बाद में श्रील गुरुदेव के श्रीचरणाश्रित शिष्य, श्री प्राण बल्लभ दासाधिकारी के सौजन्य से सन् 1968 में कोलकाता में ही उन्हीं के निवास, 25/1, प्रिन्स गुलाम मुहम्मद शाह रोड, टालिगन्ज में ‘श्री चैतन्य वाणी’ प्रैस की संस्थापना हुई। तब से वहीं पर पत्रिका का प्रकाशन तथा ग्रन्थ छापने का कार्य चलता रहा। प्रैस मठ से काफी दूर होने के कारण, अनेक पथों से पैदल चलकर, प्रूफ-संशोधन तथा प्रैस का कार्य देखा जाता रहा। इस प्रकार के कष्ट को कम करने के लिए एवं प्रैस के कार्यों की सुविधा के लिए श्री प्राण बल्लभ की प्रवेष्टश से ही, सतीश मुखर्जी रोड के समीप ही, 34/ए, महिम हालदार स्ट्रीट, कालीघाट में एक मकान प्रैस के कार्य के लिये थोड़े से किराये पर ले लिया गया तथा वहीं पर ‘श्री चैतन्य वाणी’ प्रैस को स्थानान्तरित कर दिया गया, जिससे प्रैस के कार्यों में अनेकों प्रकार की सुविधा हो गयी। आगरा की कम्पनी से खरीदी हुई ट्रेडल मशीन से बहुत असुविधा होने के कारण उसे बेच दिया गया और आनन्दपुर में रहने वाली श्रील गुरुदेव जी की चरणाश्रिता शिष्या, श्रीमति नलिनी वाला नन्दी के खर्चे से नयी मशीन तथा नए टाइप आदि खरीदे गये। इससे प्रैस का कार्य और अधिक सुचारु व सुन्दर रूप से चलने लगा।

डा० एस० एन० घोष जी के तिरोधान के बाद श्रील गुरुदेव जी की प्रार्थना से, पूज्यपाद त्रिदण्डि यति श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी पत्रिका के सम्पादक के रूप में नियुक्त हुए।

प्रैस के कार्यों में एवं ग्रन्थ मुद्रण के कार्यों में एक विषय अवश्य ही स्वीकार्य है, वह यह कि श्रीचैतन्य मठ में रहते समय, श्रील गुरुदेव जी के निर्देशानुसार, श्रीकृष्ण बल्लभ ब्रह्मचारी जी ने सबसे पहले उनके (गुरु महाराज जी के गुरुभाई, पूज्यपाद त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति कुसुम श्रवण महाराज जी से ही प्रूफ-संशोधन, पत्रिका लिखने व निबन्धादि लिखने की शिक्षा प्राप्त की। पूज्यपाद श्रीमद् भक्ति कुसुम श्रवण महाराज जी उस समय “श्री गौड़ीय” मासिक पत्रिका के लेख व प्रचार-प्रसंग आदि लिखते थे।

उस समय “श्री गौड़ीय ” पत्रिका में पूज्यपाद श्रवण महाराज जी के बहुत से लेख, अन्य भक्तों के नाम पर प्रकाशित हुए थे। विष्णु-वैष्णव- सेवा ही जहाँ पर मुख्य उद्देश्य है, वहाँ पर प्रतिष्ठा की लालसा नहीं रहती।

प्रैस-कर्मचारियों के अधिक परेशान करने पर व टाइप आदि चोरी होते रहने के कारण, श्रील गुरु महाराज जी ने मठ के सेवकों को, प्रैस में पहरा देने की सेवा में नियुक्त किया। पहले श्री हीरा लाल ने तथा बाद में श्री परेश आट्य ने प्रैस में पहरा देने की सेवा की थी। जो प्रैस-कार्य में नियुक्त हुए थे, उनमें पारंगति लाभ की श्रीश्याम सुन्दर ब्रह्मवारी और श्री प्रेममय ब्रह्मचारी ने श्रीश्याम सुन्दर ब्रह्मचारी के स्वधाम प्राप्त हो जाने पर, उक्त सेवा का दायित्व मुख्य रूप से अर्पित किया गया श्री प्रेममय ब्रह्मचारी जी को श्रील गुरुदेव जी की ही इच्छानुसार प्रेस- परिचालना के लिए नियुक्त हुए थे उनके गुरुभाई श्री नारायण चन्द्र मुखोपाध्याय ।

“गुरुर शिष्य हय भान्य आमार” (वे.च.म/142) इस विचार से श्रील गुरूदेव जी अपने गुरु-भाइयों को बहुत मर्यादा प्रदान करते थे। तथा अपने आश्रित शिष्यों को भी इसी प्रकार की शिक्षा देते थे। उनके आश्रित-शिष्य लोग यदि प्रभुपाद जी के शिष्यों की सेवा करते थे, तो आप बहुत सुखी होते थे। श्रील गुरुदेव जी की प्रीति से आकृष्ट होकर उनके प्रायः सभी गुरु भाई, मठ की धर्म-सभाओं व उत्सव आदि अनुष्ठानों में योगदान देने के लिये आते थे। श्रीत गुरुदेव जी की असुविधा के समय, उनके गुरु-भाइयों में जो जो प्रतिष्ठान के सहायक के रूप में आगे आए थे, उनमें मुख्य हैं:-

(1) पूज्यपाद त्रिदण्डियति श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज, (2) डा० एस० एन० घोष (श्रीमद् सुजनान्द दासाधिकारी), (3) श्रीमद् नारायण चन्द्र मुखोपाध्याय (श्रीमद् भक्ति सुहृद बोधायन महाराज), (4) श्रीमद् जगमोहन ब्रह्मचारी, (5) श्रीमद् इन्दुपति ब्रह्मचारी, (6) श्रीमद् कृष्ण केशव ब्रह्मचारी, (7) श्रीमद् उद्धारण ब्रह्मचारी, (8) श्रीमद् ठाकुरदास ब्रह्मचारी (श्रीमद् भक्ति प्रबोध मुनि महाराज), (9) श्रीमद् यज्ञेश्वर दास बाबा जी महाराज, (10) श्रीमद् प्यारीमोहन ब्रह्मचारी (श्रीमद् भक्ति शरण त्रिविक्रम महाराज), (11) श्रीभुवनमोहन दासाधिकारी (श्रीमद् भक्ति प्रमोद वन महाराज), (12) श्रीगोपाल दास ब्रह्मचारी (श्रीमद् भक्ति प्रापण दण्डी महाराज), (13) श्रीमद् मुकुन्द दास बाबा जी महाराज, (14) श्रीमद् भक्ति श्रवण परमार्थी महाराज, (15) श्री सत्येन्द्रनाथ चक्रवर्ती (श्री सनातन दासाधिकारी) व (16) श्रीमद् ब्रजबिहारी दास बाबा जी महाराज।