शैशव काल से ही आपमें संसार के विषयों के प्रति उदासीन भाव प्रकटित था। आप हमेशा अपना जीवन सुचारु रूप से नियन्त्रित रखते थे तथा दूसरे बालकों को भी संयम युक्त जीवन बिताने के लिए उत्साहित करते थे; अन्यान्य बालकों की अपेक्षा आप में चारित्रिक- वैशिष्ट्य का असाधारण गुण था। आप स्वयं दुःख और कष्ट सहकर भी दूसरों के दुःखों तथा असुविधाओं को दूर करते थे। बाल्यकाल से ही आपके हृदय की विशालता तथा ज्ञान की प्रसारता को देख अनेक लोग यह कहते थे कि अवश्य ही यह बालक भविष्य में कोई असाधारण व्यक्तित्व-सम्पन्न पुरुष होगा। आपकी माता जी से मैंने सुना है कि जब आप बालक थे तो आपको अच्छी वस्तुएँ खाने के लिए देने पर आप उन वस्तुओं को उपस्थित बालकों में बाँट देते थे; यदि वस्तु बच जाती तब-स्वयं ग्रहण करते ।

विद्यार्थी काल में भी आपके अध्यापक आपकी ज्ञानयुक्त बातें सुनकर विस्मित हो जाते थे। एक घटना इस प्रकार हुई- एक बार दोस्तों के साथ खेलकूद प्रतियोगिता के समय दौड़ में आप सबसे आगे निकल गए परन्तु एक वृक्ष से टकरा गए जिससे आपके शरीर में बहुत सी चोटें आई और खून की धाराएँ बहने लगीं। सह-प्रतियोगी बालकों ने ये बात अध्यापकों को बतायी। सभी अध्यापक आपको चोट लगने की घटना सुनकर तुरन्त घटना स्थल पर दौड़े चले आए और आपको उठाकर आपके घावों को साफ करने व दवाई लगाने लगे तथा अनेक प्रकार से आपको समझाने लगे ताकि आपको अधिक कष्ट महसूस न हो। तब आपने उनसे कहा- “आप मेरे विषय में ज़्यादा चिन्ता न करें, मैं शीघ्र ही ठीक हो जाऊँगा। भगवान् जो भी करते हैं, सब मंगल के लिए ही करते हैं। मेरे तो आँख, नाक, कान सभी नष्ट हो जाने थे परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मेरे पूर्व जन्मों के बुरे कर्मों का फल और भी खराब था, परन्तु भगवान् की कृपा के कारण वैसा हुआ नहीं ।” बालक के मुख से यह अति अद्भुत ज्ञान की बात सुनकर अध्यापकों ने तत्काल सभी के सामने यह घोषणा की कि यह बालक सामान्य बालक नहीं है ।

उच्च श्रेणियों में पढ़ते समय आपने दरिद्र बालकों की सहायता के लिए बहुत परिश्रम करके एक पुस्तकालय (Library) और बिना मूल्य की पुस्तकों के वितरण की व्यवस्था भी की थी। रूप-लावण्ययुक्त सुदृढ़ देह, स्वभाव में मधुरता, अद्भुत न्यायपरायणता और सहनशीलता आदि गुण स्वाभाविक ही आपमें थे। इसलिए बाल्यावस्था, किशोरावस्था, यौवनावस्था में सदा ही आपको प्रधान नेतृत्व पद प्राप्त होता रहा।

आपको नेतृत्व की प्राप्ति प्रार्थना करके या वोट द्वारा प्राप्त नहीं होती। थी बल्कि स्वाभाविक ही अपने गुणों के प्रभाव से प्राप्त हो जाती थी। आपके गुणों से आकृष्ट होकर सब लोग, सभी अवस्थाओं में आपको नेता चुन कर सुख अनुभव करते थे। वास्तविकता यही थी कि आपकी स्वाभाविकी गुरुता, आदर्श प्रियता और योग्यता ही सदैव आपको नेतृत्व पद प्रदान करती थी। सुपुरुष तथा दीर्घाकृति रहने के कारण आप यौवनकाल में खेलों में बहुत ही निपुण थे। इसलिए खिलाड़ी भी सदा आपको अपना कप्तान बना लेते थे। नाटक आदि में अभिनय करने की भी आपमें अत्यन्त अद्भुत कुशलता थी जिससे आपको इस क्षेत्र में भी नेतृत्व पद प्राप्त होता रहा। इस प्रकार कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था जिसमें आपको स्वाभाविक ही दक्षता और प्रवीणता प्राप्त नहीं हुई। यही नहीं, समस्त परोपकारी संस्थाओं में भी नेता के रूप में आप ही उनकी परिचालना करते रहे। देश की स्वाधीनता के आन्दोलन में भी आपने उत्साहपूर्वक अपना बहुमूल्य योगदान दिया।