निवेदन

श्रीचैतन्य वाणी’ नामक एकमात्र-पारमार्थिक मासिक पत्रिका में धारावाहिक रूप से ‘श्रीगौरपार्षद व श्रीगौड़ीय वैष्णवाचार्यों के संक्षिप्त चरितामृत’ नामक शीर्षक से जो श्रीगौरपार्षदों तथा श्रीगौड़ीय वैष्णवाचार्यों के पावन संक्षिप्त चरितामृत प्रकाशित हुए हैं वे अभी एकत्रित होकर ग्रन्थ के आकार में प्रकटित हुए हैं। त्रिदण्डि स्वामी श्रीमद् भक्ति वारिधि परिव्राजक महाराज के निष्कपट उद्यम और हार्दिक सेवा-प्रचेष्टा से गौरपार्षद चरितावली एकत्रित होकर ग्रन्थ के आकार में प्रकाश होने से यह भक्तों के भक्ति से ओत-प्रोत हृदय का उल्लास वर्द्धन करेगी। परतत्त्व श्रीगौरांग महाप्रभु और उनके पार्षदगण प्रकृति से अतीत अप्राकृत वस्तु हैं। वे प्राकृत इन्द्रियों, मन और बुद्धि के द्वारा जाने जानीवाली वस्तु नहीं हैं। अप्राकृत वस्तु स्वरूपतः स्व-प्रकाश होने के कारण उसकी महिमा केवलमात्र अहैतुकी कृपा द्वारा ही उपलब्ध होती है। जैसे भगवान की महिमा अनन्त है, वैसे ही भक्तों की महिमा भी अनन्त है। अशरणागत का उसमें प्रवेश-अधिकार नहीं है। शरणागत जनगण में भी शरणागति के तारतम्यानुसार (क्रमानुसार) कृष्ण व कृष्ण भक्तों की महिमा के प्रकाश का तारतम्य है।

अनर्थयुक्त बद्ध जीव विष्णु-वैष्णव की अप्राकृत महिमा को स्पर्श भी नहीं कर सकता। महिमा-कीर्तन करने की चेष्टा करने पर भी उसके द्वारा अमहिमा ही कीर्त्तित होती है। तथापि अपनी अयोग्यता को अनुभवकर दीन भाव से कृपा-प्रार्थना करते हुए कीर्तन करने से निःश्रेयसार्थी (निश्चित मंगल-प्रार्थी) साधक के दोष-त्रुटि वैष्णवगण क्षमा कर देते हैं। वैष्णवों की प्रसन्न दृष्टि जीव को अनर्थ से उद्धार करके सभी प्रकार के मंगल प्रदान करती है। ये ठीक है कि अनर्थयुक्त साधक, विष्णु-वैष्णव की महिमा भली भाँति कीर्तन करने में असमर्थ होते हैं परन्तु असमर्थ होने पर भी, विष्णु-वैष्णव के महिमा कीर्तन के अतिरिक्त, उनके अनर्थों को दूरीभूत करने का अन्य कोई उपाय नहीं है। वैष्णवगण अदोषदर्शी व कृपालु होते हैं—यही पतित जीव का एक मात्र भरोषा है। निष्कपटभाव से उनकी सेवा के लिये यत्न करने पर उनकी कृपा एवं आशीर्वाद से सभी विघ्न (अनर्थ) दूरीभूत हो जाते हैं तथा सर्वाभीष्ट लाभ होता है।

जगत में शुद्ध भक्त अति दुर्लभ हैं, बहुत सौभाग्यफल से ही उनका दर्शन और संग प्राप्त होता है –

गुरु, वैष्णव, भगवान्-तिनेर स्मरण।
तिनेर स्मरणे हय विघ्नविनाशन।
अनायासे हय निज वाञ्छितपूरण॥
-श्रीचैतन्यचरितामृत

वैष्णवेर कृपा याहे सर्वसिद्धि।
– श्रीचैतन्यचरितामृत

वैष्णवेर गुणगान, करिले जीवेर त्राण,
शुनियाछि साधुगुरुमुखे।
– श्रीचैतन्यचरितामृत

श्रीगौरपार्षद गोस्वामीगण प्रतिदिन हज़ारों वैष्णवों के उद्देश्य से दण्डवत् प्रणाम करते थे। वैष्णवगण प्रतिदिन ही स्मरणीय हैं। वैष्णवों की आविर्भाव व तिरोभाव तिथि में उनका स्मरण, उनकी कृपा प्रार्थना तथा उनकी गुण-गाथा कीर्तन के लिये यत्न भजन का एक विशेष अंग है। श्रीमठ से प्रकाशित ‘व्रतोत्सव निर्णय पंजिका’ में वैष्णवों की आविर्भाव व तिरोभाव तिथि जो परिज्ञात हैं, वह दी जाती हैं। वैष्णवों की आविर्भाव व तिरोभाव तिथि में उनकी कृपा प्रार्थना, उनका स्मरण और उनके महिमा-कीर्तन रूप भक्त्यंग साधना की सहायता के उद्देश्य से यह गौरपार्षद चरितावली लिखने का प्रयास है। भगवद्-इतर प्रवृत्ति किंचित् मात्र भी चित्त से दूर होते न देखकर इस ग्रन्थ के द्वारा मैंने कृपासमुद्र गौरपार्षदों के स्मरण एवं उनके पावन चरित्र का कीर्तन करने का यत्न किया है, इस आशा से कि यदि इससे कृष्णेतर प्रवृत्ति से निष्कृति व श्रीकृष्ण में अनुराग वृद्धि प्राप्त हो। किन्तु अयोग्यतावशतः सम्यक प्रकार से वैष्णवों की महिमा कीर्तित हुई नहीं जिस कारण से अभीष्ट फल प्राप्त नहीं हो रहा। तथापि पतित जीवसमूह के किए वैष्णव-पाद-पद्म ही एक मात्र अवलम्बनीय हैं, जिस कारण से उनकी महिमा के कीर्तन का यत्न त्याग भी नहीं किया जा रहा है।

वैष्णवगण के पवित्र चरित्र-वर्णन में मुझे बहुत कुछ अभाव अनुभव हो रहा है। गौरपार्षदों में अनेक का ही आविर्भाव स्थान, आविर्भाव व तिरोभाव सन्-तारीख, पिता-माता का परिचय, वंशपरिचयादिज्ञात सटीक रूप से जाने नहीं जाने पर सभी के चरित्र वर्णन में उनका उल्लेख करना संभव नहीं हो पाया। इसके अतिरिक्त भाषा-विषय में सम्पूर्ण अधिकार और मधुरता न रहने से पाठकों को इन चरितावली के पाठ से आशानुरूप सुख अनुभव नहीं भी हो सकता।

‘श्रीचैतन्य वाणी’ पत्रिका के सम्पादक-संघपति परमपूज्यपाद श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज ने हमें उक्त भक्त्यंग साधन में उत्साह प्रदान करने के लिए प्रचुर आशीर्वाद वर्षण किया है। वे हमारे शिक्षा गुरु हैं। उन्होंने अपनी परिपूर्ण चेष्टा से गौरपार्षद चरितावली के संशोधन का कार्य सम्पादन किया है तथा कहीं-कहीं पर कुछ नये ज्ञातव्य विषय भी संयोजित किये हैं। जिन्होंने इस भक्ति-ग्रन्थ के मुद्रण में अर्थानुकूल्य किया है, उन सबके प्रति हम कृतज्ञ हैं। श्रीहरि-गुरु-वैष्णव का आशीर्वाद उनके ऊपर वर्षित हो ऐसी मैं प्रार्थना कर रहा हूँ।

पतितपावन, परमाराध्य श्रील गुरुदेव के श्रीपादपद्म, परमगुरुदेव श्रील प्रभुपाद के श्रीपादपद्म, परमपूज्यपाद शिक्षागुरु श्रीमद् भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज के श्रीपादपद्म तथा श्रील प्रभुपाद के अन्यान्य पार्षद, शिक्षा गुरुवर्ग के श्रीपादपद्म में इस निवेदन लेख के माध्यम से अनन्त कोटि साष्टांग दण्डवत् प्रणति ज्ञापन करते हुए उनकी अहैतुकी कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करता हूँ।

निवेदक
वैष्णवदासानुदास
भक्ति बल्लभ तीर्थ

Dedication

This volume is dedicated to the divine lotus hands of my most revered Gurudeva, Om  Visnupada Sri Srimad Bhakti Dayita Madhava Gosvami Maharaja, and also to the lotus hands of my siksa-guru, Om Visnupada Sri Srimad Bhakti Promode Puri Gosvami Maharaja, who greatly inspired this publication in English for the benefit of the devotees all over the world.