों का प्रतिष्ठा उत्सव और श्रीविग्रहगणों का नये मन्दिर में शुभ प्रवेश महोत्सव, श्रील गुरुदेव जी के मूल पौरोहित्य में तथा पाँचरात्रिक और भागवत विधान अनुसार सुसम्पन्न हुआ। इस उपलक्ष्य में 15 फरवरी से 19 फरवरी तक जो पाँच दिवसीय विराट धर्म-अनुष्ठान आयोजित हुआ उसमें उपस्थित थे- पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी महाराज, पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति कुमुद सन्त महाराज, पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति कमल मधुसूदने महाराज, पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद भक्ति सौध आश्रम महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति ललित गिरि महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति सुहृद दामोदर महाराज, त्रिदण्ड स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रकाश गोविन्द महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रमोद वन महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति विज्ञान भारती महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति प्रसाद पुरी महाराज, त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति, भूषण भागवत महाराज, श्रीमद् कृष्ण केशव ब्रह्मचारी, भक्ति शास्त्री, महोपदेशक, श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी, भक्ति-शास्त्री विद्यारत्न, श्रीमद् हरे कृष्णदास ब्रह्मचारी तथा श्रीमद् उद्धव दासाधिकारी आदि ।
श्रीमन्दिर निर्माण में मुख्य आर्थिक सेवा, श्रीविजय विग्रह-प्रकाश तथा महोत्सव कार्य में मुख्य रूप से सहयोग किया था श्री गिरिजा कुमार दास, उनकी धर्मपत्नी, श्री राम कुमार हिम्मतसिंका, श्री भगवती प्रसाद हिम्मतसिंका, श्री काशीनाथ सिन्धी, श्री ज्वाला प्रसाद शिकारिया, श्री गंगाधर शिकारिया, श्री वासुदेव शिकारिया, श्री केशव देव बाउल, श्री कुमुद रंजन साहा, श्री राधाश्याम जी, श्री तीर्थवासीपाल, श्री एन. के. सुर, श्री धीरेन्द्र नाथ देव, श्री हरे कृष्णदास, श्री लक्षेश्वर भड़ाली, श्री गोपाल चन्द्र दे, श्री मनोरन्जन गुह नियोगी और श्री भवेश चन्द्र नियोगी जी ने ।