‘श्री चैतन्य वाणी’, स्व-स्वरूप उद्बोधिनी, श्रीकृष्ण स्वरूप- प्रबोधिनी, श्रीकृष्ण-प्रेममयी, श्रीकृष्ण-विरह-उन्माद प्रदायिनी तथा आनुषंगिक भाव से विषय-तृष्णा नाशिनी है। श्रीकृष्ण प्रेम-स्वरूपिणी ‘श्री चैतन्य वाणी’ का अबाध-स्पर्श, जीव को त्रिगुणों के मोहजाल से छुड़ाकर वैकुण्ठ में स्थित कर देगा। वर्तमान समय में राष्ट्रनीति, समाजनीति, अर्थनीति- यहाँ तक कि धर्मनीति भी, भक्ति के अभाव से, व्यभिचार- दोष से दूषित हो गई है। तमोगुण बढ़ जाने के कारण, जीवों को असत्य में सत्य का भ्रम होता है तथा उसी में फंसे रहने का प्रयास भी रहता है। इसी से देश सेवा के नाम पर अपनी अप-स्वार्थ सिद्धि का षड्यन्त्र, सामाजिक उदारनीति-प्रदर्शन के छल से हीन और संकीर्ण मनोवृत्ति का सम्प्रसारण, अर्थनीति के नाम पर शठता और प्रवन्चना, यहाँ तक कि खाद्य पदार्थों और दवाओं में मिलावट एवं धर्मनीति के क्षेत्र में भी झूठ, कपटता और व्यभिचार देखा जाता है। ये सब बातें ही, अन्दर ही अन्दर मनुष्य के चरित्र को गन्दा कर रही हैं। ऐसे बुरे समय में- परम सत्य, अखिल रसामृत मूर्ति- श्रीकृष्ण से भी, प्रेम पराकाष्ठामय स्वरूप श्रीचैतन्य देव की अव्यभिचारिणी-भक्ति की वार्ता-वाहिका- ‘श्री चैतन्य वाणी’ के दूसरे वर्ष के आरम्भ में, हम कातरता के साथ इसके विस्तृत प्रचार की प्रार्थना करते हैं। ‘श्री चैतन्य ‘वाणी’ जय युक्त हो, इसके सेवक व इस चैतन्य-वाणी का आदर करने वाले सज्जन भी जय युक्त हों। ‘श्री चैतन्य वाणी’ के श्रवण-कीर्तन से विश्व वासी, मंगल के मार्ग में अग्रसर हों।