जनवरी २०११ में, श्रील गुरुदेव के आनुगत्य में चाकदह में वार्षिक उत्सव सुन्दर रूप से संपन्न होने के बाद, आसाम के गुवाहाटी, तेजपुर, सारभोग और ग्वालपाड़ा – चारों मठों में भी उनकी अध्यक्षता में वार्षिक उत्सव मनाया गया। फरवरी के अंतिम सप्ताह में उनके कोलकाता लौटने के बाद, उनकी मायापुर यात्रा की व्यवस्थाएं की जा रहीं थीं।
कुछ वर्ष पहले, श्रील गुरुदेव कोलकाता में और चाकदह, कृष्णनगर और मायापुर जैसे उसके आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय टैक्सी या सार्वजनिक परिवहन (bus, local train इत्यादि) से प्रचार के लिए जाते थे। यह देखकर जम्मू के श्रीमदनलाल गुप्ता ने बहुत श्रद्धा के साथ एक नीली टाटा सफारी कार को २००४ में उनकी सेवा में दिया था। तब से श्रील गुरुदेव उसी कार से यात्रा करने लगे। यद्यपि जब यह कार खरीदी गई थी तब यह एक अच्छा model था, फिर भी पिछले सात वर्षों में कई प्रकार की आधुनिक और सुविधाजनक कार व्यवहार में आ चुकीं थीं। और अब कार के shock absrorbers और pickup भी इतने अच्छी अवस्था में नहीं रहें।
जब हम उस साल (२०११) की श्रील गुरुदेव की मायापुर यात्रा की व्यवस्था के बारे में विचार कर रहे थे, तब श्रीमद् भक्ति विबुध मुनि महाराज कोलकाता मठ में आए हुए थे। श्रील गुरुदेव ने एक वार्तालाप में उन्हें बताया कि अब वे पहले की तरह लंबी यात्राएं करने में सक्षम नहीं रहे। उन्होंने यह कहते हुए अपना दुःख व्यक्त किया कि वे पहले कई सारे कार्य अनायास ही कर पाते थे, किन्तु अब वृद्धावस्था के कारण शरीर में दुर्बलता आ जाने से उनकी गतिविधियों में कमी आ गई है।
श्रीमुनि महाराज ने श्रील गुरुदेव की मायापुर यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए अन्य कोई विकल्प ढूंढने की इच्छा हमारे समक्ष व्यक्त की और उन्होंने उस दिशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दिए। पहले उन्होंने एक helicopter किराए पर लेने के लिए सोचा, किन्तु बाद में हमें पता चला कि वृद्ध एवं हृदय की अस्वस्थता वाले व्यक्तियों के लिए helicopter से यात्रा करना उचित नहीं है। फिर, उन्होंने मोटर-घर (वैनिटी वैन) किराए पर देनेवालों से संपर्क किया। उस वैन में भोजन, विश्राम और प्रसाधन की सुविधाएं रहने के कारण यात्रा बहुत आरामदायक होती है। इस तरह के विकल्प के बारे में जानकर हमें भी बहुत प्रसन्नता हुई और श्रीमुनि महाराज ने उस दिशा में अपने प्रयासों को आगे बढ़ाया।
उन्होंने एक मोटर-घर कंपनी को इस कार्य के लिए चुना और उसके मालिक को श्रील गुरुदेव के दर्शन के लिए आमंत्रित किया। श्रीमुनि महाराज ने श्रील गुरुदेव को बताया कि मायापुर की यात्रा के लिए बहुत अच्छे वाहन की व्यवस्था हो गई है और यह भी बताया कि उस वाहन कंपनी के मालिक उनके दर्शन के लिए आए हुए हैं। श्रील गुरुदेव ने उस व्यक्ति का स्नेह-पूर्वक स्वागत किया और | उसे मनुष्य जन्म के महत्त्व के बारे में समझाया। उसके बाद, श्रील गुरुदेव के द्वारा दिए गए प्रसाद को ग्रहण कर वह व्यक्ति चला गया।
कुछ समय बाद, श्रील गुरुदेव ने श्रीमुनि महाराज को अपने कमरे में बुलाया। उस समय में भी वहाँ उपस्थित था। श्रील गुरुदेव ने, अपनी मायापुर यात्रा में होनेवाली शारीरिक असुविधाओं को कम करने के श्रीमुनि महाराज के प्रयासों के प्रति प्रसन्नता व्यक्त की, किन्तु साथ ही साथ उन्होंने अपनी उत्कृष्ट भावनाओं को अभिव्यक्त किया, “देखिए, गुप्ताजी ने हमारे मठ की बहुत सेवा की है। उन्होंने मायापुर में हमारे मठ के भव्य प्रवेश-द्वार के निर्माण के लिए बहुत धनराशि दी थी, और मायापुर में में जिस कमरे में रहता हूँ उसका निर्माण भी उन्होंने ही करवाया था। उन्होंने ग्वालपाड़ा में GOKUL संस्था के मंदिर के निर्माण के लिए भी आर्थिक सेवा की थी।” जब हम यह समझने का प्रयास कर रहे थे कि वे ये सारी बातें क्यों कह रहे हैं, उन्होंने आगे कहा, “पहले, मैं public transport से अपनी यात्राएं करता था, किन्तु गुप्ताजी ने यह कार दी और मुझसे कहा, ‘जब भी आप कोलकाता में या उसके आसपास के किसी अन्य स्थान पर जाएंगे, आप कृपया इस कार का उपयोग करें।’ मेरे बार-बार मना करने पर भी उन्होंने प्रेम-पूर्वक मुझे वह कार दी थी। यदि मैं सोचूँ कि उन्होंने जो कार दी है वह अब उतनी आरामदायक नहीं रही, और अब वैसे भी वे इस जगत् में नहीं रहें (२००८ में गुप्ताजी ने शरीर छोड़ दिया था), इसलिए मैं किसी दूसरी कार में जाऊँगा, तो यह अच्छा नहीं है। हमें भक्तों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं को नहीं देखना चाहिए। हम धीरे-धीरे उस कार में चले जाएंगे। आवश्यकता होने पर में बीच-बीच में विश्राम करूँगा। मुझे कोई असुविधा नहीं है। आप चिंता मत कीजिए।”
इस प्रकार श्रील गुरुदेव के उत्कृष्ट विचारों को सुनकर श्रीमुनि महाराज और मैं पूरी तरह से स्तब्ध रह गए। भक्तों के प्रति उनके ऐसे हृदय स्पर्शी भाव देखकर हमारी आँखें नम हो गईं। यद्यपि वे पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, फिर भी, मठ के लिए सेवाएं प्रदान करनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के प्रति उनकी सदैव कृतज्ञ रहना जैसी उत्तम भावनाएं वर्णन से परे हैं। इसलिए तो श्रीमुनि महाराज ने यह कहते हुए उन्हें प्रणाम किया, “आपके जैसा दूसरा कोई नहीं हैं।”
निर्धारित तिथि पर, श्रील गुरुदेव उस कार से मायापुर आए। वार्षिक नवद्वीप धाम परिक्रमा की अवधि में, श्रील गुरुदेव के संन्यास के ५० वर्ष पूर्ति के उपलक्ष्य में मायापुर मठ में, एक विशाल समारोह का आयोजन किया गया था। इस समारोह में ४० से भी अधिक विभिन्न गौड़ीय मठों के आचार्य एवं असंख्य संन्यासी, ब्रह्मचारी तथा गृहस्थ भक्तों ने भाग लिया। इस तरह का एक भव्य समारोह, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित हो, ऐसा मायापुर में पहले कभी नहीं देखा गया था। वह एक अद्भुत और निराला दृश्य था। श्रील गुरुदेव के अलौकिक स्वभाव, उनके प्रीति-युक्त व्यवहार और भक्तिमय आचरण के प्रभाव से ही यह संभवपर था।
कुछ दिनों के बाद, श्रील गुरुदेव उस कार से कृष्णनगर आए और वहाँ के मठ के वार्षिक उत्सव की अध्यक्षता की। वे दो दिन बाद मायापुर वापस आ गए, और वहाँ से निर्धारित तिथि पर कोलकाता लौट आए। उसके तुरंत बाद उन्होंने नई दिल्ली होते हुए देहरादून के लिए प्रस्थान किया।
देहरादून में श्रील गुरुदेव का आगमन ६ वर्षों के बाद हुआ था। और तो और, वे अपनी आविर्भाव तिथि पर पहली बार वहाँ पर उपस्थित थे, जिससे भक्तों का उत्साह अत्यधिक वर्धित हो गया। परम पवित्र श्रीरामनवमी तिथि, जो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचंद्र की प्रकट तिथि है, वही शुभ तिथि श्रील गुरुदेव की भी आविर्भाव तिथि है। उस वर्ष, श्रील गुरुदेव की आविर्भाव तिथि को उनकी साक्षात् उपस्थिति में पालन करने का एक अभूतपूर्व अवसर स्थानीय भक्तों को उनकी अपनी भूमि पर मिला। राज्य के मुख्यमंत्री, श्रीरमेश पोखरियालजी सभा के मुख्य अतिथि बने। उन्होंने श्रील गुरुदेव की सौम्यमूर्ति, बालक-सा सरल स्मित, अद्भुत व्यवहार, अमृत-तुल्य वाणी जैसे असामान्य गुणों के दर्शन कर अपने आपको धन्यातिधन्य अनुभव किया। उन्होंने अपने भाषण में श्रील गुरुदेव और उनके साथ आए भक्तों का देहरादून (जो देव-भूमि के नाम से भी जानी जाती है) में हार्दिक स्वागत किया और कहा कि इस संसार के कल्याण के लिए श्रील गुरुदेव जैसे साधुओं की नितांत आवश्यकता है। इस धरातल पर श्रील गुरुदेव के ८७ वर्षों के निःस्वार्थ जीवन की पूर्ति होने पर मुख्यमंत्री सहित भक्तों ने अभिवादन व्यक्त किया और ८७ दीप दान किए। ८०० से भी अधिक भक्तों ने इस उत्सव में भाग लिया। समारोह के भव्य आयोजन करने के देहरादून के भक्तों के प्रयासों से श्रील गुरुदेव बहुत प्रसन्न हुए। राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य एकत्रित भक्तों को संबोधित करते हुए, श्रील गुरुदेव ने भगवान् श्रीरामचंद्र, श्रीमती सीता देवी और श्रीलक्ष्मण की अप्राकृत महिमा का गान किया। हरिकथा को विराम देते हुए उन्होंने बताया कि भगवान् और उनके पार्षद स्वयं प्रकाशित अप्राकृत तत्त्व हैं, जिन्हें जागतिक इन्द्रियों से जाना नहीं जा सकता है। उन्हें अनुभव करने के लिए एकांतिक शरणागति की आवश्यकता है।
उत्तर भारत में १५ दिनों की प्रचार के बाद, श्रील गुरुदेव २१ अप्रैल, २०११ को कोलकाता मठ पहुँचे।