पुरा मधुमती प्राणसखी वृन्दावने स्थिता।
अधुना नरहर्याख्यः सरकारः प्रभो प्रियः॥
(गौ. ग. दी. 117 श्लोक)

श्रील नरहरि सरकार ठाकुर श्रीचैतन्य महाप्रभु की शाखा में गिने जाते हैं। श्रीकृष्ण लीला में जो वृन्दावन की मधुमती प्राण सखी है, वे नरहरिदास सरकार के रूप में प्रकट हुई है। महाप्रभुजी की इच्छा के अनुसार नरहरि सरकार ने वैद्यकुल में जन्म लेकर उस कुल को धन्य किया था। ये श्रीखण्डवासी भक्तों में महाप्रभु के प्रधान पार्षद थे।

वर्ध्दमान ज़िला में काटोया के निकट श्रीखण्ड रेलवे स्टेशन है। श्रीखण्ड स्टेशन से एक मील दूर नरहरि सरकार ठाकुर का पीठ स्थान है। श्रीखण्डवासी भक्तों में श्रीनरहरि सरकार ठाकुर के अतिरिक्त श्रीमुकुन्द, श्रीरघुनन्दन, श्रीचिरंजीव, श्रीसुलोचन, श्रीदामोदर कविराज, श्रीरामचन्द्र कविराज, श्रीगोविन्द कविराज, श्रीबलराम दास, श्रीरतिकान्त, श्रीरामगोपालदास, श्रीपिताम्बरदास, श्रीशचीनन्दन तथा श्रीजगदानन्द मुख्य थे। नरहरि ठाकुर के वैद्यकुल में आविर्भाव के सम्बन्ध में महोपाध्याय भरत मल्लिक ने ‘चन्द्रप्रभा’ में इस प्रकार लिखा है—

श्रीखण्ड नाम नगरी राढ़े बंगेषु विश्रुता।
सर्वेषामेव वैद्यानामाश्रयो यत्र विद्यते॥
यत्र गोष्ठीभूता वैद्या यः खण्डोऽभूद् भिषकप्रियः।
विशेषतः कुलीनानां सर्वेषमेव वासभूः॥
खण्डवासी मुकुन्द दास, श्रीरघुनन्दन।
नरहरिदास, चिरंजीव, सुलोचन॥
एइ सब महाशाखा—चैतन्य-कृपाधाम।
प्रेम-फल-फूल करे याँहा ताँहा दान॥
(चै.च.आ. 10/78-79)

श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान में नरहरि सरकार का आविर्भाव सन् 1401 शकाब्द, एक भिन्न मत के अनुसार 1402 शकाब्द लिखा है। इनके पिता का नाम श्रीनारायण दास और माता का नाम श्रीगोयी था। श्रीमती गोयी, श्रीमुरारि सेन की पुत्री थीं। नारायण दास के तीन पुत्र थे—श्रीमुकुन्द, श्रीमाधव और श्रीनरहरि।

भाग्यवन्त नारायण दासेर नन्दन।
मुकुन्द, माधव, नरहरि—तिन जन॥
मुकुन्देर पुत्र रघुनन्दन ठाकुर।
ईंहार दर्शने सब ताप हय दूर॥
(भक्तिरत्नाकर 11/730-731)

झामटपुर के निकट स्थित ‘कोग्राम’ के निवासी, श्रीचैतन्य मंगल के रचयिता, श्रील लोचन दास ठाकुर इनके शिष्य थे। इसीलिए श्रीलोचन दास ठाकुर ने श्रीचैतन्यमंगल में श्रीगदाधर दास और श्रीनरहरि दास ठाकुर का, श्रीमन्महाप्रभु के अत्यन्त प्रिय के रूप में उल्लेख किया है। श्रीवृन्दावन दास ठाकुर द्वारा रचित श्रीचैतन्य भागवत में श्रीखण्डवासी भक्तों की महिमा विस्तार पूर्वक वर्णित हुई है। श्रील लोचन दास ठाकुर ने अपने गुरुदेव के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है—

श्रीनरहरिदास ठाकुर आमार।
वैद्यकुले महाकुल प्रभाव याँहार॥
अनर्गल कृष्णप्रेम कृष्णमय तनु।
अनुगत जने ना बुझान प्रेम बिनु॥
वृन्दावने मधुमति नाम छिल जाँर।
राधाप्रिय सखी तिँहो मधुर भाण्डार॥
एवे कलिकाले गौरसंगे नरहरि।
राधाकृष्ण-प्रेमेर भाण्डारे अधिकारी॥

[मेरे गुरुदेव श्रीनरहरि दास ठाकुर का वैद्यकुल में बहुत प्रभाव था। उनका अलौकिक शरीर कृष्णमय था। वह निरन्तर कृष्णप्रेम में मत्त रहते थे। कृष्णप्रेम के बिना अन्य बात नहीं करते थे, श्रीवृन्दावन में जिनका मधुमती नाम है, जो श्रीमती राधा की प्रिय सखी है, वे ही अब कलिकाल में गौरांग महाप्रभु के संगी नरहरि के रूप में है; जोकि श्रीराधाकृष्ण-प्रेम भण्डार के अधिकारी हैं।]

पिता श्रीनारायण दास के अवसान के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीमुकुन्द ने नवद्वीप में श्रीनरहरि दास के अध्ययन की व्यवस्था की थी। ऐसा सुना जाता है की श्रीमुकुन्द ने सांसारिक खर्च पूरा करने के लिए बादशाह के निजी चिकित्सक के रूप में काम किया था। नरहरि सरकार बहुत कम समय में ही सुपण्डित और भक्ति रसज्ञ हो गये थे। श्रीमन्महाप्रभु के सम्पर्क में आने से पहले ही इन्होंने श्रीराधा गोविन्द की लीला सूचक पदावाली की रचना कर ली थी। श्रीगदाधर पण्डित जिस समय निरन्तर महाप्रभु के पास रहकर उनकी सेवा करते थे, उसी समय श्रीनरहरि सरकार ठाकुर ने भी श्रीमन्महाप्रभु की सेवा का सौभाग्य प्राप्त किया था। नरहरि सरकार द्वारा की जाने वाली निर्दिष्ट अन्तरंग सेवा थी—‘चामर ढुलाना’।

श्रीगौरांग महाप्रभु के निजी व्यक्ति श्रील भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित ‘श्रीगौरआरती’ कीर्तन में नरहरि सरकार ठाकुर आदि खण्डवासी भक्तों की नियत सेवा ‘चामर ढुलाना’ का उल्लेख है। जैसे—

नरहरि-आदि करि’ चामर ढुलाय।
सञ्जय-मुकुन्द-वासुघोष-आदि गाय॥

[अर्थात् श्रीनरहरि आदि आरती में चामर ढुलाते है तथा संजय, मुकुन्द तथा वासुघोष आदि गाते हैं।]

इनके द्वारा रचित ग्रंथ में ‘भक्ति चन्द्रिका पटल’, ‘श्रीकृष्ण भजनामृत’, ‘श्रीचैतन्य सहस्रनाम’, ‘श्रीशचीतनयाष्टक’, ‘श्रीराधाष्टक’—आदि ग्रन्थ भक्त समाज में अधिक आदरित व प्रसिद्ध हैं। इनके जीवन चरित्र में जो अद्भुत घटना सुनने को मिलती है वह ये कि एक दिन श्रीगौरांग महाप्रभु और श्रीनित्यानन्द प्रभु श्रीखण्ड में श्रीनरहरि सरकार ठाकुर के श्रीपाट पर गये। वहाँ जाकर उन्होंने नरहरि से मधुपान करने की इच्छा प्रकाश की। उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए वे पास के एक जलाशय के निकट गये और अपनी शक्ति के प्रभाव से उन्होंने जलाशय के जल को मधुरूप में परिवर्तितकर उससे श्रीगौरांग महाप्रभु व नित्यानन्द प्रभु की पिपासा को निवृत्त किया। आज भी वह जलाशय मधुपुष्करिणी के नाम से प्रसिद्ध है।

श्रीमन्महाप्रभु के स्वप्न में दिये गये आदेश से श्रीनरहरि सरकार ठाकुर ने जो तीन गौर विग्रह प्रकट किये थे वे आज श्रीखण्ड, काटोया और गंगानगर में सेवित हो रहे हैं। श्रीनरहरि सरकार ठाकुर पुरुषोत्तम धाम में भी श्रीमन्महाप्रभु की लीला के संगी थे—

नरहरि दास आदि जत खण्डवासी।
शिवानन्दसेन-सङ्गे मिलिला सबे आसि’॥
(चै.च.म. 1/132)

श्रीमन्महाप्रभु द्वारा दक्षिण भारत वासियों का कृष्णप्रेम दान द्वारा उद्धार कर पुरुषोत्तम धाम में वापस आने पर श्रीमन्नित्यानन्द प्रभु ने काला कृष्णदास को महाप्रभु की पुरी में वापिसी का समाचार गौड़ देश के भक्तों को देने के लिए नवद्वीप भेजा था। पुरी में महाप्रभु की वापसी का समाचार पाकर गौड़ देश के भक्त पुरी जाने की तैयारी करने लगे तो खण्डवासी भक्त उनके साथी बन गये थे—

मुकुन्द, नरहरि, रघुनन्दन खण्ड हैते।
आचर्येर ठाईं आईला नीलाचल जाइते॥
(चै.च.म. 10/90)

श्रीजगन्नाथ देव की स्नान यात्रा के बाद जगन्नाथ के अनवसर काल में श्रीमन् महाप्रभु श्रीभगवद्-दर्शन के विरह में, आलालनाथ में जाकर रहने लगे। पुनः गौड़देश के भक्तों का पुरी में आगमन विषयक संवाद पाकर, भक्तों को दर्शन देने के लिए वे वापस पुरी आए। उस समय सार्वभौम भट्टाचार्य की इच्छा से गोपीनाथ आचार्य ने भक्तों का परिचय दिया। परिचय देने के समय, उन्होंने खण्डवासी भक्तों का भी परिचय दिया—

मुकुन्ददास, नरहरि, श्रीरघुनन्दन।
खण्डवासी, चिरञ्जीव, आर सुलोचन॥
कतेक कहिब, एइ देख जत जन।
चैतन्येर गण, सब-चैतन्यजीवन॥
(चै.च.म. 11/92-93)

[श्रीमुकुन्ददास, श्रीनरहरि, श्रीरघुनन्दन, श्रीचिरंजीव व श्रीसुलोचन यह सब खण्डवासी हैं। कितनों के नाम लूँ, आप सबको देख लीजिये। यह सब चैतन्य महाप्रभु के जीवन स्वरूप हैं और उनके गण हैं।]

पुरुषोत्तम धाम में, श्रीजगन्नाथ देव के रथ के आगे गौड़देशीय भक्तों ने जो सात मण्डलियों में बंटकर नृत्य किया था, उनके बीच में सातवीं मण्डली में खण्डवासी भक्त थे। सातवीं मण्डली के संकीर्तन में नरहरि सरकार ठाकुर और रघुनंदन ने भी नृत्य किया था—

खण्डेर सम्प्रदाय करे अन्यत्र कीर्तन।
नरहरि नाचे ताँहा श्रीरघुनन्दन॥
(चै.च.म. 13/46)

श्रीमन्महाप्रभु ने मुकुन्द, रघुनन्दन और नरहरि के बीच सेवा कार्यों के बांटने के समय, नरहरि सरकार को भक्तों के साथ रहने की सेवा प्रदान की थी।

अनेक लोग भ्रमवश भक्ति रत्नाकर के रचयिता नरहरि चक्रवर्त्ती और नरहरि सरकार ठाकुर को एक ही मानते हैं। श्रीनरहरि चक्रवर्त्ती, जो घनश्याम दास से प्रसिद्ध थे, एक पृथक व्यक्ति थे। उनका जन्मस्थान मुर्शिदाबाद ज़िले में था। इनके पिता श्रीजगन्नाथ चक्रवर्त्ती पाद के शिष्य थे। ये गोविन्द के आदेश से, रसोईये के रूप में सेवा के लिए नियुक्त हुए थे। बाद में ये ‘रसोईया-पुजारी’ के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। निम्नलिखित गीति नरहरि सरकार ठाकुर द्वारा रचित कही जाती है—

आओल गौर, पुनहि नदिया पुर
होयत मनहि उल्लास।
ऐछे आनन्द कन्द किये हेरव,
करवहि कीर्तन विलास॥
हरि-हरि कब हाम हेरव, सो मुख चान्द।
विरह पयोधि कबहु दिन पाई रव,
टूटब ह्रदयक बाँध॥
कुन्दन कनक पाँति, केब हेरब,
यज्ञ कि सूत्र विराज॥
बाहुयुगल तुलि, हरि-हरि बोलव,
नटन भक्तगण माझ॥
एत कहि नयन मुदि, बहु सब जन,
गौर प्रेम भेल भोर।
नरहरि दास आश, कब पुरव।
हेरब गौर किशोर॥

नरहरि सरकार ठाकुर, अनुमानतः सन् 1540 में अग्रहायण मास की कृष्णा एकादशी तिथि को अप्रकट हुए थे। उस समय नरहरि ठाकुर का जो तिरोभाव हुआ था, उस तिरोभाव उत्सव की समस्त व्यवस्था श्रीनिवासाचार्य ने बड़े सुन्दर रूप से की थी। श्रीनित्यानन्द प्रभु के पुत्र श्रीवीरभद्र गोस्वामी और उस समय के श्रेष्ठ वैष्णवों ने इस उत्सव में योगदान दिया था—

केहो कहे “उहे भाई! शीघ्र ना याइव।
श्रीखंडे ते प्रेमेर समुद्र उथलिव॥
अग्रहायणे कृष्णा एकादशी-सर्वोपरि।
जाते अदर्शन श्रीठाकुर नरहरि॥
सेइ एकादशीके आछये दिन चारी।
हवे ये उत्सव ता देखिबा नेत्र भरि॥

(भ. र. 9/512-514)

श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज द्वारा रचित ग्रन्थ ‘गौर-पार्षद’ में से