श्रील गुरुदेव जी के बहुत से गुरु भाईयों से हमने सुना है कि श्रील प्रभुपाद जी के विराट प्रतिष्ठान को चलाने के लिए व पाश्चात्य देशों (Western countries) में श्रीमन् महाप्रभु जी की वाणी का प्रचार करने के लिए बहुत अधिक खर्चा हुआ करता था, जो कि भिक्षा द्वारा संग्रह किया जाता था। सँग्रहकारियों में हमारे श्रील गुरुदेव जी भी एक श्रेष्ठ संग्रहकारी थे। जिन लोगों को भी आपकी रमणीय गौर-कान्ति युक्त श्रीमूर्ति का दर्शन तथा आपके श्रीमुख से हरिकथामृतपान करने क सौभाग्य प्राप्त हुआ, वे लोग आपके प्रति आकृष्ट हुए बिना नहीं रह सके। आपके दर्शन मात्र से बहुत से लोग आपको सेवा देने के लिए उतावले हो • जाते थे। बहुत से लोग आपके द्वारा कुछ सेवा प्रदान किए जाने का आग्रह भी किया करते थे। श्रील प्रभुपाद जी के निर्देशानुसार मद्रास में दीर्घकाल तक अवस्थान करते हुए आपने मद्रास गौड़ीय मठ की जमीन संग्रह एवं श्रीमन्दिर, साधु-निवास, सत्संग भवन निर्माण आदि विषयों में मुख्य रूप से यत्न किया था। इस कार्य के लिए आपने अपने बड़े गुरु भाई परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद्भक्ति रक्षक श्रीधर देव गोस्वामी महाराज और परिव्राजकाचार्य त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद्भक्ति हृदय वन महाराज जी से विशेष प्रेरणा ली थी। इन सब कार्यों में होने वाले खर्चों के लिए आपने विपुल प्रचेष्टा की थी, इसलिए मद्रास के प्रधान-2 व्यक्ति आपके साथ विशेष भाव से परिचित हो गए थे।
कृष्ण विस्मृति ही जीवों के तमाम दुःखों का मूल कारण है, अतः श्रील प्रभुपाद जी ने जीवों को कृष्ण-उन्मुख करने के लिये जैसी बहुमुखी चेष्टा की, वह पहले कभी भी किसी आचार्य-लीला में नहीं देखी गई। आप श्रीगौरकरुणा-शक्ति के विग्रह-स्वरूप थे। श्रील प्रभुपाद ने जनसाधारण में भगवद्-स्मृति उदय कराने के लिये कलकत्ता, ढाका, पटना, काशी आदि विशेष-2 स्थानों में सशिक्षा प्रदर्शनियों की व्यवस्था की, भारत के विभिन्न स्थानों में एवं विदेशों में भी मठ तथा प्रचार केन्द्रों की स्थापना की, श्रीब्रजमण्डल परिक्रमा और नवद्वीप धाम परिक्रमा के आयोजन किये, विभिन्न शहरों व गाँवों में श्रीचैतन्य वाणी का प्रचार व नगर-संकीर्तन शोभा यात्राओं की व्यवस्था की, श्रीमन् महाप्रभु जी के पदाँकपूत स्थानों की अर्थात जहाँ-जहाँ श्रीमन् महाप्रभु जी के चरण पड़े, उन स्थानों की स्मृति के संरक्षण हेतु भारत के विभिन्न स्थानों में पादपीठों की स्थापना की व लुप्त तीर्थों का उद्धार किया। इसके इलावा उन्होंने शुद्ध भक्ति शास्त्रों का प्रचार किया तथा दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक पारमार्थिक पत्रिकाओं की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशन की व्यवस्था की। इस प्रकार श्रीमन् महाप्रभु जी की वाणी के प्रचार के लिये श्रील प्रभुपाद ने जो महान् उद्योग किया था, हमारे श्रील गुरुदेव जी ने उन सभी सेवाओं में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। अधिकाँश क्षेत्रों में श्रील प्रभुपाद जी श्रील गुरुदेव को पूर्व व्यवस्था के लिये पहले भेजते थे।
श्रील प्रभुपाद जी को श्रीगुरुदेव के प्रति इस प्रकार दृढ़ आस्था व विश्वास था कि इन्हें किसी भी कार्य में भेजने से वह कार्य अवश्य ही व सही रूप से पूरा हो जाएगा। आन्ध्र प्रदेश में राजमहेन्द्री जिले के अन्तर्गत गोदावरी नदी के किनारे गोष्पद-तीर्थ के समीप ही श्रीमन् महाप्रभु के अन्तरंग पार्षद श्रीरायरामानन्द जी की स्मृति संरक्षण हेतु श्रील प्रभुपाद जी ने जिस ‘श्रीरामानन्द गौड़ीय मठ’ की स्थापना की थी, उसके लिए जमीन संग्रह और मठ निर्माणादि के कार्यों में श्रील गुरुदेव जी मुख्य रूप से थे। आपके गुरू भाईयों से हमने इस प्रकार सुना है कि श्रील प्रभुपाद जी के कुछ एक योग्य सेवक उस मठ की स्थापना के लिये गये थे, किन्तु ज़मीन प्राप्ति की व्यवस्था न कर सकने के कारण जब उन्होंने निराशा व्यक्त की तो श्रील गुरुदेव ने उन्हें कहा था- ‘इसके लिये कोई उपयुक्त प्रचेष्टा तो हुई ही नहीं।’ ‘जहाँ सभी की चेष्टाएँ शेष हो जातीं, वहीं श्रील गुरुदेव कहा करते थे कि चेष्टा तो अभी शुरु ही नहीं हुई।’ जब आपने बड़े-बड़े अधिकारियों से मिलकर उक्त कार्य पूरा कर लिया, तो सभी आपकी अद्भुत योग्यता को देखकर विस्मित हो उठे।
श्रील गुरुदेव जी का दर्शन परम सुन्दर था। आपका व्यक्तित्व अलौकिक था व आपका व्यवहार अतीव माधुर्यपूर्ण था। आपमें अति आधुनिक युक्तियों और अकाट्य शास्त्र-प्रमाणों के द्वारा समझाने की ऐसी क्षमता थी कि बड़े से बड़ा व्यक्ति भी आपके वशीभूत हो जाता था व आपको सन्तुष्ट कर पाने पर अपने को कृतार्थ समझता था। श्रील प्रभुपाद जी की मनोऽभीष्ट सेवा ही श्रील गुरुदेव जी का ध्यान, ज्ञान, जप व सर्वस्व था। सेवा कार्य के लिये बिना खाए व बिना सोए प्राणपन से जिस प्रकार आपने परिश्रम किया, आधुनिक युग के सेवक उस सेवा- परिश्रम की कल्पना भी नहीं कर सकते। आपका अपने गुरुदेव के प्रति जिस प्रकार एकान्तिक व निष्कपट आनुगत्य था, वह एक आदर्श है। आप अपने गुरुदेव जी के निर्देश के बगैर कभी भी किसी काम में उत्साही नहीं होते थे। चूँकि आप श्रील प्रभुपाद जी के पादपद्मों में सर्वतोभाव से प्रपन्न हुए थे, इसलिये श्रील प्रभुपाद जी ने भी आपमें अपनी समस्त शक्ति का संचार किया था।